39 Days - 3 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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39 Days - 3

और 2019 का दिसम्बर
इस साल में मेरी माँ का देहांत हो गया।
बेटे की तबियत बहुत अच्छी नही चल रही थी।इस बीच मे दो बार उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।और इधर आर्थिक संकट
31 दिसम्बर को मैने गुस्से में बेटे से न जाने क्या कह दिया।उस समय दो दुकानें थी।एक किराए की दूसरी अपनी।मैने भी दुकान पर बैठना शुरू कर दिया।लोग अकेला देखकर बेटे को तंग न करे इसलिए उसके साथ उसकी पत्नी को भी बैठता था।लोग धमकियां दे रहे थे।डर यह लगा रहता कही लोग पोतों के साथ कुछ गड़बड़ न कर दे।इसकी आसंका हमे थी और ssp को शिकायत कर दी थी।
एक तारीख।यानी जनवरी बीस का पहला दिन।
बेटा मेरे से पहले दुकान के लिए निकलता और मैं उसके बाद में जाता।बेटा किराए की दुकान खोलता और मैं अपनी।
मुझे न जाने क्यो उस दिन अनहोनी की आशंका लग रही थी।मन भी कुछ बेचैन था।मैं घर स आता तो पहले अपनी दुकान आकर नही खोलता था।पहले बेटे की दुकान पर जाता और कुछ देर उससे बात करता और फिर अपनी दुकान पर आकर दुकान खोलता।
उस दिन मैं बेटे की दुकान पर पहुंचा तो दुकान बंद थी।बेटा तो करीब एक घण्टे पहले घर से आया था।फिर अभी तक दुकान पर नही पहुंचा।कहा रह गया।मैने तुरन्त पत्नी को फोन किया और उसे दुकान न खुलने की बात बताई।मेरी पत्नी बोली,"वह परेशान होता तो मंदिर में जाकर बैठ जाता है।वहा देख लो।"
पास में ही चामुंडा देवी का मंदिर है।मैने पूरे मंदिर को देख लिया।पर वह नजर नही आया।मैं रिक्शा करके घर के लिए चला।तभी रास्ते मे पत्नी का फोन मिला,"देर हो गयी।हो सकता है,अब पहुंच गया हो।"
और मैं वापस लौटा लेकिन दुकान बंद थी।तब मैंने दुकान मालिक जिनका घर भी वही था।बुलाकर पूछा लेकिन उन्होंने अभिघ्यता जाहिर की।तभी दुकान मालिक के बेटे की बहू ने बताया कि आकर दुकान खोली थी और साफ सफाई करके चाबी देकर चले गए है।
और मेरा दिल धड़कने लगा।मै और दुकान मालिक बाइक पर निकल पड़े।मैने अपने मित्र को अवस्थी और मिश्रा को भी फोन कर दिया।पत्नी ने हमारे साथी शुक्लाजी को सारी बात बताई और वे भी खोज में निकल पड़े।
मैं और दुकान मालिक ने रेलवे लाइन और अन्य जगह देखा।पुलिस के पास भी गए।पुलिस चौकी दुकान के पास ही थी।वे लोग बेटे को जानते थे।हम भाग रहे थे।कोई स्टेशन कोई कई और कई घण्टे बाद अवस्थी का फोन आया,"राजीव बस स्टैंड पर मिल गया है।"
उसने ईदगाह बस स्टेशन के बाहर चाय की दुकान पर उसे बैठा हुआ देख लिया था।
और हम लोग वहा पहुंच गए थे।सब ने उसे समझाया और घर लाये थे।बच्चों को हमने कुछ नही बताया पर हम बाते कर रहे थे,तो वे समझ तो जाते ही है।
और फिर हमारे मन मे डर बैठ गया।बहु से भी कहा इस पर पूरा ध्यान रखे।तो सन 2020 की शुरुआत कुछ इस तरह हुई थी।मन मे जो डर था, वो सच होने से रह गया और हम ने कुछ राहत की सांस ली।लेकिन उसने हमे सचेत रहने की प्रेरणा दी थी।उसकी पत्नी और दो छोटे बेटे भी थे।जिनका भविष्य भी उनसे जुड़ा हुआ था।हम तो थे ही इसमें