बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई - 2 संदीप सिंह (ईशू) द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई - 2

बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई - 2

उपरोक्त सभी कारण वैधानिक होते थे, किंतु कई लोगों के कृत्य जो कुकृत्य की श्रेणी मे आते थे उन्हे यहाँ उल्लेखित नहीं किया जा सकता।


इसका कार्यकाल अक्सर किशोरावस्था आता है, किंतु ना इस प्रकार की गुश्ताख़ियाँ हुई ना अनुभव है।


कारण कुछ भी हो किंतु वह पिता का पुत्र के साथ अगाध प्रेम युक्त अनुशासन होता था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था मे पिता का संरक्षण, कठोरता नितांत आवश्यक थी हमें संस्कारित, चारित्रिक, सामाजिक, व्यक्तिगत जीवन की सीख और समझ के लिए।


जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को पानी डाल घड़े योग्य बनाने हेतु पाँव (पैर) से रौंदता हैं, फिर चाक (कुम्हारों का बर्तन बनाने वाला गोल पत्थर का उपकरण) पर रख गोल गोल घुमा कर घड़े का आकर देता हैं,
फिर उसे लकड़ी की थपकी से पीट पीट कर पूर्ण घडा़ बना कर, उसे आंव ( जिसके अंदर कच्ची मिट्टी के बर्तन रख कर और ढँकते है) पर भयंकर आग मे डाल कर पकाता है, तब वह घडा़ गेरूई रंगत पर आता है।


और पानी को शीतल करता है यानि सामाजिक उपयोग लायक होता है,और जन मानस के हितों की पूर्ति करता है।
इसी भाँति प्रत्येक पिता अपने पुत्र को बेहतर निखारने को कुम्हारों की तरह मुक्त शैली (फ्री स्टाइल) मे कूटते हैं।


यह कुटाई/पिटाई ना हो कर पिता द्वारा अपनी संतानों को बेहतर भविष्य के लिए की जाने वाली अनुशासनात्मक प्रकिया हैं जिसे वो अमल मे लाते है और पूरी सख्ती से हमें भी निर्वहन करने को बाध्य और प्रेरित करते हैं।

ठीक उसी प्रकार जैसे एक माली बड़े तरीके से एक फूल का पौधा लगाता है और उसे बेहतर बनाने को आस पास की सभी झाड़ियों, बेलो को साफ करता है ताकि पौध की प्रगति बाधित ना हो।


जरूरत पड़ने पर यदि पौध की कोई शाखा गलत दिशा मे बढ़ती है तो कैंची से कुतर देता है।


इसी प्रकार पिता भी हमें हमारी गलत संगतो से बचाने के लिए गलत साथियों से दूर करते है, बुराई, आदत, मित्र, लापरवाही,रूपी बेलों को कुतर कर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमें संस्कारों से लबरेज, उज्ज्वल चरित्र और सामाजिक जीवन की शिक्षा प्रदान करते हैं।

तदोपरांत हम अच्छे नागरिक, रिश्तों की व्यवहरिकता, नैतिक दायित्यों का निर्वहन करने के लायक होते हैं,
और सैन्य अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, कर्मी, कुशल कृषक, अभियंता (इंजी.), व्यवसायी, निजी कर्मी, इत्यादि के रूप मे देशहित और सामाजिक दायित्यों का निर्वहन करते हैं।


व्यक्तिगत जीवन मे भी अच्छे पति पत्नी, भाई, चाचा, पुत्र आदि के रूप मे परिवारिक दायित्यों का निर्वहन करते हैं फिर स्वय्ं पिता माता बन कर अपने बच्चों का पालन पोषण करते है।


जब अपनी संतान होते ही हम मे भी एक पिता का जन्म हो जाता है और हम भी अपने पिता की राह पकड़ अपने बच्चों का बेहतर भविष्य संवारने का प्रयत्न करते हैं और तब महसूस होता है की पिता जी ने जो कुछ किया था हमारे भले के लिए ही था।


एक माता पिता ही होते है जीवन मे जो अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते है अपनी संतानो के लिए वह भी बिना किसी लोभ और लाभ की अपेक्षाओं के बिना। पिता ही होता है जिसके संघर्षों और अनुभवों से हमें जीवन मे आत्मविश्वास की अनुभूति होती है।


पिता से हमें जो सबसे बड़ी सीख मिलती है कि,


" जीवन मे स्वयं ही इतना संघर्ष करों की अपनी औलाद को प्रेरित करने के लिए किसी अन्य की उपलब्धियों का उदाहरण ना देना पड़े । "


अमूमन सभी बच्चों के प्रथम प्रेरणा स्त्रोत (आईडल) पिता ही होते हैं।


किंतु दुर्भाग्य की बात है कि आज हमारे समाज मे हमारे आस पास ही कई सारे अपवाद भी हैं जिनकी वजह से बृद्धवस्था मे कई माता पिता को दर दर की ठोकरें खानी पड़ती है, हाथ फैलाना पड़ता है।


भारतवर्ष जैसे सनातनी, संस्कारित, सांस्कृतिक, बौद्धिक,आदर्श शोधित जीवन शैली से सुसंपन्न, लोकतांत्रिक, देश मे ही जिन माता पिता ने अपनी औलादों के सुखद जीवन की सभी आधारभूत आवश्यकताओं के लिए अपने जीवन का प्रत्येक क्षण, संपूर्ण जीवन न्यौछावर कर देते हैं, रहने को घर देते हैं उन्ही की शिक्षित संताने उन्हे बृद्धाआश्रम (ओल्ड एज होम) देते हैं।


कई बार तो हाथ तक उठा देते है, अपमानित , तिरस्कृत करते है, तब मुझे लगता है कि ये वो पिता द्वारा अनुशासनात्मक परवरिश को गलत समझते हैं और फिर इसी का बदला लेते है उन्हे प्रताड़ित करते हैं और बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाय गर्त मे धक्का मार देते हैं।


यद्धपि ऐसा करते वक्त वे भूल जाते हैं की उनकी औलादें देख और सीख रही है, जो उनके साथ वही व्यवहार करेंगी उनके बुढ़ापे के समय।


एक पिता अपनी महत्वाकांक्षाओ, इच्छाओं, सपनों का भी गला घोंट देते हैं, औलाद के सपनों, आवश्यकताओं, उच्च शिक्षा, बेहतरीन वस्त्रों की पूर्ति करने के लिए फिर चाहे वह संपन्न, नौकरीपेशा, धनाड्या , व्यवसायिक पिता ( रिच डैड) हो अथवा मध्यमवर्गीय ,गरीब,किसान, दिहाड़ी मजदूर पिता ( पुवर डैड) क्यों ना हों।


मध्यमवर्गीय किसान पिता का त्याग अनमोल होता है, किंतु यह संतान की समझ पर निर्भर होता है।
हमें माता पिता की डांट फटकार, कुटाई, पिटाई से किसी भी प्रकार का गलत अवधारणा नही स्थापित करनी चाहिए मन मस्तिष्क मे, क्योंकि उन्होंने हमे निखारने, बेहतर उज्ज्वल भविष्य के लिए करते हैं।


दिन रात आपके ही बारे मे सोंचते है, अपनी नींद, भूख, प्यास, शौक, थकान, सब भुला कर, खुद भूखे पेट सोये होंगे पर अपने बच्चों को भरपेट खिलाया है।


हम ताउम्र उनके इन उपकारों का लेस मात्र भी चुकता नही कर सकते, यह अनमोल है, अतः आप स्वयं ही हमसे ज्यादा शिक्षित, समझदार और बुद्धिजीवी है। किसी महान इंसान ने कहा था कि,


"सबसे अमीर घर वह होता है, जिस घर के बड़े बुजुर्गों के होठों पर मुस्कान होती है |"


आप अपने और माता पिता के साथ के बचपन के अनुभवों, यादों को कमेंट बॉक्स मे अवश्य लिखे, माँ पिता वह ईश्वर है जिनका हमें साक्षात् दर्शन मिलते है और उनका सानिध्य मिलता है।


अब अनुमति दीजिये,शेष आपके सम्मुख नये लेख के साथ उपस्थित होने के वादे के साथ जाने से पहले आप सभी का सहृदय धन्यवाद ,आपने अपना कीमती समय और स्नेह दिया, पुनः धन्यवाद।


✍🏻संदीप सिंह (ईशू)
।। समाप्त ।।
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