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हस्त रेखा ज्योतिष विज्ञान

हस्त रेखा ज्योतिष विज्ञान -

सृष्टि में मनुष्य मात्र ऐसा प्राणी है जो अतीत वर्तमान भविष्य के प्रति जागरूक रहता है अतीत से सीखने या प्रेरित होता है तो वर्तमान का भोग करता तथा भविष्य के प्रति चिंतित एवं जागरूक रहता है।

अतीत को जानता है वर्तमान का भोग ही करता है चिंता सिर्फ भविष्य के प्रति होती है जिसके लिए वह जागरूक रहता है ।

सदैव भविष्य को जानने कि उसमें जिज्ञासा जगृत रहती है जहा ज्योतिष विज्ञान का पदार्पण होता है ।

अपने भविष्य के प्रति अधिक जिज्ञासा एवं जागरूकता भी उन लोगों में ही होता है जो कुछ सक्षम है।

विश्व एवं भारत में करोड़ों ऐसे लोग है जो दो वक़्त कि रोटी के लिए ही परेशान रहते है उनको अपने भविष्य के प्रति चिंता करने का समय नहीं रहता है।

मैंने आज तक कभी नहीं सुना कि किसी भी ज्योतिष विद्वान द्वारा किसी ऐसे इंसान को बताया गया हो कि तुम एक न एक दिन बहुत बड़े इंसान बनोगे ।

नरेंद्र मोदी जी को बाल्य काल में किसी ज्योतिषी ने बताया हो कि आप प्रधान मंत्री बनेंगे या किसी ने राहुल गांधी को बताया हो कि प्रधान मंत्री बनने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा या किसी ने धीरूभाई या आडानी को बताया हो कि वे देश के बड़े पूंजीपति या उद्योगपति बनेंगे ।

हा सफलता के साथ भविष्य वानियो का दौर शुरू हो जाता है जो किविदांती अधिक होती है जबकि सत्य यह है कि ज्योतिष अकल्पनीय कि वास्तविकता कि गणना एवं भविष्य वाणी का विज्ञान है।

इसका तात्पर्य यह की ज्योतिष विज्ञान है गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाना ज्योतिष का विश्वसनीय पक्ष है।

ज्योतिषी मेरा मत एवं स्पष्ट मत है कि ज्योतिष एक विज्ञान है जो परिकल्पना शोध एवं निश्चित सिद्धांतो पर आधारित है।

ज्योतिष कि जितनी भी परम्परागत पुस्तके जो उपलब्ध है जैसे बृहद परासर होरा, बाराह मिहिर,मुहूर्त चिंतामणि,भृगु संहिता,रावण संहिता आदि में कही भी ज्योतिष को धार्मिक आस्था का प्रश्न नहीं माना गया है चारो वेद,उपनिषदों,पुराणों में कही भी इसके साक्ष नहीं है।

उन्नीसवीं सदी के माध्यम के बाद ज्योतिष विज्ञान को धर्म आस्था से जोड़ने कि प्रकिया शुरू हुई जो निरंतर चल रही है वैसे भी सनातन धर्म कि विशिष्टता में एक यह है ज्योतिष जन्म से मृत्यु तक किसी भी प्राणी के जीवन का सत्य दर्पण है जिसमें प्राणी अपने सम्पूर्ण जीवन यात्रा को देख सकता है।

ज्योतिष में धर्म आस्था सिर्फ आचरण संस्कृति को निर्धारित करने मात्र से है ।

ज्योतिष कि गणना प्रथम दृष्टया जन्म के समय के आधार पर कि जाती है क्योंकि नवजात कि शारीरिक बनावट हस्त रेखा आवाज़ चाल नहीं होती सिर्फ जन्म समय ही गणना का आधार होता है।

अब यह भी सिद्धांत दिशाहीन होता जा रहा है क्योंकि लगभग साठ प्रतिशत जन्म सीजर द्वारा होते है जो निर्धारित प्रक्रिया है अधिकतर माता पिता जिनकी ज्योतिष में आस्था है शुभ मुहुर्त चिकित्सक को पहले ही बता देते है।


जात तक जब किशोर,युवा प्रौढ होता है तब शारीरिक विकास परिलक्षित होते है जन्म के साथ अंक ज्योतिष भी गणना के लिए उपलब्ध रहता है।

शारीरिक विज्ञान एवं उसके विकास के साथ ज्योतिष गणना का संबंध है उसी के आधार पर हस्त रेखा ज्योतिष कि गणना की जाती है ।

लोगों में अपने हाथ कि रेखाओं के आधार पर भविष्य जानने कि जिज्ञासा रहती है जबकि सत्य यह है कि रेखाएं बनती और मिटती रहती है ।

हस्त रेखा ज्योतिष विज्ञान कि बहुत सरल एव मानव मन को आकर्षित करने वाली ज्योतिष विधा है जो कर्म सिंद्धान्त पर ही आधारित है ।

साधरणतया जब भी लोंगो के मध्य ज्योतिषीय चर्चा चलती है तुरंत लोग अपने हाथ दिखाते हुए प्रश्न पूछते है कि मेरा भविष्य कैसा है जानने को इच्छुक हो जाते है यहाँ मशहूर गायक स्वर्गीय जगजीत सिंह के एक ग़ज़ल कि लाइन बहुत प्रसंगिग लगती है-(रेखाओं का खेल है मुकद्दर ,रेखाओं से हम मात खा रहे है) खैर हस्त रेखा के बनना एव मिटना एक सामान्य प्रक्रिया है जो व्यक्ति के कर्म प्रारब्ध के काल समय पर निर्भर होती है जिसका संबंध जन्मांग समय द्वारा निर्धारित या ज्योतिषीय गणना से हो ना ही आवश्यक है ना ही अनिवार्य ।

कभी कभी किसी किसी मनुष्य के हाथ मे बहुत सी रेखाएं होती है तो किसी के हाथ मे सिर्फ एक दो या कभी कभी सिर्फ एक ही रेखा होती है जन्म के समय किसी जातक के हाथ को देखकर उसके भविष्य का निर्धारित करना विल्कुल असंभव है ।

रेखाओं का बनना या बिगड़ना जातक के शारीरिक विकास के साथ एक निरंतर प्रक्रिया है।

जो श्रेष्ट जातक जन्म लेते है उनके हथेली या पैर में ऐसे कुछ प्रतीक रेखाएं जन्म से ही होती है जो आयु एव शारिरिक विकास के साथ और भी स्पष्ट होती जाती है जैसे भगवान श्री कृष्ण के पैर में मछली एव हाथ मे कमल के प्रतीक थे तो महात्मा बुद्ध में भी ये प्रतीक बालपन से उपस्थित थे।

इस प्रकार के जातक कभी कभार जन्म लेते है जो स्वय ज्योतिष समय काल को परिभाषित करते है सम्मान्यतः सम्भव नही होता।

जिस किसी मनुष्य के हाथों में रेखाओं कि संख्या कम होती है वह उन लोंगो से अधिक भाग्यशाली ताकतवर होता है जिनके हाथो में अधिक रेखाएं होती है या रेखाओं का जाल बिछा होता है ।

रेखाओं का जाल बिछा होने के कारण हाथ मे तरह तरह कि आकृतियां भ्रम को जन्म देती है जैसे त्रिकोण जैसी आकृति,मछली जैसी आकृति आदि आदि जिसके हाथो में सिर्फ एक रेखा हथेली के एक सिरे से दूसरे सिरे तक होती है वह बहुत पुरुषार्थी एव भाग्यशाली व्यक्ति होता है ।

साधारणतया किसी मनुषय के हाथ मे जीवन रेखा ,भाग्य रेखा,एव हृदय रेखा,कर्म रेखा,संतान रेखा,आदि जो हस्तरेखा विशेषज्ञों द्वारा बड़े बड़े मैग्निफाई ग्लास से शुक्ष्म एव बारीक अध्ययन से परिभाषित कि होती है ।

मुकद्दर ,भाग्य,समय काल एव कर्माधिन होता है और रेखाओं का निर्माण या समापन उसकी एक नियमित प्रक्रिया है अतः हस्त रेखा शारीरिक विकास एव उसके कारण पैदा होने वाले एव विकसित होने वाले लक्षणों जैसे
व्यक्ति कि आवाज़ ,उसकी चाल,उसकी शारिरिक बनावट ये सभी किसी भी व्यक्ति के वर्तमान में उसके भविष्य के निर्धारण का कारक कारण होते है जो एक निश्चित समय के बाद अपरिवर्तनीय होती है इसमें संसय नही हो सकता जिसके कारण उसके जीवन की गति निर्धारित होती है।

जबकि हस्त रेखाएं जीवन पर्यन्त बनती एव बिगड़ती रहती है इन दोनों के मूल में समय काल ही प्रमुख होता है जिसके अनुसार भविष्य का निर्धारण किया जाता है ज्योतिष विज्ञान है जो संस्कार संस्कृत आस्था विश्वास के धरातल पर निर्धारित होता है ।

जो कर्म एव धर्म का मूल स्रोत मनुष्य के शारिरिक बनावट आवाज़ एव चाल पर उसके भविष्य पर भविष्यवाणी विल्कुल स्प्ष्ट और सटीक होती है और यह मनोविज्ञान या मनोवैज्ञानिक विषय कदापि नही है कारण मनोवैज्ञानिक या मनोविज्ञान व्यक्ति के प्रबृत्ति के अनुसार उसके विषय वस्तु कि व्यख्या करता है ना कि भविष्य की।

हस्तरेखा ज्योतिष विज्ञान कि एक सहज सरल विधा है जो मनुष्य को स्वय के भविष्य के लिए जागरूक जिम्मेदार एव सजग सफल बनाने को प्रेरित प्रोत्साहित करती है जो सत्य भी है ।

हाथ कि हथेलियों एव उंगलियों कि बनावट देख कर भी भविष्य का निर्धारण किया जाता है जो जौ प्रतिशत सही होता है जिसके हाथ मे जितनी कम रेखाएं होती है वह अपेक्षाकृत जिनके हाथ मे रेखाओं का जाल होता है उससे अधिक सफल सम्माननित व्यक्ति होते है ।

अमूमन पैर में रेखाएं नही होती है बहुसंख्यक व्यक्तियों के पैर में कोई रेखा नही होती है पैर विल्कुल सपाट होते है कभी कभी विशेष व्यक्तियों में ये रेखाएं परिलक्षित होती है जो उसे अति विशिष्ट व्यक्ति बनाती है।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।

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