Sunahara Dhokha - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सुनहरा धोखा - 2

2

धोखा

टीवी

एक दिन शीला ने मोहन से कहा-‘देखोजी ! घर का टीवी खराब हो गया है| उसे सुधरा लाइये |

मोहन ने कहा- ‘ शीला मुझे फुर्सत नही है | पास मे बहुत दुकाने है, तुम खुद जाकर सुधरवा लाओ |”

इस पर शीला पास मे एक दुकान पर गई | वह इलेक्ट्रानिक्स की एक बड़ी दुकान थी |

वहां का मालिक एक युवक था |

शीला को देखते ही वह स्तब्ध रह गया| उसने ऐसी सुंदर युवती इससे पहले शहर मे कभी न देखी थी|

उसने शीला से कहा-‘ आइये, मै आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ? मेरा नाम विशाल है |”

शीला ने मुस्कराते हुए कहा- ‘मेरा नाम शीला है | मै पास मे ही रहती हूं| मेरा टीवी खराब हो

गया है ‘ उसने टीवी दुकानदार की ओर बढ़ाते हुए कहा |

विशाल ने नौकर को काफी का आर्डर दिया|

दोनो काफी पीते हुए एक दूसरे को देखकर मुस्करा रहे थे| दोनो इश्क के पुराने खिलाड़ी थे|

विशाल अमीर व्यापारी की बिगड़ी औलाद था| वह लंबा चौड़ा शीनदार व्यक्तित्व का मालिक था|

सुंदर युवतियों को अपने जाल मे फसाना उसका प्रमुख धंधा था| इधर शीला ने भी विवाह पूर्व खूब गुल खिलाए थे|

विशाल ने कहा-‘कृपया आपका परिचय’ ?

शीला मुस्कराते हुए बोली- मेरे पति का नाम मोहन है | वे लेक्चरर है |

कुमार ने काफी पीते हुए आंख मारते हुआ कहा-‘ आप तो कही से कही तक विवाहित नही लगती| ’

शीला अपनी तारीफ सुनकर बड़ी खु्य हुई व हंसने लगी | कुमार ने टेबल के नीचे से अपना हाथ उसकी जांघ पर रख दिया|शीला ने कोई प्रतिकार नहीं किया |

शीला मुस्कराने लगी | पहली ही मुलाकात मे दोनो एक दूसरे की नियत अच्छी तरह भांप चुके थे|

शीला ने कहा,‘ अब मै कब आऊं? ’

विशाल; यह आपकी दुकान है, आप रोज ही आइये|

शीला ने मुस्कुराते हुए कहा - ‘ मै दो तीन दिन बाद आऊंगी| ’

टीवी 2

तीन दिन बाद शीला विशाल इलेक्ट्रानिकस पर पुनः पहुची |

‘मेरा म्यूजिक सिस्टम तैयार कर दिया क्या’? उसने हँसते हुए पूछा |

विशाल उसे देखते ही खु्शी से उछल पड़ा |

उसने कहा – आइये,पहले बैठिये तो सही|

शीला मुस्कराते हुए बैठ गई | विशाल ने दो कोल्ड ड्रिंक का आर्डर दिया|

दोनो मुस्कराते हुए एक दूसरे को उच्छ्रंखलता करने का न्यौता दे रहे थे|

शीला ने अपना प्रश्न दोहराया |

विकासः क्या करूं मैडम ! आपका कार्य नही हो सका क्योकि मेरा मेकेनिक छुटृी पर गया हुआ है |

शीला ने मुस्कुराते हुए कहा ‘मै सब समझती हूं | आप मुझे बार बार दुकान मे बुलाने का बहाना बना रहे हो|”

इस पर विशाल ने टेबल के नीचे से छुपाते हुए उसकी जांघ पर दूर तक हाथ फेर कर परीक्षा की | शीला ने कोई रूकावट न डाली और जोर से आह भरते हुए मुस्कराई |

उसने कहा - अब बताइए, ‘आप मेरा काम कब कर रहे हो‘?

‘जब आप चाहे जब और जहां कहें ’- विशाल ने टेबल के नीचे हाथ डालकर उसकी जांघ पकड़ ली | अब गूढ़ भाषा मे एक दूसरे को सहर्ष सहमती के संकेत दिए जाने लगे|

उस दिन भी म्यूजिक सिस्टम तैयार न होने से शीला व विशाल ने आमंत्रण की मुद्रा मे कुछ छिपे संकेत एक दूसरे को दिए | दोनो इश्क के मंजे हुए पुराने खिलाड़ी थे|

टीवी 3

कुछ दिनो से शीला ओर विशाल एक दूसरे से चुहुलबाजी कर रहे थे |

“चोरी मे जो मजा है वह किसी अन्य वस्तु मे नही “ की तर्ज पर वे कामुक वार्तालाप और चुहुलबाजी का भरपूर मजा ले रहे थै |

उस दिन जब शीला दुकान पहुंची तो विशाल उसका बेसब्री से इंतजार करता मिला|

उसके बिना पूछे ही वह बोला-‘आइये मैडम !लीजिए आपका सेट तैयार है |”

‘ मेरी मशीन कहाँ है ?- शीला ने पूछा

“ उसमे सिर्फ एक तार जोड़ना शेष है| आप खुद भी टेस्ट कर लीजिए”,

ऐसा कहकर वह शीला को अपने साथ डार्क्र रूम में ले गया |

वहां उसने म्यूजिक सिस्टम मे तार जोड़ने का नाटक करते हुए फुर्ती से दरवाजा बंद कर लिया |

उसने शीला से कहा- ‘अब आप भी टेस्ट कर ले |”

शीला उस मद्धिम रौशनी वाले रूम मे जेसे ही म्यूजिक सिस्टम पर झुकी कि विशाल ने उसके पीछे जाकर म्यूजिक सिस्टम चालू करके दिखा दिया| फिर उसने उसे जोर से उसे अपने आगोश में भर लिया |उसने शीला को जोरों से चूम लिया|

शीला ने खु्शी से विशाल को अपना पूर्ण समर्पण कर दिया|

विशाल ने म्यूजिक सिस्टम सुधारने के उससे कोई पैसे उससे नही लिए|

इसके बाद आए दिन शीला जब समय मिलता, विशाल के पास पहुच जाती|

सिनेमा

एक दिन विशाल एवं शीला एक टाकिज में फिल्म देखने गए | उन्होने बालकनी का टिकिट लिया| उस छोटे स्वतंत्र कमरे नुमा बाक्स मे उनके सिवा कोई अन्य व्यक्ति नही था | फिल्म तो एक बहाना था उन्हें परस्पर बेरोकटोक स्वतंत्रता से मिलने का मौका खोजना था | वहां उन्हें देखने वाला, टोकने वाला कोई नहीं था |

शीघ्र ही विशाल ने शीला को अपनी गोद मे समेट लिया|

वे बार बार एक दुसरे से लिपटते रहे,चूमते रहे | वे सबकुछ निर्विघ्न होकर करते रहे |

उन्होंने संसार का सबसे बड़े शारीरिक सुख का भरपूर मजा लिया और फिल्म भी देखी |

फिल्म समाप्त होने पर वे बाहर निकले |

जैसे ही शीला कार मे बैठने को हुई उसने मोहन को थिएटर के बाहर खड़े देखा |

वह फिल्म के पोस्टर देख रहा था |वह घबरा गई | उसका पूरा बदन कांपने लगा |

उसका दिल बुरी तरह से धड़क रहा था |

उसने झट कार का दरवाजा बंद करते हुए विशाल को आगे बढ़ने को कहा|

विशाल ने शीला से घबराहट का कारण पूछा तो उसने कहा, ‘‘मेरे पति दरवाजे पर खड़े थे | कहीं उन्होंने मुझे देख न लिया हो’ |

उस दिन शीला घबराकर दौड़ती हुई अपने घर गई|

रात को घर लौटने पर मोहन ने उससे पूछा.’शीला ! मैने आज दोपहर तुम्हे रीता टाकीज से किसी अजनबी के साथ निकलते देखा था|”

शीला बुरी तरह घबरा गई किन्तु उसे मोहन को बेवकूफ बनाने मे महारत हांसिल थी|

उसने कहा,’ ‘आप मुझे कभी भूलकर भी पिक्चर नही दिखाते हो और आपने मुझे टाकीज मे देख लिया | क्या आप ने कोई सपना देखा ?‘

तब मोहन ने कहा . ‘यदि यह बात है तो फिर वह स्त्री कोई तुम्हारी कोई डुप्लिकेट रही होगी|”

मुझे भी तो अपनी डुप्लिकेट से मिलवाओ|

मोहनः अरे तुम मजाक समझती हो पर हूबहू मैने कई बार अनेक लोगों के डुप्लिकेट देखे हैं|

ऐसे ही एक बार परीक्षा के दिनों में एक कमरे मे मेरी पर्यवेक्षक की ड्यूटी लगी| एक लड़की वहां परीक्षा दे रही थी|

वह कापी देकर चली गई|कुछ देर बाद मैने उसी लड़की को दूसरे कमरे मे परीक्षा देते देखा|

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ| परीक्षा समाप्त होने पर वे दोनो एक साथ बाहर जा रही थी | वे मुझे घूरते हुए देखकर हंस रही थी|

शीला बहुत देर तक अपने भाग्य व अपने पति के भोलेपन पर हंसती रही |

ऐक दिन विशाल ने शीला से कहा, ‘ यदि तुम्हारे पति को हमारे संबंध के विषय में मालूम पड़ गया तो तुम क्या करोगी‘?

शीला ने कहा,’मेरे पति बहुत सीधे हैं | वे आंख मूंदकर मेरी बात पर विश्वास करते हैं |

दूसरे दिन शीला ने मोहन से कहा,  ‘ आज शाम को आप मुझे पार्क में घुमाने ले चलना ‘ |

मोहन ने कहा,’ देखो मैं बहुत बिझी हूं किन्तु फिर भी हमें साथ साथ बाहर गए काफी समय होगया है | मैं कालेज से जल्दी लौटने का प्रयास करूंगा |

शाम को मोहन व शीला शहर के ऐक प्रसिद्ध पार्क में घूमने गए|

कुछ देर बाद शीला ने कहा,’ मैंने ऐक इलेक्ट्रानिक की दुकान देखी है जहां बहुत सस्ता सामान मिलता है| वहां चलते हैं |”

मोहन ने कहा,’शीला मुझे किसी दुकान पर नहीं जाना | मेरा किसी सामान खरीदने में कोई इंट्रेस्ट नहीं है |”

शीला,’ किन्तु मुझे अर्जेंटली एक प्रेस खरीदना है |”

उसके जोर देने पर वे दोनों विशाल की दुकान पर पहुंचे|

वहां शीला ने एक प्रेस खरीदी|

विशाल ने काफी का आर्डर दिया| वह और शीला ऐक दूसरे से अनजान बने रहे|

विशाल ने उनसे कहा,’ हमारी दुकान पर बड़े सस्ते दर पर इलेक्ट्रानिक आयटम उपलब्ध हैं |”

मोहन चिढ़ते हुए कहा, ‘ मुझे किसी वस्तु में रूचि नहीं है’ |

इस बीच उसने टेबल के नीचे से विशाल के घुटनों द्वारा शीला के घुटनों को हिलाते हुए महसूस किया |

मोहन ने सहसा मुड़कर देखा तो शीला और विशाल एक दुसरे को देखकर मुस्करा रहे थे |

मोहन को सतर्क देखकर वे सकपका गए | मोहन ने भी उस घटना को गंभीरता से नहीं लिया |

प्रेमी प्रेमिका के दिन बड़े रोमांच व मजे से गुजर रहे थे |

एक दिन विशाल ने शीला से कहा, “ यदि तुम्हारी सास को हमारे सम्बन्ध के बारे में पता चाल गया तो आप क्या करोगी ?”

शीला ने विशाल से कहा, “ अब आप देखते जाइये मै अपनी भोली सास को किस तरह मुर्ख बनाती हूँ ? “

विशाल ने उछलते हुए कहा,’ यदि तुम ऐसा करके बतादो तो मै तुम्हे मुंबई की सैर कराने की शर्त लेता हूँ’ |

तीन दिन बाद शीला ने अपनी सास को मूर्ख बनाने की शर्त स्वीकार कर ली |

उसने अपनी सास से कहा, ‘मां !मैंने एक दुकान देखी है वहां फ्रीज,प्रेस, सिलाई मशीन आदि अन्य अनेक आइटम पानी के भाव के समान सस्ते मिलते हैं |”

मां ने कहा, ‘बहू इलेक्ट्रानिक आइटम तो बहुत मंहंगे मिलते हैं| उन्हें खरीदना हमारे बजट के बाहर है |”

शीला ने उत्साहित होकर कहा,’ वही तो मैं बतला रही हूं | मैंने ऐसी दुकान देखी है जहां आधी कीमत पर बढ़िया सामान मिलता है और वह भी सस्ती किश्तों में नहीं समझ में आए तो न लेना|’

उसकी सास उसके झांसे में आकर उसके साथ विशाल के स्टोर पर जा पहुंची|

वह इस बात से पूर्णतया अनजान थी कि विशाल व शीला के बीच उसे मूर्ख बनाने की शर्त लगी हुई है|

स्टोर पर पहुंचने पर विशाल उसकी सास को विभिन्न इलेक्ट्रानिक आइटम  व प्रत्येक पर दिया जाने वाला डिस्काउंट बताने लगा| जब मां चीजें देखने में व्यस्त रहतीं तो विशाल व शीला उससे नजरें छुपाकर ऐक दूसरे को अश्लील इशारे करते रहे | वे माज़ी की उपस्थिति में ऐक दूसरे का भरपूर मनोरंजन कर रहे थे|

उसकी सास ने कहा, ‘ये सारे आइटम हमारे बजट के बाहर है’ |

विशाल बोला, ‘ हम किश्त की सुविधा भी देते हैं| ’

शीला के जोर देने पर उसकी सास ने कुछ सस्ते आइटम किश्तों पर खरीद लिए |

शीला को इन किश्त चुकाने के बहाने बार बार विशाल के यहाँ जाने का बहाना मिल गया |

कुछ देर बाद शीला व उसकी सास दुकान से लौटने लगे|

जाते जाते उसने अगली रात उसके साथ गुजारने का वादा इशारों में किया|

अपने बेटे की ग्रहस्थी पर घुमड़ते हुए बर्बादी के भयानक तूफान से अनजान मां अपनी चालाक बहू के साथ घर की ओर जा रही थी |

किसी ने सच ही कहा है,‘ त्रिया चरित्रम पुरूषस्य भाग्यम, देवो न जानाति कुतो मनुष्यः’

अर्थात ‘स्त्री का चरित्र व मनुष्य के भाग्य का पता देवता भी नहीं जानते, तब भला मनुष्य की क्या बिसात|”

ऐक कार बड़ी तेजी से शहर की सीमा पार कर आगे बढ़ रही थी|

उसमें विशाल व शीला बैठे हुए थे|

कार बीच बीच में किसी सुनसान जगह की तलाश करती हुई रूक जाती थी |

किसी राहगीर या वाहन को आते देख वे आगे बढ़ चलते|

शहर से दूर बड़ी मुश्किल से उन्हे एकांत नसीब हुआ |

कार के काले कांच चढा लिए गए|

सीट का फोल्ड खोलकर उसे पुरा फैला लिया गया|

दो जिस्म गर्म उंसासे छोड़ते हुए संसार के सबसे बड़े सुख को पूरा पूरा लूटने व ऐक दूसरे को पूरा निचोड़ने पर आमादा थे|

चोरी के सुख में अलग ही मजा है | उसमे कभी न खत्म होने वाली बेसब्री होती है |

होटल

उस दिन शीला और विशाल एक बड़े होटल मे डिनर कर रहे थे|

ऐसे महंगे होटल मे मोहन के आने की संभावना कम थी|

वहां प्रायवेट फेमिली रूम भी मिलते थे |जहाँ एकांत में बैठकर प्रेमी जोड़े प्रणय का मजा ले सकते थे |

वे कुछ देर के लिए ओपन मे ऐक डाइनिंग टेबल पर बैठ गए|

वहां कुछ दूरी पर एक अन्य जोड़ा बैठा था | वह आदमी उन्हे घूर रहा था|

शीला को भी वे लोग कुछ जाने पहचाने से लगे|

“यंहां से चलना होगा,उठिऐ, कहीं और चलते है “, कहते हुए वह खडी होगई

वे शीघ्रता से वहां से चल दिऐ |

किसी दिन वे दोनो शाम के समय कही दूर एकांत में किसी होटल में जाकर ठहर जाते जहाँ किसी पहचान वाले के आने की बहुत कम सम्भावना होती | वे पूरी तरह निर्द्वंद उछ्रन्खल होकर मजे करते | किन्तु शीला को एक अज्ञात भय सदा ही लगा रहता |

चोर को पकड़ लिए जाने का डर हमेशा सताता रहता है|

एक दिन शीला ने अपनी सास से अपने पिता के यहां जाने का बहाना बनाया |

भोली सास पर वह सदा अपने बड़े घर की बहु का रौब जमाया करती थी | सास भी उसके आने जाने के विषय में अधिक पूछताछ नहीं करती | शिला मनमाने तरीके से अनेक प्रकार के बहाने बनाते हुए अपने घर से निकल पड़ती |

बच्चे को उसने अपनी सास के हवाले कर रखा था | उसने विशाल के साथ कही पिकनिक मनाने के लिए आउट स्टेशन का प्रोग्राम बनाया था|

वे दोनो ट्रेन मे सवार हो चुके थे| ट्रेन को चलने में कुछ देरी थी |

इतने मे शीला को मोहन प्लेटफार्म पर दिखाई दिया |

वह स्टेशन के बुक स्टाल से मेगजीन खरीद रहा था | शीला ने उसे देख लिया किन्तु मोहन ने उसे नही देखा था| शीला बुरी तरह डर रही थी|

अचानक मोहन मुड़ा व उसने अपने समीप के डिब्बे में शीला को ट्रेन मे बैठे देख लिया|

उसे विशाल को शीला के साथ बैठा देख बड़ा आश्चर्य हुआ|

उसने पुछा- कहाँ जा रही हो शीला ?

“मेरे पिता बीमार है, मै उन्हें देखने जा रही हूँ |” उसने कहा

तुम्हारे साथ बैठे, ये कौन है ? इन्हें मैंने कहीं देखा है ?

शीला ने अजनबी बनते हुए कहा- ये विशाल इलेक्ट्रोनिक वाले है, ये महाशय भी कही जा रहे होंगे |

मोहन ने विशाल से पूछा -आप कहां जा रहे हैं|

उसने उत्तर दिया - ‘ भोपाल|’

मोहन खु्य होकर बोला- तब तो शीला तुम्हे अच्छा साथ मिल गया है|

उसने विशाल से कहा - जरा इनका ध्यान रखना भाईसाहब !अकेली लेडी है |

विशाल ने स्वीकृति मे सर हिलाया व बहुत धीरे बोला - बहुत अच्दी तरह, बेफिक्र रहो|

कुछ दिन बाद शीला भोपाल जाने वाली ट्रेन में फिर से सवार थी |

उसके साथ विशाल भी था|

वे दोनों मुम्बई घूमने जा रहे थे| शीला विशाल की बाहों में मस्ती से झूम रही थी|

उसने अपनी सास से बीमार पिता को देखने का बहाना बनाकर भोपाल जाने की परमीशन ले ली थी|

बाद में तो वह सास से फलां काम करने जा रही है कहकर बिना प्रत्युत्तर सुने ही कहीं भी चल देती थी|

घर में सब लोग उसे बड़े घर की बेटी समझकर अधिक रोकते टोकते नहीं थे| उसी का नाजायज फायदा वह उठा रही थी|

अभी ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी हुई थी| अचानक शीला चौंक कर विशाल से दूर हट गई | उसने मोहन को ट्रेन की ओर आते देखा | वह डिब्बे में एक ओर दूर चली गई

जहां से वह आसानी से किसी व्यक्ति को नहीं दिखाई दे किन्तु वह लगातार खुद को छिपाते हुए मोहन पर नजर रख रही थी|

मोहन ने बुकस्टाल से कुछ किताबें व मेगजीन खरीदी | वह बिना ट्रेन की ओर अधिक देखे वहां से चला गया| शीला का दिल जोरों से धडक रहा था|

वह बुरी तरह से डर रही थी यदि वह फिर से विशाल के साथ रंगे हाथ पकड़ ली जाती |

वैसे वह स्वयं को दिलासा देती रही कि मोहन को मूर्ख बनाना बहुत सरल कार्य था|

विशाल समझ चुका था कि शीला ने किसी परिचित को देख लिया है |

उसने पूछा, ‘ तुमने किसे देखा जो तुम छिपने का प्रयास कर रही थी ? ’

शीला ने बहाना बनाते हुए कहा, ‘ मैंने एक परिचित को देख लिया था| ’

उसे डर था कि मोहन के भय से कहीं विशाल उसका साथ न छोड़ दे|

साथ ही वह मोहन के द्वारा पकड़े जाने के डर से भी खौफजदा थी क्योंकि

वह जितना सीधा था उतना ही खूंखार था|

बस ऐक बात ही उसके फेवर में थी कि मोहन उसके बहाने पर बिना प्रश्न किए आंख मूंदकर तुरंत विश्वास कर लेता था|

शंका

शीला रोज देर रात घर लौटती| वह घर से बाहर रहने के तरह तरह के बहाने बनाती|

मोहन अपनी भागदौड़ मे इतना व्यस्त रहता कि उसकी माता शीला के विषय मे कुछ संदेहजनक बताने का प्रयास करती तो वह ध्यान नही देता |

बार बार माँ के चेतावनी भरे लहजे में कहने पर जब वह शीला से पूछता कि वह रोज रोज कहाँ जाती है,तो शीला उसे समाज सेवा मे खुद को व्यस्त होने का बहाना बना देती और मोहन समाज सेवा की बात सुनकर बिना जाँच पड़ताल किए उसकी तारीफ करने लगता |

श्यामा बड़ी चिंतित थी क्योकि कई लोगो ने शीला को किसी अनजान आदमी के साथ देखा था |

यहां तक कि उसके भतीजे गोपाल ने श्यामा को बताया कि उसने विशाल के साथ शीला को अनेक जगह घूमते हुए व आपत्तिजनक स्थिति में देखा था|

उस दिन शीला जब लौटी तो काफी रात हो चुकी थी |

आते ही वह अपने अंतरंग वस्त्र धोने लगी |

उसकी सास श्यामा और जेठ कुमार को उसका यह कार्य शंकास्पद लगा |

वह कोई गलत कार्य करके आई व उसके सबूत मिटा रही थी|

कुमार ने मां से कहा, ‘शीला सौ प्रतिशत बिगड़ैल है |”

कुछ देर बाद घर मे मोहन ने घर में प्रवेश किया| मां उसे दूसरे कमरे मे ले गई|

उसने कहा-

‘बेटा मेरी बात ध्यान से सुन | आज शीला अपने अंतरंग कपड़े धोकर अपने गलत कार्यो का सबूत मिटा रही थी |

हमने उसे रंगे हाथ पकड़ा है| इसे कई लोगो ने अजनबियो के साथ घूमते देखा है |’

इस पर मोहन ने शीला से पूछा -‘ तुम अपना जांघिया व लहंगी रात के समय क्यो धो रही थी ?

इस पर शीला ने बड़ा प्यार जताते हुए मोहन से कहा- ‘आज मै अपनी बहिन से मिलने अस्पताल गई थी | वहां उसकी सहेली सीढियों से गिर पउ़ी | मैने उठाकर उसे कमरे मे पहुंचाकर समरहमपटृी करवाई | इससे मेरे कपड़े खराब हो गए | इसलिए मै अपने कपड़े धो रही थी’ |

आपकी माँ और भाई मुझे इस घर से बाहर निकलना चाहते है, इसलिए वे आपके कान भर रहे है |

इस पर मोहन ने खु्श होते हुए कहा,” तुमने सेवा का अच्छा कार्य किया है| ऐसा कार्य हमेशा करते रहो | मै तुम्हे शाबासी देता हूं |’

मोहन के शीला पर आँख मूंदकर विश्वास करने पर मां और कुमार को गहरा दुख हुआ|उन्हें मोहन की गृहस्थी पर काले बादल मंडराते दिखे किन्तु मोहन के शिला पर अन्धविश्वास से वे विवश थे |

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