# सूर्य अथवा चंद्र तृतीय भाव मे पापी ग्रहों के साथ है तो जातंक बीमार रहेगा और कुछ समय पश्चात उसकी मृत्यु हो जाएगी।
#यदि चंद्र अष्ठम भाव मे के स्वामी के साथ केंद्र में स्थित है एव पॉपग्रह के साथ है तो शीघ्र जीवन समाप्त हो जाएगा।।
# यदि चन्द्रमा सप्तम भाव मे मंगल एव शनि है तथा राहु लगनस्थ है जातंक की कुछ दिनो मे ही मृत्यु हो जाएगी।।
ज्योतिष के अनुसार प्रेत बाधा -
*यदि कुंडली मे चंद्रमा अथवा लग्न लग्नेश पर राहु केतु का प्रभाव है तो प्रेत बाधा की प्रबल संभावना होती है।।
*कुंडली के सप्तम अथवा अष्ठम भाव मे क्रूर ग्रह राहु केतु मंगल शनि पीड़ित अवस्था मे है प्रेत बाधा की संभावना रहती है।।
*जन्म कुंडली मे लग्न भाव आयु भाव अथवा मारक भाव पर पाप का प्रभाव होता है तब जातंक का स्वस्थ निर्बल एव अल्पायु होती है।।
*चंद्रमा का लग्नेश एव अष्टमेश का अस्त होना अस्वस्थ जातंक के अलपायु योग है।।
*चंद्रमा लग्न लग्नेश अष्टमेश पर पाप प्रभाव इन ग्रहों की पाप ग्रहों की युति अथवा कुंडली मे कही कही पर चन्द्र की राहु केतु के साथ युति यह दर्शाती है भूत प्रेत प्रकोप को दर्शाता है।।
*चंद्रमा केतु की युति यदि लग्न में हो तथा मंचमेश हो और नवमेश भी राहु के साथ सत्तम भाव मे हो बौद्धिक शारीरिक स्वास्थ्य के साथ प्रेत बाधा सम्भव है।
*नीच राशि मे स्थित राहु एव लग्नेश सूर्य शनि अष्टमेश से दृष्ट हो।
पंचम भाव मे सूर्य शनि हो निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव मे हो।।
*जन्म समय चन्द्र ग्रहण हो और लग्न पंचम तथा नवम भाव पापग्रह हो जन्म से जातंक पर प्रेत बाधा की संभावना बनी रहती है।।
*षष्ठ भाव मे पापग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु एव केतु की स्थिति हो।।
*लग्न में शनि राहु की युति हो या दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थित हो अथवा लगनस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।।
*लगनस्थ केतु पर पाप ग्रहों की सृष्टि हो।।
*निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो प्रेत भय की संभावना रहती है।।
निर्बल चंद्रमा षष्ठ अथवा बारहवे भाव मे मंगल राहु या केतु के साथ हो।।
चार राशि (मेष,कर्क,तुला,मकर,)के लग्न पर षष्टेश की दृष्टि हो।।
*एकादश भाव मे मंगल हो एव नवम भाव मे स्थिर राशि(वृष, *सिंह,बृश्चिक,कुम्भ,)और सप्तम भाव मे द्विस्वभाव binamiyal charector राशि {मिथुन ,कन्या,धनु,मीन} हो प्रेत बाधा सम्भव है।।
*लग्न भाव मे मंगल से दृष्ट हो तथा षष्टेश दसम या सप्तम या लग्न भाव मे स्थित है।।
*मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव मे स्थित हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्ननस्थ हो।।
पाप ग्रहों से युक्त या दृष्टि या दृष्टि लगनस्थ हो।।
*शनि ,राहु,केतु,या मंगल में से कोई भी कोई एक ग्रह में से कोई भी एक ग्रह सप्तन स्थान में हो।।
*जब लग्न में चंद्रमा के साथ राहु और त्रिकोण भाँवो में क्रह हो ।
*अष्ठम भाव मे शनि के साथ निर्बल चंद्रमा स्थिति हो।।
*राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।।
*लग्नेश एव राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से सम्बंधित हो।।
*राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव मे हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादस भाव मे स्थित हो।।
*द्वितीय में राहु द्वादस में शनि षष्ठ में चंद्र लग्नेश भी अशुभ भाव मे हो।।
चन्द्रमा एव राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव मे हो।।
*चतुर्थ भाव मे उच्च का राहू हो वक्री मंगल द्वादस भाव मे हो तथाआमवस्या तिथि का जन्म हो ।।
*नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नीची राशि का हो ।।
ज्योतिष एव भूत प्रेत---
(क)-भूत प्रेत निवास स्थान---
*ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भूत प्रेत का निवास पीपल का बृक्ष जहाँ देवता और भूत पिचास दोनों का निवास माना जाता है इसी कारण किसी भी प्रकार के दुख निवारण के लिये पीपल की पूजा बताई गई है।
*कीकर बृक्ष-इस बृक्ष पर भूत प्रेत का निवास होता है श्मशान और कब्रिस्तान में भूत प्रेत का निवास स्थान होता है।।
(ख)कहां ना जाये क्या ना करे --
#भूत प्रेत से सावधान रहने के लिये सर्व प्रथम निर्वस्त स्नान वर्जित है चाहे जितना भी निर्जन स्थान पर नदी तालाब कुएं में गंदगी नही डालनी चाहिये ।।
# कुएं में विशेष प्रकार की प्रेत आत्माओं का निवास होता है भूत प्रेत गंदगी से विशेष रूष्ट होकर मनुष्य को हानि पहुचते है।।
#शमसान कब्रिस्तान में कुछ भी खाना वर्जित है जहां भूत प्रेत का निवास हो वहाँ इत्र मिठाई सफेद व्यंजन आदि लेकर जाना वर्जित है एव मल मूत्र का त्याग वर्जित है।।
(ग) प्रेत बाधा हो तो क्या करे--
*यदि किसी व्यक्ति पर प्रेत बाधा है तो उसकी चारपाई के नीचे नीम की सूखी पत्ती जलाना चाहिये।।
*यदि कोई व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार है तो मंगल शनिवार को एक नींबू लेकर सात बार सर से पैर तक घुमाना चाहिये और उस नींबू के चार टुकड़े कर घर के बाहर चारो दिशाओं में फेंक देना चाहिये।।
आत्मा स्वयं ईश्वर अंश है जो जन्म नही लेती मरती नही कटती नही जलती नही सिर्फ कर्मानुसार जन्म लेती है यदि कोई व्यक्ति अपने निर्धारित कर्म भोग की अपूर्णता या किसी अपूर्ण इच्छा की सोच चाहत के साथ शरीर का त्याग करता है तब वह अपनी अपूर्णता को पूर्ण करने हेतु शुक्ष्म शरीर के साथ सृष्टि अपनी पूर्णता की खोज में भ्रमण करता है और अपने जीवित शरीर के मूल आचरण के अनुसार आचरण करता है यदि जीवित शरीर से सात्विक था तो प्रेत होने पर भी सात्विक कल्यणकारी होगा तुलसी दास जी को प्रेत ने ही हनुमान जी से मिलने का मार्ग बताया था यदि जीवित शरीर से व्यक्ति नकारात्मक विध्वंसक था तो प्रेत होने पर भी वह विध्वंसक ही होगा।।
प्रेत बाधा उत्पन्न होने पर क्या करे---
1-जिस भी स्वरूप में रुद्र के प्रति उसकी आस्था स्थिर रहती हो उस रुद्रांश के स्थान या मंदिर जाकर उसका ध्यान करें ।।
2- यदि मंदिर जाना संभव ना हो तब घर पर ही ध्यान करना चाहिये यदि प्रेत प्रभवित व्यक्ति दोनों करने की स्थिति में नही हो तो उसे उसके चारों तरफ रुद्राक्ष की तस्बीर लगाकर किसी कमरे में बंद कर दे वह बन्द कमरे में जिधर देखे उधर उंसे रुद्रांश या रुद्र नज़र आये।।
3-रुद्र या रुद्रांश रुद्र है भगवान शिव रुद्रांश है हनुमान जी गणेश जी काल बैरव आदि।।
4-कभी कभी ग्रामीण अंचलों में मानसिक बीमारियों को भी भूत प्रेत बाधा के लिये झाड़ फूंक आदि में फंस स्वयं को भयंकर अनिष्ट को जन्म देते है ऐसी स्थिति में इलाज कराना ही बेहतर होगा।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश