निर्मला के गर्भवती होने की ख़बर उसे इस तरह से मिलेगी वह सोच भी नहीं सकता था। जाते समय वह रास्ते में वह सोच रहा था कि मम्मी को मालूम था फिर भी उन्होंने उसे नहीं बताया। इस तरह के विचारों के साथ वह अपने घर पहुँचा।
घर पहुँचते से उसने अपनी मम्मी से पूछा, “मम्मी आपने बताया क्यों नहीं कि निर्मला प्रेगनेंट है?”
“अरे तो मुझे भी कहाँ मालूम था। वह तो कल उसका फ़ोन आया तब पता चला।”
“लेकिन आरती माँ तो कह रही थीं कि आपने कहा है डॉक्टर ने कहा है निर्मला को आराम …”
“अरे नहीं प्रतीक वह तो झूठ था। तब निर्मला को भी नहीं पता था कि वह प्रेगनेंट है। तेरी वज़ह से उदास होकर वह उसके भाई की शादी तक में ना जा पाई। वह बहुत अपसेट थी। इसीलिए उसी ने मेरे से झूठ कहलवा दिया था। तेरा व्यवहार कितना खराब है उसके साथ, इसीलिए वह चली गई।”
“जाते समय वह मुझसे कह रही थी, माँ मुझे लगता है ये किसी से प्यार करते हैं। वैसे भी मैं तो उन्हें शुरू से ही पसंद नहीं हूँ तो माँ कर लेने दो उन्हें उनके मन की। मैं तो बस इतना ही चाहती हूँ कि वह ख़ुश रहें। अब तू बता कौन है वह और अब तेरा इरादा क्या है?”
“कोई नहीं है माँ।”
“देख ले, सोच ले प्रतीक, सही ग़लत का मापदंड तो हर इंसान के पास होता है। बस कौन उसके साथ न्याय करता है, यह उस इंसान के ऊपर निर्भर करता है। तुझे भी जो सही लगे वही कर। यह उम्र नहीं है तुझे समझाने की। जितना समझा सकती थी पहले सब कर चुकी हूँ।”
प्रतीक चुपचाप था, तनाव ग्रस्त जीवन में अपने आप को उसने ख़ुद ही तो डाला था वरना क्या कमी थी निर्मला में?
उधर बुलबुल को इस समस्या का कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था। वह सोच रही थी यहाँ उल्टी वगैरह किसी भी लक्षण से यदि जीजी और माँ को पता चल गया तब क्या होगा? उसने बहुत सोचने के बाद इस उलझन को सुलझाने के लिए निर्मला को चुना। इतने समय में उसने जाना था कि निर्मला जीजी काफ़ी सुलझी हुई और समझदार हैं। उसे उन्हें सब कुछ सही-सही और सच-सच बता देना चाहिए। क्योंकि जो कुछ भी हुआ है अनजाने में ही हो गया है। वैसे भी ज़्यादा लोगों को पता चले उससे अच्छा है कि जीजी से सलाह ले लेना चाहिए।
वह रात को निर्मला के कमरे में गई और जाकर पूछा, “जीजी मुझे आपसे कुछ बहुत ज़रूरी बातें करनी हैं क्या मैं अभी बात कर सकती हूँ?”
“अरे हाँ बुलबुल आ जाओ इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ बैठो मेरे पास, हाँ बोलो क्या बात करना चाहती हो?”
“जीजी …” इतना बोल कर उससे आगे कुछ भी बोलने की बुलबुल की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
निर्मला दंग थी, वह समझ रही थी कि बुलबुल शायद उसके और प्रतीक के विषय में सच बताना चाह रही है लेकिन क्यों? वह चाहे तो चुप रहकर यह बात छुपा सकती है।
तब तक फिर बुलबुल ने कहा, “जीजी …”
“बुलबुल जो बोलना है बोलो, डरो नहीं मैं तुम्हारी ननंद हूँ और ननंद तो हमेशा बहन जैसी होती है। तुम भी तो मेरी छोटी बहन जैसी ही हो।”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः