बेजुबान इश्क़ - 2 Kartik Arya द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बेजुबान इश्क़ - 2

सुबह हो चुकी थी। धूप निकल आया था। लोग अपने अपने काम पर जा चुके थे। परंतु सूरज अब तक सो रहा था शायद उसे पता ही न हो कि सुबह हो गई है। जब सूर्य की किरण खिड़की से छन कर सूरज के बिस्तर पर पड़ने लगी। तब जाके सूरज की आँखे खुली।

जब सूरज की आँखे सामने टेबल पर रखी घड़ी पर पड़ी तो वो दंग रह गया क्योंकि घड़ी में साढ़े नौ बज गया था। ये देख सूरज तुरंत अपने बिस्तर पर उठ बैठा और कुछ सोचते हुए खुद से बोला, '' ओह! सीट, आज फिर से लेट हो गया। पता नहीं आज जे पी सर से क्या बहाना बनाऊंगा। आज तो जे पी सर हमे छोड़ेंगे नहीं। ''

इतना कह सूरज तेजी से अपने बिस्तर से उठा और अपने हाथों में टूथ ब्रास ले तेजी से वहां से washroom की ओर निकल गया। थोड़े ही देर के बाद सूरज washroom से fresh हो कर निकला। और फिर तेज तेज कदमों से वो अपने कमरे में चला गया। सूरज अपना कॉलेज यूनीफॉर्म ढूँढने लगता है लेकिन उन्हें यूनीफॉर्म कहीं दिखाई नहीं देता। सूरज और भी चिंतित हो गया, अब तो उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें और यूनीफॉर्म को कहां ढूंढे। तभी सूरज का नजर पास में ही रखे अलमारी पर पड़ता है। अलमारी को देख सूरज मन ही मन सोचता है कि यूनीफॉर्म आवश्य ही अलमारी में ही रखा होगा। यह सोच सूरज तेजी से अलमारी खोलता है परंतु यूनीफॉर्म वहां भी नहीं था। सूरज उस अलमारी में रखे सारे कपड़े को उथल-पुथल कर देता है लेकिन उसे कॉलेज यूनीफॉर्म अब तक नहीं मिला था। सूरज अब गुस्से में आकर वो अलमारी में जोर का एक मुक्का जड़ देता है और फिर अपने बिस्तर पर बैठ अपने दिमाग के घोड़े को इधर उधर दौराने लग जाता है। उनका हाथ भी दर्द कर रहा था लेकिन फिर भी वो अपने दिमाग को इधर उधर दौड़ाएं जा रहा था।


जब सूरज अपने दिमाग के घोड़े को इधर उधर दौड़ा रहा था कि तभी उन्हें अचानक कुछ याद आया और फिर वो तेजी से भागा भागा अपने छत पर गया। वो वहां देखता है कि उसका कॉलेज यूनीफॉर्म छत पर बंधी रस्सी पर सूख रहा है। ये देख सूरज राहत की साँस लेते हुए खुद से बड़बड़ाते हुए कहता है, thank god..!! मुझे मेरा कॉलेज यूनीफॉर्म मिल गया। …. वरना… मेरा खैर नहीं था। फिर सूरज कॉलेज यूनीफॉर्म पहन अपने कॉलेज के लिए निकल जाता है।

दरअसल पिछले दिन जब सूरज कॉलेज से लौट कर अपना घर वापस आ रहा था। तो बीच रास्ते में ही बारिश शुरू हो गई थी जिसकी वजह से उसका कॉलेज यूनीफॉर्म पूरा भींग गया था। जब सूरज घर पहुंचा तो यूनीफॉर्म को खोल उसे अपने छत पर सूखने दे दिया और सोचा था शाम तक मे जब कॉलेज यूनीफॉर्म सूख जाएगा तो हम उसे उठा लेंगे। लेकिन बेचारा सूरज!! वो तो ये भूल ही गया था। और फिर आगे क्या हुआ..?? वो तो अपने देख ही लिया। सूरज को भूलने की आदत है। जब कभी भी वो भयभीत होता है या डरा हुआ होता है तो हमारा हीरो सूरज कुछ ना कुछ भूल ही जाता है।


सूरज अपना कॉलेज पहुंच गया था। अब वो अपना कदम धीरे-धीरे अपने क्लास की ओर बढ़ाने लगा। सूरज दरवाजे पर पहुँच आगे बढ़ाने से पहले वो अपना यूनीफॉर्म और अपने टाई को ठीक तरह से सही करने लगा। जब ठीक कर लिया तब आगे हाथ बढ़ाते हुए डरते-डरते कहा, '' May I come in, sir '' |

जे पी सर आवाज को सुन दरवाजे की ओर देखा। सूरज को दरवाजे पर खड़ा देख जे पी सर अपने चश्मे को थोड़ा नीचे करते हुए बोले, आइए सर!! आइए। आपका ही प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ चाय नाश्ता भी माँगा दे क्या…?? ये सुन क्लास के सारे बच्चे जोर जोर से हँसने लगे। लेकिन जैसे ही जे पी सर आँख दिखाते हुए बच्चों की तरफ देखने लगे तो फिर सारे बच्चे शांत हो गए।

सूरज को उन स्टूडेंट पर गुस्सा तो आ रहा था परंतु वो कर भी क्या सकता था सामने सर जो खड़े थे… इसलिए वो सिर्फ शांत हो कर ये सब देख रहा था। जब जे पी सर बच्चों को शांत होते हुए देखा तो फिर वापस सूरज की ओर देखने लगा और फिर थोड़े देर सोचने के बाद सूरज से बोले, हान तो आप बताएंगे हमे कि इतना लेट क्यों हुआ ?? ये सुन सूरज जे पी सर के तरफ देखने लगा और फिर थोड़ी देर सोचने के बाद लड़खड़ाते हुए शब्दों में कहा, सर!! दरअसल… वो बात ये थी कि…. इतना कहा ही था कि जे पी सर गुस्से में हाथ दिखाते हुए बोले, बस करो ये रोज रोज का बहाना बनाना। …आज ये बहाना… कल वो बहाना… रोज तो तुम बहाने ही बनाते हो। कभी तुम टाइम पे क्लास आए हो। आज भी तुम आधा घंटा लेट आए हो। बस अब बहुत हुआ… अब और नहीं। इतना कह बाहर की ओर इशारा करते हुए जे पी सर बोले, '' जाओ!! बाहर जाओ। और हान बाहर जाकर हाथ ऊपर करके ग्राउंड का 25 चक्कर लगाओ समझे की नहीं। ''


सूरज एक नजर आगे बैठी एक लड़की पर डालता है जिसका नाम आयशा था और फिर वापस मुड़ क्लास से बाहर निकल जाता है। अब सूरज दुःखी मन से धीरे-धीरे कदमों से ग्राऊंड की ओर बढ़ चला। उनका पैर भारी होता जा रहा था। सूरज को ऐसा punishment पहले कभी नहीं मिला था वो तो रोज रोज कोई ना कोई बहाना बनाकर बच जाया करता था। लेकिन आज शायद उसका किस्मत खराब था जिसकी वजह से आज उनका ये बहाना नहीं चल पाया।

सूरज ग्राउंड के पूरे 25 चक्कर लगाने के बाद वो काफी थक चुका था। उनका पूरा शरीर पसीने से भींग चुका था इसलिए वो पास के ही पेड़ की छाया में बैठ थोड़ा विश्राम करने लगा। पेड़ की छाया में बैठने से सूरज का मन थोड़ा हल्का हो गया और साथ ही पसीने से भींगा हुआ शरीर भी अब सूख चुका था। कुछ देर और बैठने के बाद सूरज वहां से सीधा अपने क्लास में चला गया।

जब क्लास खत्म हुई तो एक एक कर सभी स्टूडेंट वहां से जाने लगे। अब तक सारे स्टूडेंट क्लास रूम से निकल गए थे सिवाय सूरज और आयशा को छोड़ कर। जब आयशा भी निकलने लगी तो पीछे से सूरज ने हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुआ बोला, '' आयशा!! Please अब तो तुम थोड़ा देर रुक जाओ न। '' आयशा पीछे मुड़ी और सूरज को एकटक देखने लगी। आयशा के आँखों में आंसू था हालाकि आयशा पूरी कोशिश कर रहीं थीं कि इस आंसू को सूरज से छुपाने की। लेकिन वो इन आंसूओं को छुपा न सकी बल्कि वो सूरज के सीने से लगकर और भी फूट-फूटकर रोने लगी। ये देख सूरज से भी रहा नहीं गया और वो भी सीने से लग फूट-फूटकर रोने लगा। सूरज और आयशा दोनों सीने से लग रो रहे थे।

थोड़ी देर रो लेने के बाद सूरज आयशा की आंसू पोंछ आयशा की गालों पर kiss करते हुए कहता है , '' अरे बाबा!! अब चुप भी हो जाओ। नहीं तो मैं यहां से चला जाऊँगा और तुम अकेली यहां बैठकर रोते रहना।'' फिर आयशा अपनी आँखों के आंसू पोंछ सूरज को देखते हुए मुस्कराकर कहती है, '' अच्छा!! ऐसा क्या ?? चले जाओ …अगर तुम मेरे बिना रह सकते हो तो। ये सुन सूरज हँसकर अपनी बाहों में आयशा को कसकर पकड़ अपनी ओर खींच लेता है। आयशा और सूरज दोनों एक दूसरे के बहुत पास आ जाते हैं इतने पास आ जाते है कि दोनों एक दूसरे की सासों को महसूस कर रहे थे। दोनों की धड़कने बहुत तेज चल रही थी। दोनों एक दूसरे की धड़कनों की आवाज को महसूस कर रहे थे। फिर सूरज आयशा की गुलाबी होठों को छुकर उसके आँखों में देखते हुए कहता है, '' अरे पगली!! हम तुम्हारे वगैर रहने का सोच भी नहीं सकते और तुम हमे दूर जाने की बात कहती हो…।'' इतना कह सूरज आयशा की गालों को दोनों हाथों से पकड़ता है और फिर आयशा की गुलाबी होठों छूने लगता है। आयशा अपनी आँखें बंद कर लेती है। फिर सूरज अपनी होंठ आयशा की होठों से लगाकर kiss करने लगता है। आयशा भी अपने आप को ढीला छोड़ देती है और वो kiss भी करने लगती है। दोनों एक दूसरे के ऐसे kiss कर रहे थे जैसे कि कई जन्मों के बाद आज मिला हो।


लगभग पाँच मिनट kiss करने के बाद वे दोनों एक दूसरे से अलग हुए। और फिर आयशा अपनी बालों को सही कर वहां से शर्माते हुए बाहर निकल गई। उनके जाने के थोड़ी देर बाद सूरज भी वहां से निकल गया।

जब सूरज बाहर आता है तो वो देखता है कि आयशा बाहर खड़ी हो कर उसका ही आने का इंतजार कर रही है। सूरज अपना बाइक लेकर आयशा के पास पहुंच आयशा को बाइक पर बैठने कहता है। आयशा सूरज के पीछे बाइक पर बैठ जाती है और अपने दोनों हाथों से सूरज के कमर को कसकर पकड़ लेती है। सूरज अपने बाइक को स्टार्ट कर वहां से निकल गया।

सूरज आयशा को उसके घर ड्रॉप करके जब सूरज जाने लगता है तो आयशा उसे रोकते हुए कहती हैं, '' सूरज!! रुको।'' सूरज अपनी बाइक को रोक कर पीछे मुड़ आयशा की तरफ देखते हुए कहता है, '' हाँ, बोलो आयशा!! क्या हुआ ?? कुछ कहना चाहती हो क्या! ''
आयशा थोड़ी देर सूरज को देखती हुई कुछ सोचती है और फिर सूरज से कहता है, '' हम्म , जी हाँ, हम कुछ कहना चाहते हैं। लेकिन कहने से पहले तुम्हें मुझसे प्रोमिस करनी होगी।'' इतना कह आयशा अपना हाथ आगे बढ़ा देती है। सूरज भी आयशा के हाथों मे हाथ डालते हुए कहता है, '' अच्छा बाबा!! हम तुमसे प्रोमिस करते हैं। अब बोलो भी। सूरज को प्रोमिस करता देख फिर आयशा मुस्कराकर बोली, '' good!!! तो मिस्टर हम ये कहना चाहते हैं कि कल से तुम्हें कॉलेज टाइम्स पे आना है और तुम कभी भी जे पी सर के क्लास में लेट नहीं आओगे। ''

सूरज आयशा को शरारत भरी निगाहों से देखते हुए कहता है, '' ओके, ठीक है। तो इतनी छोटी से बात के लिए मैडम प्रोमिस करने को कह रही थी। तो मैडम कल देखना हम यू टाइम पे कॉलेज पहुंचेगे। तुम बस देखती जाना। ''

आयशा हाथ हिलाते हुए कहती है, '' ओके, ठीक है। तो कल मिलते है। तब तक के लिए बाय। इतना बोल आयशा मुस्कराते हुए घर के अंदर चली जाती है। और सूरज भी वहां से अपने घर की ओर चला गया।

सूरज घर पहुंच अपना यूनीफॉर्म चेंज किया और बेड पर लेट गया। काफी थकान होने के वज़ह से सूरज को तुरंत ही नींद आ गया। जब सूरज की नींद खुली तो घड़ी में शाम के साढ़े छह बज रहे थे। सूरज बेड से उठा और हाथ-मुँह को धोंकर फिर से बेड पर बैठ गया और वो आज की घटित घटनाओं के बारे में सोचने लगा। ये सब सोच ही रहा था कि सूरज को अपनी माँ की कही बात याद आई, '' अरे बेटा!! मैं कुछ दिनों के लिए काम के सिलसिले से बाहर जा रहा हूँ। खाना पीना सही वक्त पे बनाकर खा पी लिया करना। भूखे मत रहना।''

इतना कह उसकी माँ वहां से जाने लगती है कि उसकी माँ को कुछ याद आया और फिर बोल पड़ी, '' और हाँ बेटा! मैं तो भूल ही गई थी। पीछे जो कमरा है उस कमरे का साफ सफाई कर लेना तब जाके उसमें पढ़ाई करना। उस कमरे की चाभी वहीं अलमारी मे रखी हुई है लेकर खोल लेना। '' इतना कह उसकी माँ वहां से कुछ काम के सिलसिले में बाहर चली गई।

सूरज को जब ये याद आया तो वह अलमारी में चाभी ढूँढने लगा। सूरज को चाभी ढूंँढने मे ज्यादा समय नहीं लगा क्योंकि चाभी अलमारी में सामने ही रखी हुई थी। लेकिन सूरज को जोरों का भूख भी लग रहा था और थकान होने के कारण फिलहाल आज रूम की सफाई करने का फैसला त्याग दिया। सूरज अब उस रूम को सफाई करने का फैसला कल पर टाल दिया क्योंकि कल रविवार भी था। अब सूरज अपने किचन रूम जा कर खाना पकाने लगा। खाना जल्द ही पक कर तैयार हो गया था। सूरज के पेट में तो पहले से ही चूहा कूद रहा था इसलिए वो जल्दी खाना खा कर पढ़ने बैठ गया। और क्लास में जो भी नोट्स दिया गया था उसे वो कम्प्लीट कर लिया। इतना करने के बाद सूरज छत पर थोड़ा टहलने गया। वहां पर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी इसलिए सूरज अच्छा लग रहा था। टहलते टहलते जब सूरज को नींद आने लगा तब लाइट ऑफ कर के सो गया।

जब सुबह सूरज की नींद खुली तो उस वक्त धूप निकल आया था। घड़ी में जब समय देखा तो साढ़े सात बज चुके थे। सूरज का तो रविवार को एक रूटीन सा बन गया था। साढ़े सात बजे तक सोना और फिर जगने के बाद एक दो घंटे काम करना जैसे कि रूम की सफाई, पेड़ पौधों को पानी देना वगैर वगैर। जब इन सभी काम को कर लेता था तो फिर हाथ पैर धोंकर चाय पीने बैठ जाता था और वो चाय के साथ बिस्किट को डूबो डूबो कर खाना नहीं भूलता था। जब चाय की चुस्कियां ले लेता था तब वह अपना कपड़े धोने बैठ जाता था और फिर कपड़े धोने के बाद वह नहा धों कर रेडी हो जाता था। तब तक मे घड़ी में समय साढ़े दस बज जाता था और फिर नाश्ता करने पहुंचे जाता था। नाश्ता करने के बाद लगभग वो एक बजे तक पढ़ने के बाद वो सीधा खाना खाने पहुंच जाता था। खान खाने के बाद कपड़े उठाकर सोने चला जाता था। जब नींद खुलता तो फिर अपने दोस्तों के साथ खेलने या बाहर कहीं घूमने चला जाता था। जब खेल कर घर लौटता तो फिर नाश्ता करके शाम साढ़े छह बजे से मूवी देखने बैठ जाता था। और ये कार्य करम साढ़े नौ बजे तक चलता था। मूवी देखने के बाद सीधा खाना खाने चला जाता था। खाना खाने के बाद वो आधा घंटा walking करता था। walking करने के बाद वो सोने चला जाता था। सूरज का ये रविवार का रूटीन था।

सूरज आज भी पीछे वाले रूम की सफाई करने के लिए चला गया। सूरज वहाँ पहुँच चाभी को ताले में डालते हुए घूमा दिया और कमरे की दरवाजा धीरे-धीरे खुलना शुरू हो गया। जब दरवाजा खुला तो सूरज कमरे की हालत देख डर गया। कमरे में अधिक रोशनी नहीं थीं इसलिए सूरज को स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहा था। सूरज स्पष्ट रूप से देखने के लिए वह अंदर गया। सूरज देखता है कि कमरे के दीवारों में जगह जगह पर जाले लगे हुए हैं और कमरे के फर्श पर धूल की मोटी सी चादर जमी हुई है। कमरे के दीवारों पर तरह-तरह की तस्वीरें टंगी हुई थी लेकिन धूल हो ने कारण साफ से दिखाई नहीं दे रहीं थीं। सूरज कमरे के चारों ओर अपनी नजरें दौराने लगता है, नजर दौराते समय सूरज को बुक रखनेवाली जैसे दराज दिखाई देता है जिसमें शायद किताबें रखी हुई थी। वो देखने में लाइब्रेरी जैसा लग रहा था। सूरज को वहाँ बेड, टेबल, कुर्सी और खिड़कियाँ भी दिखाई दिया। सूरज खिड़कियों को खोल दिया। अब खिड़की से हल्का हल्का रोशनी आने लगी।

सूरज पहले दीवारों पर लगी जाला को साफ करने का सोचा और साफ करने लगा। जाला साफ करने के बाद वो फर्श पर जमी धुल हटाने लगा। अब तक सारी सफाई हो चुकी थी सिर्फ दराज पर रखी किताबों को झाड़ना बाकी रह गया था। सूरज बाहर जाकर सीढ़ी लाने के लिए चला गया थोड़ी देर के बाद ही सीढ़ी लेकर वापस आ गया और दराज पर रखी किताब को झाड़ने लगा। अभी सूरज दराज झाड़ ही रहा था कि सीढ़ी स्लिप करने लगी सूरज तो स्लिप करते करते बचा लेकिन दराज पर रखी सारी किताबें नीचे गिर गई। सूरज सीढ़ी से नीचे उतर सभी किताबों को इकट्ठा करने लगा। अभी किताब को इकट्ठा कर ही रहा था कि उनकी नजर एक किताब पर पड़ी। उस किताब के ऊपर कुछ येलो कलर से लिखा हुआ था। सूरज उस किताब के पास जाता है और अपने हाथों में उठा कर उत्सुकता से उनके पन्ने पलटने लग जाता है। पन्ना पलटने के बाद सूरज आगे और पीछे के कवर को देखता है और कवर के ऊपर लिखे अक्षर को पढ़ते हुए बोलते हैं, " समय यात्री : द टाइम्स ट्रैवलर !! '' फिर सूरज मन ही मन सोचता है, '' अच्छा अभी के लिए इसे हम अलग करके रख देते हैं जब साफ सफाई करके फ्री हो जाएंगे तो इसे पढ़ेंगे। '' सूरज इतना कह उस किताब को साइड में रख देता है और बचे हुए किताबों को अच्छी तरह से समेट कर वहीं पर बने दराज मे रखने लग जाता है।

जब पूरा साफ सफाई हो गया तो सूरज अपनी नजर कमरे के चारों ओर दौड़ाई। ताकि वो ये सुनिश्चित कर सके कि अखिर पहले से अब ये कमरा कैसा दिख रहा है और साथ ही कहीं कोई कोना साफ करने से छुट तो नहीं गया? चारों तरफ नजरे दौड़ाने के बाद सूरज को कहीं साफ करना बाकी नहीं दिखाई दिया। तो सूरज खुश होते हुए बोला, '' ओह माई गॉड!! चलो इस कमरे की सफाई तो कर दिया। मुझे तो ऐसा लग रहा था कि सफाई करना थोड़ा मुश्किल होगा पर ये काम तो असानी से हो गया। चलो एक काम तो अच्छा हो गया कि हम अब इस कमरे को और भी सजा के लाइब्रेरी के तरह बना सकते हैं और अब से ये कमरा स्टडी के लिए हो जायेगा। ''

इतना कहने के बाद सूरज वहां से किताब को लेकर कमरे से बाहर जाने लगता है। जब कमरे के दरवाजे पर पहुँचता है तो सूरज एक नजर फिर से उस कमरे के अंदर देखता है। इस बार सूरज कमरे के अंदर देखकर शॉक रह जाता है क्योंकि वहां से अब वो कमरा काफी सुन्दर दिखाई पड़ रहा था। सिर्फ एक ही कमी थी लाइट की और वो सूरज बाद में भी कर सकता था। सूरज वहां से दरवाज लगा कर चला जाता है।