शंकर, जब से शहर आया था, बहुत बदल गया था, छोटे से गांव से आया एक सीधा सादा युवक शंकर, वहां के सम्मानीय गिरिजा पंडित जी की पहली औलाद, बड़े सपनों से पाल पास के शहर पढ़ने भेजा था उन्होंने, पर अब उसे कोई देखे तो पहचान भी न सके।
उसकी वेशभूषा ही नहीं बदली थी केवल, रंगढंग, बोलचाल, यहां तक की उसने अपना नाम भी बदल डाला था, लोग उसे अब शेंकी के नाम से जानते थे।
कॉलेज के कुछ हुड़दंगई लड़कों के ग्रुप का नेता था वो, कहीं किसी को पीटना हो, छेड़छाड़ करनी हो, सबसे आगे रहता।लड़कियों के आगे इतना भोला बन जाता कि वो उसके जाल में फंस ही जातीं।
अभी, उनके बॉयज होस्टल के सामने, गर्ल्स हॉस्टल में कोई लड़की आई थी, पिया नाम था उसका।उसके दोस्तों ने शेंकी को चुनौती दे रखी थी -इसे पटा के दिखा तो जानें...
पहले पहल शेंकी ने ध्यान न दिया, फिर एक दिन उसने पिया की फ़ोटो देखी, कितनी खूबसूरत लड़की थी, गोरा दूधिया रंग, कमर तक लहराते रेशमी सिल्की बाल, बड़े बड़े कजरारे नैन, वो अपलक उसे देखता ही रह गया।अब तो उसके मन मे भी इच्छा जगी कि इस लड़की से तो दोस्ती करनी ही पड़ेगी, जिसे देखते ही पहली नज़र में उससे प्यार हो गया था उसे।
शेंकी, सुबह शाम गर्ल्स हॉस्टल के चक्कर लगाता पर उसे साक्षात कभी न देख पाया, फिर किसी दोस्त ने बताया कि वो सामने वाले प्रियदर्शिनी पार्क में सुबह शाम जॉगिंग के लिए जाती है।
शेंकी को उससे मिलने की बहुत बेताबी थी, पहुंच गया सुबह वहां, जैसे तस्वीर में थी, उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत थी वो, शेंकी उसके आसपास मंडराता रहा पर उसने आंख उठा के भी उसे न देखा।बहुत परेशान हो उठा था वो, ये कैसी लड़की है, शायद पहली है जो उसके जाल में फंसने से बच रही थी, इसने तो आंख उठा के भी उसे नहीं देखा, ऐसे कैसे, शेंकी के अहम को बहुत चोट पहुंची इस बात से।
वो चिड़चिड़ाने लगा था अब, बात बात में खूंखार हो उठता, चाह के भी पिया की बेरुखी उसे सहन न होती।जितनी कोशिश करता उसे भुलाने की, वो और ज्यादा दिमाग में आती।
एक दिन हल्का शाम का धुंधलका छाने लगा था और वो पार्क में घूम रहा था कि पीछे से किसी आवाज़ ने उसके बढ़ते कदम रोक दिए...
एक सुरीली, मीठी सी आवाज़ उसे पुकार रही थी, हैलो, शेंकी...
वो पीछे मुड़के देखने ही वाला था कि आवाज़ ने उसे रोक दिया-पीछे मुड़ के मत देखना कभी भी...मैं वही हूँ जिसको बहुत दिनों से तुम पाना चाह रहे थे।
बेसाख्ता वो बोला-पिया हो तुम??
वो सुरीली आवाज में हंसी-क्या बात है, दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी...लेकिन ध्यान रखना, कभी मुझे पीछे मुड़ के न देखना।
तो आप, मेरे बराबर आ जाइए न, शेंकी ने अनुनय की।
नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, वो बोली।
क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ?वो दबे स्वर में बोला।
इतना बोलने वाले मुझे पसन्द नहीं, पीछे से आवाज का सुरीलापन कम होता जा रहा था।
आ हान, नहीं, पीछे मना किया न , बार बार चेतावनी नहीं दूंगी, अचानक शेंकी को कोई मजबूत हाथ अपनी गर्दन पर महसूस हुए...
छोड़े, वो गिड़गिड़ा उठा..हाथों की पकड़ धीमी हो गई।शेंकी बहुत डर गया था, गहरी गहरी सांस लेता वो आगे बढ़ने लगा।
थोड़ी दूर जाने पर उसे लगा कि अब उसके साथ शायद कोई नहीं था लेकिन पीछे देखने को मना था इसलिए वो सीधा कमरे पर जा कर बिस्तर पर औंधा गिर गया।
शेंकी बहुत डर गया था उस दिन, कुछ दिनों वो पार्क नहीं गया, मन में अकुलाहट थी कि ये पिया ही थी या कोई और थी।हिम्मत बटोर, आज फिर वहीं चल दिया।पार्क में आज पिया दिखाई नहीं दी थी, वो निराश भी था और रिलैक्स भी...चलो जान छुटी।
अभी सोच ही रहा था, कि पीछे से चिरपरिचित आवाज आई-आज बहुत दिन बाद आये, तबियत ठीक है तुम्हारी?
शाबाश..पीछे नहीं देखना, समझदार हो गए हो, वो बोली।
बीमार था, शेंकी कांपती आवाज में बोला।
अरे..डरो मत, मैं इतनी भी बुरी नहीं, चलो, तुम्हे अपनी शक्ल दिखाती हूँ आज, अपनी नाक की सीध में चलते रहो, जब मैं कहूंगी तब रुक जाना बस।
शेंकी यंत्रवत चलता रहा, सामने एक झील थी, वो आगे, आवाज़ पीछे, थोड़ी देर में झील के पानी मे एक छवि उभरी, एक सुंदर लड़की की..वो पिया जैसी ही दिखती थी।
शेंकी गौर से उसे देखता रहा, अचानक उसकी निगाह उसके पैरों तक पहुंची और वो चक्कर खा के गिरने को हुआ, उस लड़की के उल्टे पैर थे...
तो क्या, ये लड़की नहीं , चुड़ैल है कोई?है भगवान ये मैं किस के चक्कर मे पड़ गया, शेंकी पत्ते की तरह सिहर उठा।
क्या सोच रहे हो शेंकी, वो हंसते हुए बोली।
कुछ..नही जी, वो हकलाया, अब लौट चलें..
अरे, इतनी जल्दी, अभी तो मिले ही हैं, शक्ल अच्छी नही लगी क्या मेरी?वो बोली।
नहीं नहीं..शेंकी ने कहा तो वो ठहाका लगा के हँसने लगी।
शेंकी, अब बुरी तरह उसके जाल में फंस चुका था, उसे समझ न आता कि क्या करे, बीमार, डरा हुआ रहने लगा हर वक्त, उसके दोस्त परेशान कि इसे क्या हो रहा है आजकल।