चुप्पियों का कथाकार - अर्नेस्ट हेमिंग्वे Dr Jaya Shankar Shukla द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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चुप्पियों का कथाकार - अर्नेस्ट हेमिंग्वे

चुप्पियों का कथाकार – अर्नेस्ट हेमिंग्वे

21 जुलाई 1899 को जन्मे अर्नेस्ट हेमिंग्वे उन कालजयी लेखकों में शामिल रहे जिन्होंने ताजिन्दगी युद्ध की विभीषिका को जिया और जो जिया उसे अपने उपन्यासों में लिखा | वो प्रथम विश्व युद्ध का काल था |अन्याय, भ्रष्टाचार, दरिद्रता , क्षोभ और निराशा से भरा काल |लेकिन हेमिंग्वे को युद्ध आकर्षित करते थे |

हेमिंग्वे दो चीज़ों के शौक़ीन थे |एक युद्ध और दूसरे शिकार |युद्ध उन्हें आकर्षित करते थे बल्कि उनकी दिली इच्छा थी कि प्रथम विश्व युद्ध में वो भी सैनिक रूप में हिस्सेदारी करें लेकिन ऐसा किन्हीं कारणोंवश न हो सका |

रेड क्रॉस संस्था में उन्हें एम्बुलेंस चालक की नौकरी ज़रूर मिल गयी लेकिन ये नौकरी उनके जीवन में एक बड़ा खालीपन छोड़ गयी |दरअसल इसी नौकरी के चलते वे दुर्घटना ग्रस्त हुए |इस हालत में उनकी सुश्रुशा एक नर्स ने की |लेकिन नर्स ने उनके प्रेम को अस्वीकार कर दिया |इस तरह एम्बुलेंस चलाने के एवज में उन्हें युद्ध को करीब से देखने का मौक़ा तो मिल गया लेकिन अपने पहले ही प्रेम में उन्हें निराशा मिली | हेमिंग्वे के अत्यंत प्रसिद्ध उपन्यास ‘’ फेयरवेल टु आर्म्स’’ को उनकी इसी असफल प्रेम कथा से जोड़कर देखा जाता है |इस समय उनकी उम्र महज 27 वर्ष थी | माना जाता है कि अमेरिका में युद्ध व् प्रेम के विषय पर ये सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है |स्पेन बुलफाइटिंग के लिए जाना जाता रहा है | इसी विषय पर उन्होंने ‘’डेथ इन द आफ्टरनून’’ नामक बेहतरीन उपन्यास लिखा | ‘’फॉर हूम द बेल टौल्स’’ ये उपन्यास उन्होने स्पेन में गृह युद्ध के दौरान लिखा जब वे पत्रकार थे | अफ्रीका के जंगलों में शिकार यात्रा का चित्रण उन्होने अपने उपन्यास ‘’ग्रीन हिल्स ऑफ अफ्रीका’’ में किया| मछलियों का शिकार उनका पसंसीदा काम था | उनके जिस उपन्यास ‘’द ओल्ड मैन एंड द सी ‘’को नोबल पुरस्कार से नवाजा गया वो एक मछुआरे के ही दुस्साहस और जिजीविषा की कथा है | उन्होंने वही लिखा जो जीवन में अनुभव किया |काल्पनिकता उनके लेखन में कम दिखाई देती है | उनकी कहानियाँ कहीं और कभी भी लाउड नहीं होतीं |कई आलोचकों ने उन्हें ‘’चुप्पियों का कथाकार’’ कहा है और उनकी कहानियों को ‘’हिडेन फेक्ट ‘’का नाम दिया गया |

हेमिंग्वे का लेखन विविधता पूर्ण रहा |उन्होंने लिखा है कि जीवन के बारे में लिखने से पहले आपको उसे जीना अवश्य चाहिये |उन्होंने भरपूर जीवन जिया | लेखन में महारथ हासिल की और दुनिया का सर्वश्रेष्ठ और सबसे सम्मानजनक नोबेल पुरस्कार हासिल किया | लेकिन इसी शोहरत और प्रतिभा के नेपथ्य में कहीं वे असंतुष्ट भी रहे |उन्होंने चार विवाह किये |उनका पहला प्रेम असफल रहा |युद्ध की विभीषिकाएँ देखीं | बुल फाइटिंग जैसे अमानवीय खेल को उन्होंने करीब से देखा जाना और उस पर उपन्यास लिखा |

शिकार, पत्रकारिता , प्रेम विवाह, यायावरी , प्रसिद्धि सब कुछ होते हुए भी हेमिंग्वे बाद के दिनों में निराश और अवसादित होते गए | इस उम्र में अवसादित हो जाना कोई नई घटना नहीं हालाकि कई कालजयी लेखकों की ज़िंदगी इतनी सहज और मनोनुकूल नहीं रही |वे हालातों, अपने व्यसनों, व्याधि अनेकानेक कारणों से अवसादित रहे |कई लेखकों ने आत्महत्या तक की लेकिन हेमिंग्वे जैसा बहुआयामी, प्रतिभाशाली और प्रसिद्द लेखक सब कुछ पा जाने के बाद भी जीवन से निराश हो जाता है तो वो जीवन की निस्सारता और विरक्ति का भास् है जो कहीं न कहीं अपने पिछले किये को व्यर्थता बोध से भर देता हैं | अत्यधिक लोकप्रियता भी कभी कभी अवसाद का कारन बन जाती है | ‘’जीवन के बारे में लिखने से पहले आपको उसे जीना अवश्य चाहिए’’ कहने वाला अद्भुत लेखक शायद अपने हिस्से की पूरी ज़िंदगी जी चुका था और लिखने के लिए अब उसके पास कुछ शेष न था शायद इसीलिये उन्होंने गोली से खुद को ख़त्म कर लिया |

ये एक इत्तिफाक है कि 21 जुलाई को जन्मे हेमिंग्वे ने खुद को इसी माह की 2 तारीख को ख़त्म करने के लिए चुना और ये भी एक अजीब बात है कि उन्होंने आत्महत्या करने से पूर्व एक माह तक कनपटी पर पिस्तौल लगाकर अभ्यास किया था और अंतत उसे २ जुलाई को अंजाम दे दिया |

लेखक को बुद्धिजीवी और विद्वान माना जाता है लेकिन सत्य यह भी है कि कालजयी अनेक लेखकों ने आत्महत्या की | क्या जीवन की निरर्थकता उन्हें सालती थी ? क्या वे दुनिया और प्रकृति का चक्र उन्हें उबाता था ? क्या जीवन की क्षणभंगुरता का भास उन्हें हताश करता था ? क्या अपनी ही बुद्धि बल से वे घबरा गए थे ? ये भी एक अजीबोगरीब सत्य है कि आत्महत्या का इतिहास देखें तो चर्चित लोगों में सबसे ज्यादा आत्महत्या या तो तानाशाहों ने की है या फिर लेखकों ने |