वो रात कुछ और थी - 2 Karunesh Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो रात कुछ और थी - 2

बर्फ की सिल्ली जैसी वर्तिका एक दम ठंडी पड़ती जा रही थी , चेहरा डर के मारे सफ़ेद सा होता जा रहा था। आंटी की पिस्तौल की नली एक बार और थोड़े दबाव के साथ वर्तिका को अपनी कमर पे दबती महसूस हुई, जिस वजह से वर्तिका के हाँथ ना चाहते हुए भी पर्स के अंदर रक्खे हुए उस गोल्ड पाउच पर चले गए। " जल्दी कर लड़की, ज़िंदा रहना है या गोली चलाऊं मैं!" आंटी दबी ज़ुबान से मुस्कुराते हुए बोली।

वर्तिका ने वो पाउच निकाला और कापते हांथो से आंटी को पकड़ा दिया। बन्दूक की नली का दबाव धीरे धीरे हल्का हुआ और फिर एक दम गायब, इससे वर्तिका ने समझा की बन्दूक हटा ली गयी थी। आंटी ने वर्तिका से चेतावनी भरे शब्दों में कहा " पुलिस के पास यहाँ से गयी तो भी जान से जाएगी, मेरे आदमी तेरा पीछा तब तक करते रहेंगे जब तक तू इस एरिया से दूर नहीं चली जाएगी।
' प्लीज किसी को मेरे पीछे मत भेजिए मैं पुलिस के पास नहीं जाउंगी, सच कह रही हूं।' वर्तिका ने डब डबाई आँखों से सहम कर विनती करी।
" अब चुप चाप मेरे गले लग और पलट कर निकल जा, मुड़ कर मत देखना वरना!!!"

जैसा कहा गया वर्तिका वैसे करके पलटी और बस स्टॉप से रोड क्रॉस करके दूसरी तरफ चल दी। आँखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे, नज़र धुंधली हो चली थी सडक पर आती जाती गाड़ियों का होश कहाँ रह गया था वर्तिका को, बस चली जा रही थी।
क्यों वो आज घर से निकली, क्यों उसने सबसे झूठ बोला की वो पिंकी के घर जा रही, क्यों अपनी सारी सेविंग्स लेकर प्रशांत के लिए तोहफा ख़रीदा, प्रशांत ने जबकि कितनी बार मना किया था और यहाँ आने को तो खासकर। शायद इसी वजह से वो हमेशा वर्तिका की कॉलोनी में आया करता था छुप छुपा कर मिलने। जो जो आज हुआ वो क्यों हुआ और मेरे साथ ही क्यों हुआ ये सोचते हुए वर्तिका अपनी ही धुन में रोड क्रॉस कर रही थी की अचानक एक ज़ोर का धक्का लगा और वो ज़मीन पे दूर जा गिरी.....


वर्तिका का दिमाग़ एक दम सुन्न हो चला था, अचानक से लगे झटके से वो बिलकुल ही दिमाग़ से सोचने समझने की शक्ति खो चुकी थी। सडक के किनारे गिरी हुई वर्तिका को देखने लोग खड़े होने लगे थे लेकिन कोई आगे नहीं बढ़ रहा था। तभी जिस कार की टक्कर से वर्तिका गिरी थी उसका ड्राइवर बाहर आया और लगा चिल्लाने " मरने निकली है क्या, देख के नहीं चल सकती अभी मर जाती तो लेने के देने पड़ जाते मेरे।

वर्तिका ने जैसे तैसे खुद को संभाला और खड़ी हो कर अपने कपड़ो को झटक कर साफ करते हुए खुद को लगी छोटो का मुआयना करने लगी। ड्राइवर अब भी चिल्लाये जा रहा था और लोग तमाश बीन बन कर खड़े थे। अब तक बहुत कुछ झेल चुकी वर्तिका जो चुप खड़ी थी डर और दर्द के कारण कारण सॉरी बोलते ही रोने लगी और हिम्मत करके वहां से चल के जाने का प्रयास करने लगी.

गाड़ी का मालिक ड्राइवर के चिल्लाने से बाहर निकल चुका था लेकिन लड़की को सामने देख वो रुक गया लेकिन जब उसने लड़की को माफ़ी मांगते मांगते रोते हुए देखा तो ना जाने क्यों उसे उस लड़की की तकलीफ महसूस होती जान पड़ी।


उसने गौर से देखा तो पाया गहरे भूरे लम्बे बालों की छोटी से बाल बिखर गए थे, उसका नीले रंग का कुरता मिट्टी लगने से गन्दा हो गया था, पैर में पहना सलवार कहीं कहीं से फट गया था, कान में पहनी बालियों में से एक दूर जा गिरी थी और एक लड़की के कान में थी लेकिन लड़की को अपनी बलियों का होश नहीं था। चेहरे पे नज़र करते गाड़ी के मालिक ने देखा, वो हलके गुलाबी होंठ चोट लगने से कट गए थे, किनारो से थोड़ा खून निकल आया था, उस खून की बूँद को देख उसका मन उन्हें अपने होंठो से पी लेने का मन हुआ.....


क्या, ये क्या सोचा मैंने???? अचानक से मन में आये इस ख्याल ने मोहित को अचम्भे में डाल दिया था की एक अनजान लड़की को देख ये क्या ही सोच लिया उसने एक दम से!!!! अब उसकी नज़रेँ उससे दगा कर बैठी थीं, होंठो से नज़रेँ गालों पे टिक गयीं, वो गोरे-गोरे से गाल जो रोने के कारण आंसुओ से भीगे हुए थे, मोहित को ओस की ठहरी बूँद हो जैसे वैसे लगने लगे, उसको लगा बस अपनी उंगलियों से उन ओस की बूंदो को वो समेट ले, धीरे धीरे आंसुओ को देखते हुए मोहित ने जब उस लड़की की डब डबाई रोती आँखों को देखा तो जैसे मानो वो उन गहरे नीले समंदर में खुद को ही डूबते हुए देख रहा था....

अब मोहित का सब्र जवाब दे चुका था क्यूँकि वो लड़की माफ़ी मांग रही थीं, उसका माफ़ी मांगना मोहित को जैसे नागवार गुज़र गया। पलट कर लड़की जाने को हुई तो मोहित के कदम अनायास उसकी ओर बढ़ गए और मोहित ने उसके ज़ख़्मी हांथो को पकड़ लिया।

" कहा ना गलती हो गयी मुझसे!!!!! पैसे नहीं हैँ वरना हर्जाना भर देती, सॉरी प्लीज़ हाँथ छोड़िये मेरा!!!!"

इतना कहते कहते वर्तिका कापने लगी, मोहित ने तुरंत अपना हाँथ उसके हाँथ से दूर किया।

" आपको बहुत चोट आयी है, प्लीज़ हॉस्पिटल चलिए मेरे साथ, आपको ज़रूरत hai"


नहीं!!!!! मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं ठीक हूं, झूठा कंसर्न मत दिखाइए, अपना नंबर दे दीजिये आपका जितना नुक्सान हुआ है मैं भर दूंगी. आज के लिए ये सबक तो मिल ही गया है मुझे की अजनबियों से बात ही नहीं करनी और दूर रहना है जितना हो सके, मदद करने वालों से तो ख़ास तौर पे!!!