बजटोत्सव ABHAY SINGH द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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बजटोत्सव

सदन मे बजटोत्सव है।

जनता फाग गा रही है, थालियां, गालियां, बेल आइकन, मंजीरे बज रहे हैं।

सुर, यक्ष, देवता , दानव, भांड... सब सेंट्रल विस्टा के आकाश पर उत्सुकतापूर्वक विद्यमान हैं।
सदन ठसाठस भरा है। रंग बिरंगी पगड़ियों में, भाल पर तिलक सजाए, चौड़ी मूंछों वाले, अलग अलग इलाके के सरदार,फॉरच्यूनर पर सवार, मेजें ठोकने आये है।
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व्यूह सजा है।

पीछे नवेड़ी हुल्लड़बाज, बीच मे अनुभवी हुल्लड़बाज, और सबसे आगे दूसरी मेज के बाएं .. अपनी कलगी और दाढ़ी फहराता, सब पर भारी सरदार !!!

विशाल भवन के एक कोने में सिमटा विपक्ष, टुकुर टुक़ुर देखते, नाखून चबा रहा है।
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सरदार का इशारा होता है, अनुमति पाकर, आसन्दी अनुमति देती है।

वित्त अमात्य उठती हैं - "अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे, अब के बरस तेरी प्यासों मे पानी भर देंगे, अब के बरस तेरी चुनर को धानी कर देंगे"

सदन मेजों की गड़गड़ाहट से गूंजता है। सरदार के चेहरे पर दृढ़ता छाती है। वित्त अमात्य उत्साहित हो पढ़ती हैं-

ये दुनिया तो फानी है,
बहता सा पानी है हो,
तेरे हवाले ये ज़िंदगानी,
ये ज़िंदगानी कर देंगे,
अब के बरस।

प्रसारण करते एंकर चौड़ी मुस्कानों के साथ न्यूज ब्रेक कर रहे हैं। सन्नाटे को चीरती हुई सनसनी, टीवी सेट्स से निकल, देश के कोने कोने में तैर रही है -

"दुनिया की सारी दौलत से,
इज़्ज़त हम को प्यारी

मुट्ठी मे किस्मत है अपनी,
हम को मेहनत प्यारी

मिट्टी की कीमत का जग में,
कोई रतन नही है,
ज़िल्लत के जीवन से बदतर,
कोई कफ़न नही है..

विपक्ष सीट से कोई गद्दार वामपन्थी चिल्लाया- यह बजट नही है। ये फिल्मी गाना है। देश संकट में है, चीन हमले कर रहा है, और सरकार गाने गा रही है??
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घनघोर शोर हुआ, भाषण में व्यवधान हुआ। विपक्षी शोर मचाते वेल में घुसने लगे।

- "बेरोजगारी"
- "मौद्रिक नीति"
- "गरीबी उन्मूलन"
- " टैक्स कम करो"
- " राज्यो को हक़ दो"

भयंकर कोलाहल था। सदन बाधित था। आसन्दी ने माइक ऑफ कराए। टीवी प्रसारण के सिग्नल अचानक बिगड़ गए।

जबर कन्फ्यूजन..
तो सरदार स्वयं उठे..
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घनघोर कड़कती आवाज से सातों गगन हिले। क्षिति, जल,पावक, गगन, समीर, रजत, रुबिका और नाविका थरथरा उठे। गुर्राते सरदार ने इंटरजेक्ट किया-

"मितरोंss, भाइयों भैनो।
देश का हर दीवाना अपने,
प्राण चीर कर बोला,
बलिदानों के खून से अपना,
रंग लो बसंती चोला!!

अब के हमने जानी है हो,
अपने मन में ठानी है हो,
हमलावरो की ख़तम कहानी,
ख़तम कहानी कर देंगे,
अब के बरस..

घर मंत्री ने बैठे बैठे कुछ फाइलें लहराई। शोर मचाते विपक्षी समझ गए, चुपचाप सीट पर बैठे। प्रसारण पुनः शुरू हो गया।

टीवी देखते देशप्रेमियों का जोश हिलोरें मारने लगा। विजयी सरदार भी बैठ गए। वित्त अमात्य ने बात आगे बढ़ाई और विपक्ष पर सधा हुआ हमला किया -

सुख सपनो के साथ हज़ारों,
दुख भी तू ने झेले,
हंसी खुशी से भीगे फागुन,
अब तक कभी ना खेले,

चारों ओर हमारे बिखरे बारूदी अफ़साने,
जलती जाती शमा जलते जाते हैं परवाने..

पढ़ते हुए वित्त अमात्य ने सदन को कनखियों से देखा। विपक्ष क्लियरली कन्फ्यूज्ड था, भयभीत था, नीरवता छाई थी।

कनफ्यूजन, भय, नीरवता सफलता की सीढियां हैं। बजट अब सदन को समझ आ रहा था।

आगे पढ़ती हैं..

फिर भी हम ज़िंदा हैं,
अपने बलिदानों के बाल पर,
हर शहीद फरमान दे गया,
सीमा पर जल जल कर !!

यारों टूट भले ही जाना,
लेकिन कभी ना झुकना,
कदम कदम पर मौत मिलेगी,
लेकिन फिर भी कभी ना रुकना"

घनघोर सन्नाटा था। मंत्राणी की आवाज धधक रही थी। बजट अब पूरे लय में था -

बहुत सह लिया अब ना सहेंगे, सीने भड़क उठे है, नस नस में बिजली जागी है, बाज़ू फ़ड़क उठे हैं, सिंहासन की खाली करो, ज़ुल्म के ठेकेदारों..

विपक्षी बेंच से हक्का-बक्का, मिमियाती आवाज आई- सरकार तो आपकी है..

तो किसे खाली करने को ललकार रहे हो?

आसन्दी ने लपककर उसका माइक ऑफ कर दिया। वित्त अमात्य की लय टूटी नही थी -"देश के बेटे जाग उठे, तुम अपनी मौत निहारो, अंगारो का जश्न बनेगा, हर शोला जागेगा, बलिदानों की इस धरती से, हर दुश्मन भागेगा..

- "दुश्मन नही इन्वेस्टर भाग रहे हैं मैडम"
-** माइक ऑफ

" हमने कसम निभानी है, देनी हर क़ुर्बानी है, हमने कसम निभानी है, देनी हर क़ुर्बानी है, अपने सरों की, अपने सरों की अंतिम निशानी भर देंगे, अब के बरस.."
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"अबके बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे."

बजट समाप्त हुआ, ध्वनिमत से पास हुआ। मंत्राणी के चेहरे पर विराट तेज था। यह गजब रूप देख सन्सद सन्न थी, सब लोग डरे।

विपक्षी चुप थे, या थे बेहोश पड़े।

केवल दो नर ना अघाते थे, गौतम और मुकेश सुख पाते थे। वे कर-जोड़ खड़े थे प्रमुदित निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’

दोनों पुकारते थे जय जय !