द कश्मीर फाइल्स रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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द कश्मीर फाइल्स रिव्यू

फिल्म का रिव्यू लिखते समय रोंगटे खड़े हो जाते हैं तो सोचिए देखते समय मन मस्तिष्क किन वेदनाओं से परिचित हुआ होगा जो वेदनाएं कश्मीर के पंडितों ने सहन की होंगी। इस फिल्म को कमज़ोर मन वाले न देखें। कठोर हृदय वाले भी इस फिल्म को महीनों तक भुला नहीं पाते।

द कश्मीर फाइल्स फिल्म नहीं उन हजारों कश्मीरी पंडितों की अतिशय वेदनाओँ की पुकार है जिन्हें इतिहास के पन्नों ने बहुत बेरहमी से खामोश करना चाहा पर आखिर ये सच्चाई आज की पीढ़ी के सामने इस फिल्म के माध्य से आनी थी और आ गई। ये सच देश से क्यों छुपाया गया, उस सरकार की क्या मजबूरी रही होगी या फिर क्या एजेंडा रहा होगा उसका कुछ अंदाजा फिल्म देखने से आ जाता है।

कहानी इस तरह है। दर्शन कुमार मतलब कृष्णा पंडित नाम का नवयुवक बहुत सालों बाद अपने दादा की अस्थियां लेकर कश्मीर आता है। उसके दादा की अंतिम इच्छा थी की उसकी अस्थियां उसके पुराने घर कश्मीर में बिखेर दी जाएं।लड़के के साथ जुड़ते हैं उसके दादा के करीबी दोस्त जो कभी उसके दादा के साथ कश्मीर में ही रहते थे। कृष्णा पंडित को जिस कश्मीर के बारे में पता है वह कश्मीर जबरदस्ती से फौजी ताकत के बिना पर भारत से जुड़ा हुआ है और कश्मीर के लोग उसे आजाद करवाना चाहते हैं। उसके दादा का कश्मीर था जिसे जबरदस्ती मुसलमानों ने हिंदुओ से छीना गया, कश्मीरी पंडितों पर जुल्म किए गए ताकि वे कश्मीर छोड़ कर चले जाएं।

एक सीन में एक छोटे बच्चे पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि उसने भारतीय क्रिकेटर का नाम लिया। 1990 में एक नारा आतंकियों को दिया गया जो हर मस्जिद से पुकारा गया वो था रालिव, चालिव या गालिव मतलब अपना धरम बदलो, भागो या मर जाओ. ये बार बार कश्मीर में हिंदुओं को डराने के लिए बोला जाता था। एक सीन में तो हिंदू औरतों से अनाज छीना जाता है और कहा जाता है तुम्हें जीने का कोई हक नहीं।

पुष्कर नाथ मतलब अनुपम खैर कश्मीरी पंडित था जिसके पूरे परिवार को पंडित होने की सजा भुगतनी पड़ी। फिल्म के कुछ दृश्य कमज़ोर हृदय वालों को बड़ी तकलीफ दे सकते हैं। पुष्कर नाथ का बेटा कश्मीर वादियों में शांति चाहता था। उसको ढूंढने आतंकी उसके घर तक आए। वह मिला नहीं तो बाहर चले गए तब उन्हीं के पुराने पड़ोसी ने आतंकियों को इशारा किया की वह घर पर है। आतंकियों ने उसे गोलियों से भून दिया और उसके खून से ही गीला हुआ घर का अनाज उसकी पत्नी को खिला दिया। यह था वह क्रूर सीन जो दिल दहला देता है।

पुष्कर नाथ के दोस्त उसकी मदद नहीं कर पाते और ना ही कोई राजनेता उसकी गुहार सुनता है। कश्मीर में पाकिस्तान की करंसी चल रही थी और भारत के झंडे की जगह पाकिस्तान का झंडा लगाया जा रहा था। रिफ्यूजी कैंप में जाकर हिंदू पंडितों को मिलिट्री के बेस में जाकर लोगों को बेरहमी से मारा जा रहा था, बच्चों और औरतों को भी नहीं बक्शा जा रहा था।

कृष्णा पंडित इस परिवार के आखरी सदस्य थे और उसने ये सब नहीं देखा था क्योंकि कृष्ण बहुत छोटा था जब पुष्कर नाथ उसे कश्मीर से अपने साथ दिल्ली लेके आए थे। कृष्णा दिल्ली में पढ़ते हुए उस समूह में जुड़ा था जिनका मकसद कश्मीर को आजादी दिलाना था। कृष्णा जब कश्मीर पहुंचा और अपने दादा की कहानी उनके दोस्तों से सुनी तो उसका दृष्टिकोण कश्मीर के प्रति बदला।

क्यों उस समय सरकारें कुछ नही कर पाईं या फिर उन्हे कुछ करना नहीं था वह तो इतिहास में दर्ज नहीं हुआ और ना ही ऐसा घिनौना इतिहास किसीको दिखाया या पढ़ाया गया जिसके मूल में अन गिनक हत्याएं और बे इंतीहा जुल्म शामिल था।

वर्तमान युवा को कैसे तोड़ मरोड़ कर इतिहास पढ़ाया गया है वह भी इस फिल्म के माध्यम से सामने लाया गया है। डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने इस दस्तावेज को बड़ी ईमानदारी से देशवासियों के सामने रखा है। इसपर बहुत विवाद हो चुके हैं और आगे भी होंगे पर उम्मीद करते हैं इस प्रकार का इतिहास फिर कभी किसी प्रदेश में दोहराया न जाए।

पूरे देश में धूम मचाने के बाद फिल्म zee 5 ott पर उपलब्ध है।

– महेंद्र शर्मा 29.06.2023