आगे....... राधव और चाहत की कभी कभी मुलाकात होती थी। एक दूसरे के घर आना जाना रहता था। इसलिये दोनों एक दूसरे के बारे मे सब जानते थे और समझते थे।
कॉल पर बात करना दोनों को पसंद नहीं था इसलिये ज्यादा तर बातें मैसेज पर करते। मस्ती मजाक मे भी राधव इसबात का पुरा ध्यान रखता की चाहत को बुरा ना लगे। बातों बातों में चाहत कहींबार कहती "मे तुमको दोस्त नहीं मानती, और राधव कहता it's ok, I understand... चाहत ये सोचती की राधव मेरी बातें इतनी अच्छे से कैसे समझ जाता है?
इसी अच्छाई और सच्चाई देख चाहत को राधव पर भरोसा हुआ। लेकिन भरोसा होते हुए भी मन से अपना नहीं पाई, क्योंकि भरोसा तो उसे जैन पर भी था। वो भी खुदसे ज्यादा, मगर जब अपनी दोस्ती के लिये कुछ करने का वक्त आया, तो जैन पीछे हट गया और अपनी दोस्ती को बदनाम कर दिया।
चाहत ये नहीं चाहती थी की फिर कोई उस पर ऊँगली उठाये, फिर कोई उसके रिश्ते पर सवाल करे, फिर कोई उसे गलत बोले, इसलिए उसने राधव से अपना रिश्ता बेनाम रखा।
करीब तीन साल बीत गये। मगर राधव और चाहत का रिश्ता तब भी वैसा ही था। राधव को उसका और चाहत का रिश्ता बहोत अच्छा लगता था, जैसा और जिस तरह का था, वो उसमे खुश था। ना कोई बंधन, ना कोई लडाई, ना कोई शक, ना कोई गम, बस बहोत सारी बाते और मजाक, दोनों की समझदारी और एक दूसरे की अच्छी साजेदारी, वही उन दोनों के रिश्ते की खासियत है।
वक़्त बिता, साल बदला, उसी के साथ चाहत ने अपनी सोच को बदल दिया। सालों के बाद जिस रिश्ते को कोई नाम नही दिया। चाहत ने उस रिश्ते को एक नाम दिया...
चाहत ने राधव से अपनी दोस्ती का इजहार किया। उसने राधव को एक मैसेज भेजा
Best friend पर भरोसा नहीं है
Special Friend की जरूरत नहीं है
Family Friend बनाना चाहते नहीं है
इसलिये...........
क्या तुम मेरे Close friend बनोगे?
राधव ने जब यह मैसेज देखा तो वो खुश हो गया। चाहत की दोस्ती से ज्यादा वो इसबात से खुश था की अब चाहत पुराने सारे दर्द से बहार आ जायेगी और खुश रहेगी। फिर उसने खुश होके एक इमोजी 😇 भेजकर yes बोला।
दोनों अपने इस नये रिश्ते से बहोत खुश थे। राधव को एक अच्छी दोस्त मिली और चाहत को एक वफादार दोस्त मिल गया।
चाहत को लगा, अब आगे सब ठीक होगा। तभी उसको किसी और से पता चला की! राधव का रिश्ता पक्का हो गया।
कहते है न किस्मत के आगे किसीकी नहीं चलती है....
चाहत के सामने पुरानी बातें तस्वीर बनकर सामने आई। उसे फिर जैन की दोस्ती और हीर की गलतफेमि याद आई। जिस डर से वो आजाद होना चाहती थी, वो डर फिर नये चहरो के साथ सामने आया। किस्मत ने उसे फिर वही लाके खड़ा कर दिया जहाँ से वो आगे बढ़ना चाहती थी।
उदास मन और उलझनों मे फसी वो खुदसे कहने लगी। अभी अभी तो एक नयी सुरुवात की और फिर पुरानी बातो से रूबरू हो गये हम। "वो फिर डर गई, और खुदसे सवाल करने लगी, अगर राधव ने भी प्यार के लिये हमारी दोस्ती तोड़ दी तो? मेरा भरोसा फिर टूट जायेगा" दिल और दिमाग मे बस यही डर सत्ताने लगा।
चाहत में फिर ऐसा कुछ सहने की हिम्मत नहीं थी। इसलिये उसने राधव से बात करना कम कर दिया। राधव चाहत का ये बर्ताव समझ गया। उसने चाहत से बात करने की कोशिस की, चाहत ने बिना कुछ सोचे अपने मन की सारी बाता राधव को बता दी। जवाब में राधव ने सिर्फ इतना बोला की सारे लोग एक जैसे नही होते है। मगर चाहत के लिये ये जवाब काफी नहीं था। उसे राधव पर भरोसा था लेकिन उसका डर राधव के भरोसे से कहीं ज्यादा बड़ा था।
सालों के चाहत को राधव पर भरोसा हुआ उसे अपना दोस्त कहा, अब राधव इस भरोसे को कैसे निभायेगा। कैसे वो चाहत को अपनी दोस्ती टूटने के डर से आजाद करेगा।
जल्द ही बतायेगे।।
कहानी को रेटिंग जरूर दीजियेगा।।
_Miss Chhotti