1-आचार्य श्रेष्ठ विद्यसगर जी --
जैन मुनि विद्यासागर जी दिगम्बर जैन परम्परा के तेजस्वी ओजस्वी धर्म धुरी ध्वज है जिन्होंने अपनी विद्वता तपस्या तेज से धर्म को नए आयाम में परिभाषित किया है जो सर्वधर्म समभाव में जैन धर्म की वास्तविकताओं को जीवन के मौलिक मुल्यों के साथ स्थापित कर जन्म जीवन के उद्देश्यों को पथ प्रकाश प्रदान करता है।
प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य है उनकी विद्वता तप के लिए ब्रह्मांडीय श्रेष्ठता प्राप्त है आठ भाषाओं के ज्ञाता है।
2-आचार्य श्रेष्ठ का जीवन -
पूज्य आचार्य का जन्म 10 अक्टूबर -1946 को शरद पूर्णिमा के दिन कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में हुआ था।पिता मालप्पा एव माता मंती सर्जक थे आचार्य ज्ञान सागर 22 वर्ष की उम्र आचार्य ज्ञान सागर ने दीक्षा दी जो शक्ति सागर वंश के थे 22 नवंबर1972 को आचार्य ज्ञान सागर जी द्वरा आचार्य पद दिया गया आचार्य के बड़े भाई गृहस्थ थे शेष परिवार के सभी लोग सन्यास ले चुके थे आचार्य विद्यासागर ने दीक्षा ग्रहण की और मुनि योग सागर मुनि समय सागर कहलाये।
अवतरण दिवस
दीपोत्सव आवनी अवतार का उत्सव संस्कृति संस्कार शंखनाद विद्यासागर आचार्य।।
जीवन आनन्द बैभव का बाईस साल त्याग दिया शुख भोग का संसार धारण किया सन्यास तप का सार सारांश वर्तमान विद्यासागर आचार्य।
3-वीणा वादिनी सुत - आचार्य श्रेष्ठ विद्या सागर
आचार्य को संस्कृति प्रकृति सहित बिभन्न आधुनिक भाषाओं हिंदी मराठी एव कन्नड़ में विशेषज्ञता प्राप्त है हिंदी संस्कृति में अनेकों रचनाये की है ।
बहुत से शोधकर्ताओं ने आचार्य के कार्यो पर शोध ग्रंथ लिखे है।
आचार्य के शिष्य मुनि क्षमा सागर जी ने आचार्य श्रेष्ठ पर आत्म अन्वेषी नामक किताब लिखी है जिसका अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है एव भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है ।
मुनि प्रणम्य सागर जी ने आचार्य श्रेष्ठ के जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक पुस्तक लिखी है।
4-कृतियां-
निरंजना शतक,भावना सतक, परीषह,जावा सतक, सुनीति सतक, शरमाना सतक ,नर्मदा का नरम कंकड़ ,डूबा मत लगाओ डुबकी,तोता रोता क्यो, काव्य मूक माटी जो बिभन्न संस्थाओं के हिंदी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है गुरुवाणी,प्रवचन परिजात ,प्रवचन प्रमेय,आदि प्रवचन संग्रह आचार्य कुंद कुंद के
समयसार ,नियमसार,और जैन गीता आदि पद्यों का अनुबाद शसमिल है ।
अनेको धार्मिक अनुष्ठानों के प्रणेता प्रेरणा स्रोत है आचार्य श्रेष्ठ है।
4-आभा मण्डल-
आचार्य ने अपने ज्ञान तप से स्वयं के वर्तमान में ही शौर्य सा चमकता आभा मण्डल निर्मित किया है जिसकी किरणे भविष्य में समाज को धार्मिक एव संस्ककरिक विरासत के पथ को प्रकाशमय आचार्य की इच्छओं के अनुसार करेंगी जिसमें जिसमे 130 मुनिराज,172 आर्यीकाओ 20 एलक जी 14 क्षुल्ल गणको को दीक्षित किया गया है मुनि श्री समय सागर जी मुनि श्री प्रणम्य सागर जी मुनि श्री चिन्मय सागर जी मुनि श्री अभय सागर जी मुनि
क्षमा सागर जी आदि प्रसिद्ध संत सम्मिलित हैं दिगम्बर साधु आचार्य सम्पूर्ण भारत मे आचार्य विद्यासागर जी का अनुपालन करते है।
उद्देश्य पथ आत्म कल्याण वीर
अतिवीर वधर्मान सन्मति नामो परम्परा का सागर आचार्य
5-आचार्य श्रेष्ठ कि साधना -
आचार्य व नैतिकताओं मर्यादाओं के साथ परिभाषित किया है जन्म जीवन के मौलिक उद्देश्यों एव सच्चाई के मध्य जीवन यात्रा के अहम पढ़ावो की मर्यादाओं को निरूपित किया है आज के वर्तमान समय मे जहां सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रदूषण की संस्कृति से जूझ रहा है वहाँ पूज्य विद्यासागर जी ने धार्मिक संसास्कृतिक संस्कारो का जो निरूपण किया है वह जन्म जीवन रिश्ते नाते समाज राष्ट्र के वैज्ञानिक काल मे धर्म के स्वरूप को विकृत वैचारिक भौतिकता से निकालने एव सत्य दिशा दृष्टि दृष्टिकोण को स्वय के तप त्याग के सत्यार्थ में प्रस्तुत किया है जो निश्चय ही मानवीय मूल्यों को अक़्क्षुण रखने एव विकास के लिए उजियार है।आचार्य श्रेष्ट ने विविधतापूर्ण समाज के विविध धर्मो के मध्य जैनिज़्म के त्याग और तप की अवधारणा के सत्त्यार्थ के प्रकाश से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आलोकित करते हुए अहिंसा हिंसा एव धर्म अधर्म न्याय अन्याय की यथार्थता को आचरण की संस्कृति के द्वारा निरूपित तो किया ही है साक्षात प्रस्तुत होकर प्रस्तुत भी किया है अतः यह कहना कदाचित अनुचित नही होगा कि ब्रह्म के ब्रह्मांड में दो प्रमुख आयाम अवयवों में प्रकृति एव प्राणि के सत्य में प्राणि में निहित ब्रह्म स्वरूप का स्वय साक्षात दर्शन कर जगत कल्याण हेतु दिगम्बर जैन की वास्तविकता में स्वय को समर्पित किया है जो विशुद्ध रूप से सात्विक निर्मल निर्झर निर्विकार निर्विवाद जन्म जीवन धर्म कर्म सांस्कार संस्कृति का आवाहन आचार्य श्रेष्ट मुनि महिमा मंडित करती जगत कल्याण का मार्ग प्रसस्त करती है।
दिगम्बर वह जिसका परिधान आकाश है पृथ्वी नग्न है दिगम्बर भी पथ्वी आकाश की तरह संत जीवन मे कुछ भी छिपाने के लिए वस्त्र की आवश्यकता नही होती जैसा जन्म वैसा ही जीवन सीधा सिंद्धान्त है कठोर साधना अन्य धर्मों के लिए प्रेरणा प्रदान करता है।
जिन उपासना के उन्मुख विद्यासागर महाराज सांसारिक आडम्बरो से विरक्त है जहाँ भी विराजते हैं वही उनका जन्म दिवस शिष्यो द्वारा मनाया जाता है तपस्या उनकी जीवन पद्धति ,अध्यात्म उनका साध्य विश्व मंगल उनकी पुनीत कामना सम्यक दृष्टि एव संयम उनका संदेश है जनकल्याण में नीरत रहते हुए आचार्य समग्र देश मे पद विहार करते है।युग की तपस्वी परम्परा में आचार्य श्री श्रेष्ट एव अग्रणी है।
संत कमल के पुष्प समान लोक जीवी रूपी वारिधि में रहता है संचरण करता है डुबकियाँ लगाता है किंतु डूबता नही है यही भारत भूमि के प्रखर तपस्वी चिंतक कठोर साधक राष्ट्र संत आचार्य श्रेष्ट विद्यासागर जी महाराज का सत्यार्थ है।
सुख भोग विलास का
स्वयं त्याग जीवन सत्य आविष्कार अवतार के
सर्व श्रेष्ठ आचार्य।।
जीवन की सच्चाई निकल
पड़े त्यागा भौतिकता
का संसार सिंद्धान्त श्रेष्ठ आचार्य।।
जीवन यात्रा आत्मा की परम यात्रा की यात्रा परमात्मा का सत्य साकार श्रेष्ठ आचार्य।।
आत्म बोध बट बृक्ष
युग पारिजात उद्देश्य उपदेश
युग कल्याण सोपान का श्रेष्ठ आचार्य।।
युग धर्म मर्म करुणा सत्य अहिंसा
कि आत्मा के परमात्मा का यथार्थ सत्यार्थ विद्यसगर आचार्य।।
जन्म जीवन
काल चक्र की गति
कर्म धर्म परिणाम शरीर प्राण।।
गति काल या कर्म
फल पुरस्कार जीवन
मूल्यों का आविष्कार
मानव शरीर मे परम्
शक्ति सत्ता का अवतार।।
कर्तव्य दायित्व बोध
निर्बहन करने स्वयं
सिंद्धान्त श्रेष्ठ आचार्य।।
मानव शरीर
जीबन प्रकाश
युग दृष्टि मार्ग सत्यार्थ।।
शासन सत्ता धर्म विमुख
जीव जीव का शत्रु
जीवात्मा में परमात्मा अंश
मंत्र आचार्य श्रेष्ठ का सार।।
अहिंसा अपरिग्रह अनेकान्तवाद
मानवता कल्याण सिद्धान्त
युग चेतना मौलिक महत्व काल प्रवाह मुनि आचार्य महान।।
6-मानव कल्यार्थ समर्पित-
विकलांग शिविरों के माध्यम से कृतिम अंगों श्रवण यंत्र ,बैशाखियों ,तीन पहिये की साइकिलों वितरित की जाती है एव आंख का ऑपरेशन दवाओं एव चश्मों का निशुल्क वितरण निशुल्क किया जाता है अमर कंटक में विकलांग निःशुल्क सहायता केंद्र चल रहा है जीव एव पशु दया की भवनाओं से अनेको राज्यो में गौशालाओं का संचालन किया जा रहा है ।आचार्य जी कि भवना है कि पशु मांश पशु मांस के जन जागरण का अभियान किसी दल समाज या धर्म तक सीमित ना रहे अपितु समाज के सभी लोग अपनी सहभागिता सुनिश्चित करे ।आचार्य श्रेष्ठ कि प्रेरणा से चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला,औषधालय ,यात्री निवास,त्रिकाल चौबीसी आदि की स्थापना की गई है।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।