सदमा જાગૃતિ ઝંખના 'મીરાં'.. द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सदमा

तेरा जाना ...दिल के अरमानों का मीट जाना..!
कोई देेखे बनके तक़दीरों का मीट जाना...!
तेरा जाना..!
दफ्तर से आकर थकी हुई रिक्ता को टी.वी. के सामने बैठकर काल्ड काफी पीना अच्छा लगता था। मोबाइल से तो अब एक चीढ सी हो गई थी। एक वक्त था, जब मोबाइल
को ऐसे सीने से लगाए फिरती थी मानो मोबाइल दूर कर दिया तो जैसे कोई श्लोक को भी उससे दूूर ले जाएगा!

रिक्ता ने गाना सुना और उसकी आँख भर आई। हा, फिर वो ही, श्लोक की बातेें, पुरानी यादें। शायद यादों और अश्कों का रिश्ता युुगो पुराना रहा होगा। तभी तो याद आते ही आँख नम हो जाया करती होगी।


जब भी कभी श्लोक की यादें रिक्ता के मन को परेशान कर बैठती थी, तब वो बैचेन हो उठती थी। कई दिनों से एक बात तक न की थी। इन हालातों में गर किसी जगह बैठकर रिक्ता के दिल को सुकून मिलता तो वह था, छोटे से घर की छोटी सी बाल्कनी में रखा हुआ छोटा सा झूला!


हवा की एक लहर आई और रिक्ता के बाल की एक लट चेहरे पर आ गई। रेशमी, कमर तक लहरातें बालो को उसने कसकर एक रबर से बांध लिया।

" रिक्ता, यार तुम्हारें बालो की फसल बहुत अच्छी है। वैसे कौन सा खातर डालती हो?"

जब एकबार कोई तस्वीर में रिक्ता के बाल देखे तो श्लोक ने अपने अनोखे अंदाज में रिक्ता के बाल की तारीफ की थी! रिक्ता को सारी बातें ऐसे याद आती थी जैसे की कल की बात हो!


पर नहीं, ये कोई कल की बाते अब नहीं रही थी। जिसके लिए रिक्ता ने अपना इतना जी जलाया था, वो श्लोक कल जाने वाला था! उसकी ज़िन्दगी से हमेशा के लिए। वैसे भी कई दिनों से वो शायद था ही नहीं! रिक्ता खुद को एक गलतफ़हमी में बांधे रखी थी कि श्लोक भी उसे बेइंतिहा प्यार करता है। हालांकि कुछ बाते रिक्ता को दिये की तरह साफ दिखाई दीया करती थी, पर वो कहते है ना? प्यार शायद अंधा होता है! रिक्ता ने श्लोक से कुछ ऐसा प्यार ही किया था। न सिर्फ अंधा, बल्कि बहरा भी! तभी तो जो दिमाग चीखकर कह रहा था वो उसे सुन न पा रही थी। गुंगा भी, तभी तो श्लोक की जो बातें, जो आदतें उसे निहायत अच्छी न लगती थी, उसे भी वह चुपचाप सह जाती थी!


वो कहते है न कि हर बात की एक हद होती है। रिक्ता भी थक गई थी, अब। खुद के आत्मसम्मान की बलि देकर। श्लोक की मर्जी के अनुसार खुद को ढालकर। तभी एक दिन श्लोक का कई दिनों से न बजनेवाला कॉल आया। कितनो दिनों से रिक्ता के कई मॅसेजीस बिना पढे ब्ल्यू लाईन होने के इंतजार में थके पडे थे। जो श्लोक खुद की मर्जी से ढेरो बातें करते नहीं थकता था, वो कभी ये महसुस ही न कर पाया कि रिक्ता का मन कितना बैचेन होता होगा उसकी इस बेरुख हरकतों की बजह से!


रिक्ता के चेहरे पर थोडी चमक फैल गई। उसने झट से कॉल उठाया और आंसुओ को ऐसे पौंछ डाला जैसे की कहीं श्लोक देख लेगा और फिर से नाराज होकर रुठ जाएगा।


"रिक्ता, वो तुमसे एक बात कहनी थी। मैं मेरी पत्नी नीति और मेरे डिवोर्स के बाद शुभ्रा की जिम्मेदारी से थक गया हुं।"


"पर वो फैसला तो तुम्हारा ही था श्लोक की शुभ्रा तुम्हारें साथ.."


"रिक्ता, प्लीज! तुम मेरी बात को काटो मत और अपनी फिलॉसफी थोडी देर अपने पास रखो।


सिर्फ सुनो! मैने शुभ्रा के बेहतर भविष्य के लिए आरती से शादी करने का निर्णय लिया है। हम कल कैनेडा जाने के लिए निकल रहे है। फिर न जाने कब मिलना हो? तो सोचा बात कर लु। हा, एक बात ओर, तुम भी किसी से शादी कर लेना और मेरी बजह से तुम्हें जो कुछ तकलीफ हुई हो तो माफ कर देना। रखता हूं, आरती का कॉल आ रहा है।"


"पर श्लोक मैं..!" दुसरी ओर छा गए सन्नाटे में रिक्ता की दबी चीखें सिसकती रही, जिसे सुनने वाला कोई न था।


झुला रुक गया। यु मानो कि रिक्ता की सासें रुक गई! कुछ देर तक तो वो बौखला सी गई। ऐसा लग रहा था कि जैसे श्लोक ने कसकर उसकी भावनाओं को एक तमाचा मारा हो और उसकी गुंज कानों में बैठ गई हो, जो कि अब कभी ख़त्म न होगी और रुह को छन्नी करती रहेगी।


अश्क रुक नहीं रहे थे। किसी से कुछ बांटने का रिश्ता रखा ही नही था।


"रिक्ता, यार तुं कितनी खुबसूरत है! कोई तुझे देखकर ये कह नहीं शकता कि तुम पैंतीस की हो। कोई स्त्री तुम्हे देखकर तुम से जल न उठे और कोई भी पुरुष तुम्हे देखकर तुम पर फिदा न हो, ऐसा हो ही नहीं शकता। फिर भी तुमने शादी क्यों न की?" सुहानी रिक्ता की सहेली ने एकबार पूछ ही लिया था। ये सवाल रिक्ता ने कई लोगों की आँखो में अलग-अलग रुप से पढा ही था।


"मैने अठारह साल की उम्र में मेरी बयालीस साल की माँ को ब्रेस्ट कैंसर में तडप-तडपकर मरते देखा है। जिस मा ने पूरे परिवार के लिए खुद का वजूद तक खो दिया था उसकी मरतें वक्त जो बुरी हालत हुई थी वो देखकर मेरा रिश्तों की सच्चाई, गहराई और वफादारी पर से भरोसा ही उठ चूका है। प्यार और परवाह मेरे लिए पर्याय है, तो मुझे शायद ही कोई ऐसा नसीब हो।"


रिक्ता ने कभी शादी न करने का फैसला लिया था। पापा की दुसरी शादी ने उस फैसले को द्रढ किया और रिक्ता ने मुंबई आकर अकेले रहकर नौकरी करने का निर्णय किया। जानेमाने अखबार की हेड बन गई। शब्दों की प्रति पहले से लगाव था। श्लोक उसी अखबार का लोगो का चहीता लेखक था। उसकी कॉलम के लिए कई लोग अखबार से जुडे थे। उसकी लिखावट में जादुई असर थी। रिक्ता को पता ही न चला कि कब उसके सालों से बंजर पडे दिल के कोने को श्लोक ने हरा कर दिया! काम के सिलसिले में कॉल पर बातें होती रहती थी। इसी तरह बातों ही बातों में कब श्लोक से लगाव बढने लगा, यह खुद रिक्ता को भी नहीं पता चला।


रिक्ता को धीरे-धीरे यह पता चल गया था कि श्लोक हर बात में अपनी बात पर अडा रहता था। कभी बिन मौसम की बारिश बरस जाना और कभी कई दिनों तक गायब हो जाना! यह उसके लिए सिर्फ एक आम फितरत की बात थी। जब की रिक्ता के लिए ये दिल का सुकून छीन लेने की बात।


मोबाइल की स्क्रीन पर से श्लोक का चले जाना तो ठीक था पर अब वो जा रहा था, हमेशा के लिए! रिक्ता ने बहती आँखो को लगाम दी। मन ही मन कुछ तय किया। फिर वो उठी। आँखो पर पानी डाला, जिससे जलन कम हो पर दिल की जलन खत्म होने का नाम न ले रही थी।


रिक्ता ने कागज़ उठाया, पेन हाथ में ली। उसने तय किया की वो सारे ज़ज्बात जो श्लोक के साथ जूडे थे, उसे अपनी लेखनी के साथ बहा देगी। रिक्ता ने लिखना शुरू किया।


प्रिय श्लोक,

शायद तुम्हे तो मेरा प्रिय कहना भी हजम न हो! क्योंकि तुम ही कहते थे ना, कि तुम्हें प्यार हजम नहीं होता। कई बातें जो तुमसे बहुतो बार कहनी चाही पर कह न पाई, वो आज तुमसे कह रही हुं। मै चाहती तो तुम्हारे कॉल के बाद तुम्हें कॉल कर शकती थी। या तुम्हें मिल भी शकती थी, एयरपोर्ट आकर! पर श्लोक, तुम्हें भरपूर देकर खुद खालीपन में जीना, यही तो रिक्ता थी। जिसकी भावनाए शायद तुम्हारी समझ से बाहर थी।


मुझे आज यह दुःख नहीं कि मेरी जिस खुबसुरती की तारीफ सब करते थे, उसे तस्वीरों में देखकर तुमने एकबार भी उसे नहीं सराहा! तकलीफ तब हुई जब इन तस्वीरों मे से मैने तुम्हारे लिए उदासी को दूर धकेलकर रखी हसीं तुम्हें दिखाई न दी।दुःख ये न था कि तुम्हारे लिए कहें हजारो अच्छे शब्द के तुम्हे माइने न थे, पर तकलीफ तब हुई जब रोते हुए दिल ने तुमसे कोई शिकायत कर दी, वो तुम्हें झट से चूभ गई! दुःख ये न था, कि मैने मेरा हर लम्हा तुम्हें दिया उसकी तुमने कदर न की, पर तकलीफ ये तो हुई कि तुमसे मैने थोडा सा वक्त अपने लिए मांगा तो वो तुम्हें मेरा अधिकारभाव लगने लगा! दुःख ये न था, कि मेरे आंसुओ को तुमने हरदम अनदेखा किया, पर तकलीफ ये थी, कि एकबार तुमसे रुबरु हुई तो तुमने इनको अपनी उंगली पर लेकर समेटने की जगह मुंह फेर लिया! दुःख इस बात का कतइ न था कि तुम आज इस तरह छोड़कर जा रहे हो, पर शायद इस सदमें को मैं कभी न भूल पाउंगी कि जीवन में एकबार किसीसे रुहानी रिश्ता चाहा था, वो उसे मझधार में डुबोकर किनारें की ओर बढ गया!


मै तो चाहुंगी कि तुम अपनी नई ज़िन्दगी शुभ्रा और आरती के साथ चैन से जीओ। मेरी हाथ जुड़ेंगे तो तुम्हारे लिए ही भगवान से सिर झुकाकर प्रार्थना करेंगे। मेरे हाथ खुलकर उपर उठे तो तुम्हारे लिए ही खुदा से खैरियत की बंदगी करेंगे।


एक आखरी बात, गर कभी फिर मिलना हो और तुम मेरी आँखो में झाँककर अपने लिए कुछ ढुंढोगे तो तुम्हे सब मिलेगा पर हां, मै तुम्हारे दिए इस सदमें को भूल कर तुम्हें कभी माफ न कर पाउंगी।


रिक्ता......


रिक्ता ने श्लोक के पसंदीदा सफेद रंग के लिफाफे में अपना पत्र रखा। श्लोक के दोस्त अनुज को मॅसेज डाला कि वो श्लोक को एयरपोर्ट पर मिलने जाने से पहले एक चिट्ठी ले जाए। फिर श्लोक का नंबर ढूंढा और उसे ब्लॉक में डालकर सो गई।


पास पडे मोबाइल में गाना बज रहा था।

"जाने वाले...ओ जाने वाले...

किया हमने तुमको खुदा के हवाले।

तेरा अल्लाह निगेहबान!

तेरा मौला निगेहबान!"


जागृति, 'मीरां'।