बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई - 1 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई - 1

बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई भाग - 1


आप सभी प्रेरक पाठक गणों को मेरा (संदीप सिंह का) राम-राम, गुरु आप लोग खुशहाल और चकाचक (स्वस्थ) होंगे| ईश्वर का आशीर्वाद आप सभी पर सदैव बना रहे और अना-पेक्षित हालातों की बारिश मे छाते की तरह आपकी रक्षा करें |


चलिए आज मै आपको भूतकाल की उन यादों मे ले चलने का प्रयास करता हूँ , जिन्हे याद करके आज तो हम सभी की बत्तीसी निकल आती है, पर उस समय शामत बन कर टूटती थी।


जी हाँ, मै बात करने जा रहा हूँ बचपन मे बाबू जी (पिता जी) की फ्री स्टाइल (मुक्त - शैली) कुटाई (पिटाई) की।
अब ये बात और है कि किसी का नसीब बेहतरीन रहा हो और इस शैली का रस्वादन की अनुभूति से वंचित रह गए हो, कोई बात नही आज आनंद उठा सकते है, किंतु अधिकतर लोगों ने सदेह अनुभूति प्राप्त की है, अब मुकर जाएं तो आपका बड़प्पन है।


खैर जो भी हो, उस दौर मे जब बाबू जी पुरी तन्मयता से पीटते थे, तो कई बार दिमाग ए शरीफ़ शून्य मे गोते लगाने लगता था कि गुरु हमसे गलती कौन सी हुई जो "बाप जी" इतनी शिद्दत से कूट रहे है।


यदा कदा तो इतनी उन्मुकता से हुई पिटाई मे स्थितियाँ रक्तरंजित हो जाती थी, बदन के पोर पोर से कराहता दर्द उपर से, डॉ.तिवारी भईया के पास जाना पड़ता प्राथमिक उपचार हेतु अरे वही फर्स्ट -एड कहते है जिसे मौसीभाषा मे।


मलहम पट्टी सुई और चंद रंगीन गोलियां, और दो दिन बाद फिर अपने ढ़र्रे पर। पिता जी तो आखिर पिता जी होते है, लिस्ट (सूची) मे हमेशा नूतनता लिए शिकायतों का पुलिंदा, और उसके अनुरूप दंडात्मक विधाएं जिनका वो हमेशा प्रयोग करते थे।


कभी थप्पड़ जिसे चांटा, रहपट, तमाचे आदि नामो से भी जाना जाता है परंतु हम मेजावासी विशेषतः थोपी के नाम से ज्यादा परिचित हैं, कभी डंडा, छड़ी, सोंटा, सुट्कुनि, कनई, गोदा, लबेदा नामरूपी अस्त्रों से, पीठ, पिछवाड़ा, हाथ ,पैर पर यहाँ तक की कभी कभी तो मुंडी भी लपेटे (दायरे) मे आ जाती थी।


हाथ बांधना, उल्टा लटकाना,2-3 घंटे घर से बाहर निकाल कर रखना, जूते -चप्पलों का भी सहज और उन्मुक्त प्रयोग कर विधिवत पिटाई आदि नाना प्रकार के अनोखे दंड विधाओं का प्रयोग उस सूची मे सूचीबद्ध रहा करते थे ,जो शायद सभी आदरणीय पिता वर्ग का जन्मसिद्ध अधिकार होते हैं।


इनमे से कई बार वैधानिक कारण भी रहते थे जैसे पढ़ाई, गलत बोलना,अपशब्दों का प्रयोग, इत्यादि कारणों मे भी उच्चकोटि की जूतम् पैजार हो जाती थी।


▪️इतने प्रश्न (क्वेश्चन), शब्द अर्थ (मीनिंग) क्यों याद नही हुए?


▪️इतनी देर तक मध्य दोपहर मे नदी/नाले मे क्यों नहाये ? गृहकार्य (होमवर्क) क्यों नही हुआ ?


▪️गुरुजनों (टीचर्स) ने फलां शिकायत क्यों की?


▪️स्कूल मे शरारत क्यों की? फलां लड़के को क्यों मारा ?


▪️फलानें के पेड़ से आम, अमरूद, पपीते क्यों तोड़े ?

▪️फलानें के खेत से चना के झाड़ क्यों उखाड़े ?


▪️पंडित जी के पेड़ से चकोतरा (एक प्रकार का बड़ा निंबू) , कैथ, जामुन क्यों तोड़ा ?


▪️अपनी मित्रमंडली के साथ शरारत क्यों की ?
आदि आदि...।


कई बार तो संयोग हो जाता था, पिता जी कुटाई के लय मे आते थे पर तभी किसी आगंतुक, अतिथि के अचानक आगमन से राहत मिल जाती थी।


क्योंकि तब पिता जी के हाथ रुक जाते थे और कुटाई कार्य स्थगित हो जाता था,तो कई बार एक दो चपाट पड़ जाते थे, बाद मे सिर्फ डांट ही मिलती थी।


कभी जब शिकायत आती और उस दिन त्योहार,विशेष दिवस , जन्मदिन हो तो भी सिर्फ हल्की समझाइस और चेतावनी भर मिलती थी, किंतु बावजूद विधिवत तुड़ाई के स्नेह भी भरपूर मिलता था।

क्रमशः......... भाग -2

✍🏻संदीप सिंह (ईशू)