अपने मेटाबॉलिज्म को जानें S Sinha द्वारा स्वास्थ्य में हिंदी पीडीएफ

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अपने मेटाबॉलिज्म को जानें

 


                                                           अपने मेटाबॉलिज्म को जानें 


हम अक्सर डॉक्टर या दूसरों के मुंह से मेटाबॉलिज़्म के बारे में सुना करते हैं  . मेटाबॉलिज़्म को हिंदी में उपापचय या चयापचय भी कहते हैं  . 


 मेटाबॉलिज़्म क्या है - मेटाबॉलिज़्म एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जो हमारे शरीर के सेल में होती है  . इस दौरान हमारे द्वारा लिया गया भोजन एनर्जी यानि ऊर्जा में परिवर्तित होता  है  . हमारे शरीर को किसी भी काम के लिए चलने फिरने से ले कर ग्रो करने के लिए भी एनर्जी की आवश्यकता होती है  .  दिन भर शरीर को अनेक आवश्यक काम करने होते हैं , जैसे - सांस लेना , ब्लड सर्कुलेशन , पाचन , बॉडी टेम्परेचर मेंटेन करना ,  बोन और मस्ल ( मांसपेशियाँ  ) ग्रोथ और मेंटेनेंस आदि  . इन सभी कामों के लिए एनर्जी की जरूरत पड़ती है  . 


हमें कितनी एनर्जी की आवश्यकता है यह व्यक्ति विशेष और उसके BMR पर  निर्भर करता है  . BMR का मतलब बसाल मेटाबॉलिक रेट (  Basal Metabolic Rate ) है  . हमारी बेसिक या बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए   कम से कम जितनी  कैलोरी हमारा शरीर बर्न करता है ,वह संख्या BMR  है . इसे आमतौर पर RMR  रेस्टिंग मेटाबॉलिक  रेट भी कहते हैं . जब कभी हम अपना वजन कम करना चाहते हैं या एक हेल्दी वजन मेंटेन करना चाहते हैं उस समय मेटाबॉलिज़्म का रोल अहम होता है . किसी का मेटाबॉलिज़्म फ़ास्ट होता है तो वह ज्यादा खा कर भी स्लिम रह सकता है . इसके विपरीत कुछ लोग उतना ही खा कर बहुत मोटे हो सकते हैं . क्या हमें अपने मेटाबॉलिज़्म पर कंट्रोल है ? हालांकि किसी व्यक्ति विशेष का मेटाबॉलिज़्म जेनेटिक कारणों से नेचुरली फ़ास्ट या स्लो हो सकता है फिर भी इसका कंट्रोल काफी हद तक हम स्वयं भी कर सकते हैं . यह कंट्रोल बहुत आसान भी है . 


इन  कारणों से मेटाबॉलिज़्म प्रभावित होता है - 


आयु - आयु बढ़ने से मेटाबॉलिज़्म स्लो हो जाता है 
लीन मस्ल मास -  मस्ल  मास फैट की तुलना में ज्यादा कैलोरी जलाता है 
हॉर्मोन - कुछ हॉर्मोन की मात्रा मेटाबॉलिज़्म के रेट पर ज्यादा असरदार होते हैं - जैसे थायरॉइड , कोर्टिसोल , इन्सुलिन , लेप्टिन , एस्ट्रोजन , टेस्टोस्टेरॉन 
एक्टिव होना - आप जितना ज्यादा एक्टिव हैं आपको उतनी ज्यादा एनर्जी चाहिए 
न्यूट्रिशन - आपके खाने की मात्रा और पौष्टिकता आपके मेटाबॉलिज़्म को फ़ास्ट या स्लो बनाती है  . जैसे मछली , लीन मीट , लो फैट मिल्क ,ओटमील , दाल , ब्रोकली आदि मेटाबॉलिज़्म बढ़ाते हैं जबकि फ्रूट जूस , अल्कोहल , कैफीन , सीरियल , दही आदि इसे कम करते हैं  . 
आपका हेल्थ - हाइपोथायरायडिज्म से मेटाबॉलिज़्म स्लो होता है जबकि हाइपर थयोरोइडिज्म से यह बढ़ता है  . प्रीमेनोपॉज और पोस्टमेनोपॉज़ में मेटाबॉलिज़्म रेट भिन्न होते हैं  , पोस्ट मेनोपॉज़ में स्लो होता है . 
दवाएं -  डिप्रेशन आदि कुछ रोगों की दवाओं से भी यह स्लो हो सकता है 

इन सभी पहलुओं पर भले ही हमारा  कंट्रोल सम्भव न हो फिर भी बहुत कुछ हमारे हाथ में भी है  . 


कौन अच्छा है फ़ास्ट या स्लो मेटाबॉलिज़्म - स्लो मेटाबॉलिज़्म में कम कैलोरी जलता है जिसके चलते शरीर में फैट जमा होता है और वजन बढ़ता है और ऐसे में कैलोरी कम लेने पर भी वजन घटाना कठिन होता है  . फ़ास्ट मेटाबॉलिज़्म में कैलोरी जल्दी जलता है जिसके चलते कुछ लोग ज्यादा खा कर भी स्लिम रह सकते हैं  .  


मेटाबॉलिज़्म बढ़ाने के कुछ उपाय - 


चलते रहें  और एक्टिव रहें - एक जगह बैठे रहने से मेटाबॉलिज़्म स्लो होता है  . इसलिए एक्टिव रहें और यथासंभव चलें 
भोजन प्लांट बेस्ड रखें - यथासंभव भोजन में फल और सब्जी और होल ग्रेन आदि प्लांट बेस्ड फ़ूड की मात्रा ज्यादा रखें 
फ़ास्ट और प्रोसेस्ड फ़ूड यथासम्भव न लें या जरूरी हो तो कम से कम इस्तेमाल करें  . इनमें शुगर और सैचुरेटेड फैट की मात्रा ज्यादा होती है  . 
मांसपेशियों के हेल्थ पर ध्यान दें - इसके लिए रेगुलर व्यायाम करें या कम से कम रेगुलर वाक तो कर ही सकते हैं  . 
सिर्फ कम कैलोरी देख कर खाना खाना अच्छा नहीं भी हो सकता है  . हालांकि शरीर की आवश्यकता से ज्यादा खाना अच्छा नहीं है . कुछ लोग क्रैश डाइटिंग कर वजन कम करना चाहते हैं जिस से मेटाबॉलिज़्म पर प्रतिकूल असर होता है  . 
पानी पर्याप्त मात्रा में पियें - हमारे शरीर में 60 % पानी होता है इसलिए  शरीर को  पर्याप्त मात्रा में पानी चाहिए  . हाइड्रेटेड रहना ब्रेन , हार्ट और पाचन क्रिया के लिए जरूरी है  . पानी कम रहने से फैट भी कम जलता है  . 
नियमित स्लीप रूटीन - आमतौर पर वयस्क को सात घंटे सोना चाहिए जबकि आजकल की फ़ास्ट और भाग दौड़ वाली जिंदगी में काफी लोगों को 30 - 40 % कम नींद आने की शिकायत है  . समुचित मात्रा में नींद आने से शरीर में इन्सुलिन का लेवल स्लो और  बैलेंस्ड रहता है   जो हमारे मेटाबॉलिज़्म के लिए जरूरी है  . कम सोने से हमारे ब्रेन और इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है  . 

आमतौर पर हमारा BMR ( basal or  baseline metabolic rate ) रात या दिन समान रहता है  . रात में हम एक्टिव नहीं रहते हैं इसलिए हमारे शरीर के अंगों को कम एनर्जी चाहिए  . इसलिए रात में हम कम कैलोरी बर्न करते हैं जिसका असर वजन कम करने की प्रक्रिया पर होता है  . कुछ अन्य कारणों से रात के मेटाबॉलिज़्म पर असर पड़ता है , जैसे स्लीप पैटर्न , स्ट्रेस आदि  . अपनी उम्र , एक्टिविटी ,स्ट्रेस लेवल और स्लीप पैटर्न में समुचित बैलेंस मेंटेन कर हम अपने  मेटाबॉलिज़्म और वजन को मेंटेन कर सकते हैं 

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