Mission Raniganj- The Great Indian Rescue - Movie Review books and stories free download online pdf in Hindi

मिशन रानीगंज- द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू - फिल्म समीक्षा

मिशन रानीगंज- द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू

रिलीज – 06/10/2023

निर्देशक- टीनू सुरेश देसाई

प्रोड्यूसर- जैकी भगनानी, दीपशिखा देशमुख, वासु भगनानी, अजय कपूर

कहानी- दीपक किंगरानी और कान्सेप्ट पूनम गिल (जसवंत गिल जी की बेटी)

जिस तरह सैनिक अपनी जान हथेली पर ले कर सीमा पर तैनात हो देश की रक्षा करते हैं, उसी तरह कोयला खदानों में अपनी जान जोखिम में डाल कर हर दिन कोयला मजदूर और अधिकारी खदानों में उतरते हैं। कोयला की उपयोगिता से हम सब परिचित हैं। देश की लगभग 75% पावर प्लांट कोयला आधारित संयंत्र हैं। कोयला भले काला होता पर देश उसी के कारण जगमग है।

मूवी रिव्यू के पहले इन्हें बताना आवश्यक था क्यूंकि ये कहानी इन्हीं जाँबाज खनिकों पर आधारित है। ये एक सच्ची घटना पर आधारित हैं और इसके पात्र भी सच्चे हैं। documentary बनने से रोकने के लिए इसमें कथा तत्व भी डालें गए हैं। कहानी में कोई अतिशयोक्ति नहीं है, क्यूंकि ये मेरे याद की घटना है और मुख्य पात्र स्वर्गीय जसवंत सिंह गिल भी उसी कॉलेज से पढे थे जहाँ से मेरे पिताजी, वे माइनिंग इंजीनियर थे और ISM धनबाद(अब IIT) से पढ़ाई की थी। दोनों ही कोल इंडिया में काम करते थे।

कहानी इन्हीं गिल साहब की दिलेरी और सूझबूझ की है। अक्षय कुमार ने पूरी तरह आत्मसात कर इस रोल को बहुत बढ़िया से निभाया है। 13/11/1989 को पश्चिम बंगाल में कोल इंडिया की इकाई ईस्टर्न कोल फील्ड्स के रानीगंज एरिया के महाबीर कोलियरी के भूमिगत कोयला खदान में एक भयानक हादसा हुआ था, जिसमें 65 कामगार खदान में फंस गए थे। उन्हें कम समय में दिलेरी के साथ फैसला लेते हुए बचा लिया गया। उस वक्त टीवी पर लाइव इस रेस्क्यू का प्रसारण हुआ था। फिल्म में जब नीचे कामगारों को पता चलता है कि वे फंस चुके हैं तो उनके मुँह से निकलता है,

“अरे ई तो चासनाला हो गया”

चासनाला जो धनबाद के पास है झारखंड में, वहाँ 1975 में सैकड़ों कोयला कामगारों की जल समाधि हो गई थी। इस घटना पर ‘काला पत्थर’ नामक सुपर हिट मूवी बनी थी। इतने वर्षों में फिल्मांकन तकनीक बहुत विकसित कर गया है। ये अंतर ‘मिशन रानीगंज’ में दिखता है, काला पत्थर के नकली सेट्स की तुलना में बेहद असल। इस घटना के समय गिल साहब ने जो तकनीक अपनाई थी वह इजींनियरिंग का अद्द्भुत मिसाल था जो किसी कॉलेज में नहीं पढ़ाई जाती थी, बाद में तो ये नजीर ही बन गया और उन्हें कैप्सूल गिल भी कहा जाता था।

कहानी जानते रहने के बावजूद पूरी फिल्म में रोमांच बना रहा। एक मिनट के लिए भी ऐसा नहीं लगा कि काश हाथ में रीमोट होता तो फास्ट फॉरवर्ड कर लेते। फिल्म पहली सीन से ही देखने लायक है। जिस तरह जसविंदर सिंह गिल साहब महाबीर खान दुर्घटना के नायक बने उसी तरह अक्षय कुमार भी पूरी फिल्म में छाए रहे। अभिनय की परिपक्वता महसूस करने लायक थी, मुझे कहीं भी खिलाड़ी अक्षय या भूलभुलैया के अक्षय नजर नहीं आए, बल्कि मुझे तो गिल अंकल का ही चेहरा दिखता रहा। सभी कलाकारों ने अपने अभिनय से दिल जीत लिया। अक्षय की पत्नी बनी परिणिती चोपड़ा की निश्चिंतता थोड़ी खल रही थी। वरन कोल इंडिया में काम करने वालों की पत्नियाँ हर वक्त एक दहशत में जीती हैं।

फिल्म की कास्ट के बारे में बात करे तो, अक्षय, परिणिती के अलावा कुमुद मिश्रा जिन्होंने वहाँ के सीएमडी आर जे उज्ज्वल की भूमिका निभाई है, उनकी टेंशन और सपोर्ट दोनों ही लाजवाब लगे, कांपती उंगलियों में हिलता सिगरेट देर तक याद रहेगा। बिंदल की भूमिका में पवन मल्होत्रा बहुत जमे हैं, वहीं रवि किशन ने काला पत्थर के शत्रुघ्न सिन्हा की याद दिला दिया। वरुण वडोला, गुल्लक वाले जमील खान, अनंत महादेवन इत्यादि कई मंजे हुए कलाकार हैं।

ऐसे कई ठोस कारण हैं जिनकी वजह से यह फिल्म प्रतिष्ठित 5-स्टार रेटिंग की हकदार है:

उत्कृष्ट कला कौशल - फिल्म निर्देशन, छायांकन, संपादन और अभिनय सहित फिल्म निर्माण के सभी पहलुओं में उत्कृष्ट है। प्रत्येक तत्व को उल्लेखनीय कौशल के साथ निष्पादित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप मनोरंजक और तेजी से घटती घटनाएं दर्शकों को अपनी सीटों से बांधे रखता है।

प्रेरणादायक कहानी: अपने मूल में, यह फिल्म साहस और अटूट दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। जसवन्त सिंह गिल की निस्वार्थ वीरता सभी के लिए प्रेरणा का काम करती है, यह दर्शाती है कि जीवन बचाने के लिए कोई भी व्यक्ति किस हद तक जा सकता है।

भारतीयता का दर्शन- मुसीबत पड़ने पर क्षेत्रवाद, जातीयता, प्रांतवाद त्याग कैसे सभी एकजुटता दिखाते हैं।

कुशल निर्देशन: निर्देशक टीनू सुरेश देसाई ने कुशलतापूर्वक एक रोमांचक और भावनात्मक कहानी गढ़ी है जो दर्शकों को शुरू से अंत तक बांधे रखती है।

अदाकारी- सभी कलाकारों का अभिनय बस देखते ही बनता है जो बनावटीपन से दूर है।

सुगठित स्क्रीनप्ले – एक घटना को फिल्म के रूप में ढालना, माइनिंग की तकनीक को समझाते हुए दर्शकों का सफल मनोरंजन।

स्पेशल इफेक्ट- बढ़िया हैं और कोयला खदान के अंदर के दृश्य प्रभावशाली बन पड़े हैं।

संगीत- इस फिल्म का संगीत सतिंदर सरताज, प्रेम-हरदीप, अर्को, विशाल मिश्रा और गौरव चटर्जी ने निर्मित किया है, जबकि गीत सतिंदर सरताज, कुमार विश्वास और कौशल किशोर ने लिखे हैं। संगीत इस मूवी का कमजोर पक्ष है, जिसकी जरूरत भी नहीं थी। कुमार विश्वास के लिखे बोल अच्छे लगे।

अस्सी का जमाना- फिल्म में ये ध्यान रखा गया है

मैं खुद कोयला खदानों के आस-पास पली-बढ़ी हूँ। मूवी ने मेरे अंतर्मन को छू लिया और मैं यादों गलियारों में भी डुबकी लगा आई। कोलियरी में प्रयुक्त होने वाले शब्द जैसे मलकट्टा, लोल, सीम इत्यादि ने पुराने दिनों में पहुंचा दिया। भूमिगत खदान अब लगभग समाप्त प्रायः हैं, क्यूंकि सुरक्षा की दृष्टि से ये बेहद खतरनाक थे। उनकी जगह अब ओपन कट यानि खुली खदान होने लगी हैं जिससे कोल इंडिया में अब दुर्घटनाओं की संभावनाएं कम हो गई हैं पर ये पर्यावरणीय क्षति पहुँचाती हैं।

सैनिकों की शौर्य गाथा को हम जिस इज्जत से देखते हैं, मिशन रानीगंज - द ग्रेट इंडियन रेस्क्यू

भी उसी इज्जत का अधिकारी है। हाँ अंत में ये बताते चलूँ कि जे एस गिल जी को राष्ट्रपति पुरस्कार से सममानिक किया गया था।

रीता गुप्ता

रांची

फोन 9575464852

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