ठाकुर का राज.. Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ठाकुर का राज..

आज नलिनी बहुत खुश थी,वो सालों बाद अपनी नानी के घर आई थी,अब उसकी नानी तो जिन्दा नहीं थी लेकिन उसकी मामी और मामा अब भी थे,नलिनी मुम्बई के एक बड़े से आँफिस में काम करती है,काम कर करके वो थक चुकी थी,इसलिए वातावरण बदलने के उद्देश्य से वो अपनी नानी के गाँव आ पहुँची थी,उसने आगरा में रह रहे अपने मम्मी-पापा से भी नानी के गाँव आ जाने को कहा तो उसकी मम्मी बोलीं...
"हम दोनों अभी कुछ दिनों पहले ही वहाँ से होकर आए हैं"
इसलिए नलिनी अकेली ही वहाँ चली आई,नलिनी वहाँ के रेलवें स्टेशन पर उतरी जो कि गाँव से पन्द्रह किलोमीटर दूर था,इसलिए उसके मामा ठाकुर इन्द्रजीत सिंह उसे अपनी पुरानी कार से लेने आए थे,पहले नलिनी के नाना-नानी बहुत बड़ी हवेली में रहा करते थे लेकिन फिर किसी कारणवश उन्होनें वो हवेली छोड़ दी और उस हवेली से काफी दूर उनका बहुत बड़ा सा पुश्तैनी मकान था और वें उसी मकान में रहने लगें,उस हवेली को छोड़ने का कारण क्या था ये किसी को भी नहीं पता था,नलिनी के नाना बहुत बड़े जमींदार थे और उनका नाम ठाकुर रामायण सिंह था,कहते हैं कि उस हवेली में जिसका नाम मोतीमहल था उसमें कोई ऐसा राज मौजूद था जिसे कभी भी जगजाहिर किए बिना उसे छोड़ दिया गया...
जब रास्ते में नलिनी अपने मामा इन्द्रजीत के साथ कार में आ रही थी तो उसने वो हवेली देखी और उसने अपने मामा से पूछा....
"मामाजी!नाना जी ने ये हवेली क्यों छोड़ दी थी?"
"तुम्हारे जानने की बात नहीं है",इन्द्रजीत बोलें...
"आप मेरे बचपन में भी यही बात कहा करते थे और अब भी वही बात कह रहे हैं,अब तो मैं बड़ी हो गई हूँ,अब तो कुछ बता दीजिए",नलिनी जिद करते हुए बोली...
"कहा ना!तुम्हारे जानने की बात नहीं है",इन्द्रजीत ने दोबारा वही वाक्य कहकर बात टाल दी...
और इधर नलिनी का मुँह बन गया,लेकिन फिर नलिनी ने कुछ भी जानने की कोशिश ना की और चुपचाप सफर करती रही थी,दोनों घर पहुँचे तो मामी कौशल्या ने नलिनी का जोरदार स्वागत किया जिससे नलिनी इन्द्रजीत की बातों को भूल गई लेकिन जब वो रात को अपने बिस्तर पर पहुँची तो उसे फिर उस हवेली का ध्यान आ गया और उसके मन में बहुत से सवाल उठने लगे,जिन सवालों का उत्तर देने वाला कोई ना था और फिर यही सब सोचते सोचते वो कब सो गई उसे पता ही नहीं चला...
एकाएक रात को झटके से नलिनी की आँखें खुली और उसने अपने सामने एक विचित्र से इन्सान को देखा,जिसके बड़े बड़े कान थे,लाल आँखें,हाथों के नाखून लम्बे और दाँत भी भेड़िए की तरह नुकीले थे,हल्की रौशनी में उसकी लाल लाल आँखें कंचों की तरह चमक रहीं थीं,उसकी एक पूँछ भी थी,नलिनी ने उसे देखा तो चीख पड़ी,उसकी चीख सुनकर पास के कमरें से उठकर उसकी मामी कौशल्या उसके पास आ पहुँची और उन्होंने देखा कि नलिनी बिस्तर पर ही आँखें बंद करे लेटी है और जोर जोर से चीख रही है,उसकी ऐसी हालत देखकर कौशल्या उसे जगाते हुए बोली....
"नलिनी....नलिनी बेटा!क्या हुआ?"
और फिर नलिनी ने झट से अपनी आँखें खोलीं और कौशल्या से बोली...
"मामी!यहाँ कमरें में कोई था"
"तूने कोई डरावना सपना देखा होगा",कौशल्या बोली...
"मामी!वो बिल्कुल सच लग रहा था",नलिनी बोली...
"ऐसा कैसे हो सकता है,मैं जब यहाँ आई तो तू तो आँखें बंद करे चिल्ला रही थी",कौशल्या बोली...
"तो फिर सपना ही होगा लेकिन मामी ऐसा लग रहा था कि वो सच में मेरे सामने था,वो बहुत ही घिनौना था,उसकी लाल आँखें,भेड़िए जैसे दाँत,लम्बे नाखून और उसकी पूँछ भी थी"नलिनी बोली...
जब कौशल्या ने ये सब सुना तो उसके होश उड़ गए और उसके चेहरे का रंग उतर गया,लेकिन उसने नलिनी से कहा कुछ नहीं और केवल इतना ही बोली कि.....
"अगर तुम्हें डर लग रहा है तो चलो तुम मेरे कमरें में लेट जाओ,तुम्हारे मामा जी बैठक में सो जाऐगें"
फिर नलिनी कौशल्या के संग उसके कमरें में सोने चली गई,सुबह हुई तो कौशल्या ने रात वाली सारी बात इन्द्रजीत को बताई तो वो भी ये सब सुनकर काफी परेशान हो उठा लेकिन बोला कुछ नहीं,लेकिन फिर रसोई में दोनों पति पत्नी के बीच कुछ खुसर पुसर होती रही,जो कि नलिनी ने भी दूर से सुनी लेकिन उसे समझ कुछ नहीं आया,अब नलिनी को वहाँ रहते दो दिन हो चुके थे और आज की रात अमावस की रात थी इसलिए कौशल्या ने नलिनी को सख्त हिदायत दी कि वो शाम से ही घर के भीतर रहे,भूल से आँगन में भी ना जाएंँ और उसे आज की रात आँगन वाले स्नानघर को इस्तेमाल करने की कोई आवश्यकता नहीं है,वो आज की रात मेहमानों वाले कमरें में रहेगी क्योंकि वहाँ अटैच बाथरूम है,ये सब हिदायतें सुनकर नलिनी हैरान थी और उसने इतनी हिदायतों की वजह कौशल्या से पूछी भी लेकिन कौशल्या ने कोई जवाब ना दिया....
नलिनी ने वही किया जो उससे कहा गया था,वो भी रात भर मेहमानों वाले कमरे से बाहर ना निकली और सुबह होते ही इन्द्रजीत और कौशल्या हवेली जाने को तैयार खड़े थे,नलिनी ने कहा कि ...
"मैं भी चलूँ वहाँ"
तो इन्द्रजीत ने नलिनी को साथ ले जाने के लिए इनकार कर दिया और नलिनी मायूस हो उठी,लेकिन नलिनी भी काफी जिद्दी थी वो कहाँ मानने वाली थी,उन दोनों के जाते ही उसने एक रिक्शा किया और चल पड़ी हवेली की ओर,वो भी ये जानना चाहती थी कि आखिर बचपन से अब तक हो गया उसे मामा जी हवेली में जाने से क्यों मना करते हैं?वहाँ ऐसा कौन सा राज छुपा है...
उसने हवेली के बाहर रिक्शा रुकवाया और चल पड़ी हवेली के भीतर,इन्द्रजीत और कौशल्या हवेली के भीतर थे इसलिए हवेली के दरवाजे अभी भी खुले हुए थे,वो भीतर पहुँची तो देखती है कि कौशल्या और इन्द्रजीत किसी पूजा की तैयारी कर रहे थे और उन्होंने जैसे ही नलिनी को वहाँ देखा तो इन्द्रजीत गुस्से से चीख उठा और नलिनी से बोला....
"मना किया था ना यहाँ आने को,फिर भी तुम यहाँ चली आई"
"आप लोग मुझे यहाँ आने से क्यों मना करते हैं"?,नलिनी ने पूछा...
"क्योंकि हम दोनों नहीं चाहते कि जो राज इस हवेली में सालों से दफन है वो तुम्हें पता चले",कौशल्या बोली...
"ऐसा कौन सा राज है कि जो मुझे पता चल गया तो अनर्थ हो जाएगा"?,नलिनी ने पूछा...
"सुनना चाहती हो तो सुनो"और इतना कहकर इन्द्रजीत ने कहानी सुनाना शुरु किया....
बहुत समय पहले की बात है,एक लड़की थी जिसका नाम वत्सला था,वो बहुत ही खूबसूरत थी,वो एक रात अपनी सहेली के ब्याह में गई थी और वहाँ उसकी मुलाकात बरात में आए किसी लड़के से हो गई और उसी रात से दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगेँ,लेकिन वो लड़का बराती भी नहीं था,ना जाने कौन था वो?कुछ दिनों बाद उन दोनों की मुलाकातें भी बढ़ने लगी, वत्सला उस लड़के से मिलने जाने लगी तो उसके घर लौटने पर उसकी माँ पूछती कि कहाँ गई थी ?तो वो कहती कि किसी सहेली के घर गई थी,जब वत्सला का उस लड़के से मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा तो माँ को संदेह हुआ और उसने वत्सला की सहेलियों से पूछताछ की तो पता चला कि वो किसी सहेली के घर नहीं जाती ,वो तो किसी और से मिलने जाती है इसलिए एक रोज वत्सला की माँ ने उसका पीछा किया,वत्सला किसी पेड़ के नीचे रूकी और किसी से हँस हँसकर बात कर ने लगी लेकिन कमाल की बात ये थी कि वहाँ कोई नहीं था,अगर वहाँ कोई नहीं था तो वत्सला किससे बात कर रही थी और ये बात वत्सला की माँ को हैरान गई और उसने ये बात अपने पति से कही और फिर दूसरी बार माँ-पिता दोनों ने वत्सला का पीछा किया और इस बार भी वत्सला ने वही किया,लेकिन वो जिससे बात कर रही थी,वो दिख ही नहीं रहा था,अब वत्सला के माँ बाप को अपनी बेटी की चिन्ता हुई और उन्होंने किसी तान्त्रिक को बुलवाया,तान्त्रिक ने जब देखा तो उसने अपने शक्तियों द्वारा उसके बारें में पता किया तो पता चला कि वो तो एक नरपिशाच है और कोई भी रूप बदल सकता है,उसे दिन रात से भी कोई अन्तर नहीं पड़ता,इसलिए तो वो कभी भी वत्सला से मिलने आ जाता है,
और ये बात अब वत्सला के पिता ने अपने मित्र से कही तो उन्होंने कहा कि वें वत्सला को लेकर मेरी हवेली आ जाएं,मैं एक अघोरी बाबा को जानता हूँ जो वत्सला का पीछा उस पिशाच से छुड़वा सकते हैं,वत्सला के पिता वत्सला को धोखे से अपने मित्र की हवेली ले आए और वो नरपिशाच भी वहाँ मनुष्य रूप में आ पहुँचा लेकिन अघोरी बाबा ने उसे पहचान लिया और उसे अपनी शक्तियों द्वारा एक काँच के मर्तबान में कैद कर दिया और उस मर्तबान को उसी हवेली के तहखाने में रखवा दिया गया,वत्सला उस नरपिशाच से बहुत प्रेम करने लगी थी और अपनी शादी कहीं और तय होती देख उसने आत्महत्या कर ली, मरने के बाद वत्सला की आत्मा उस हवेली में नरपिशाच से मिलने आने लगी,इसलिए फिर ठाकुर साहब उस हवेली को छोड़कर अपने पुश्तैनी मकान में रहने लगे,बाद में वत्सला की आत्मा ने उस मर्तबान को तोड़ दिया जिससे वो नरपिशाच बाहर आ गया,नरपिशाच के मर्तबान से बाहर आने पर अब वत्सला की ताकत दुगुनी हो चुकी थी,इसलिए वत्सला की आत्मा ने ठाकुर साहब को धमकी दी थी कि तुम्हारे खानदान की कोई भी बेटी अगर इस हवेली मेँ आई तो जिन्दा बचकर नहीं जाएगी और वो ठाकुर साहब कोई और नहीं तुम्हारे नाना रामायण सिंह थे,इसलिए हम तुम्हें इस हवेली में आने से मना करते थे,यहाँ हम पूजा करवाने आएं थे ताकि वो नरपिशाच तुम्हें नुकसान ना पहुँचा सके,क्योंकि जो सपना तुमने देखा था वो हकीकत थी,वो नरपिशाच वैसा ही दिखता है जैसा तुमने कहा था.....
और ये सब सुनकर नलिनी हैरान थी,उसे इन्द्रजीत की बातों पर भरोसा नहीं हो रहा था और वो उस नरपिशाच और वत्सला को अपनी आँखों से देखना चाहती थी और तभी अचानक ना जाने क्या हुआ नलिनी को कोई हवा में उड़ाकर ले गया,कौशल्या और इन्द्रजीत ने देखा तो वो नरपिशाच था और वो नलिनी को मारने आया था,उसके पास में प्रेतनी बनी वत्सला भी हवा में थी,ये सब देखकर तब कौशल्या ने नरपिशाच और वत्सला से विनती करते हुए कहा...
"वत्सला!इस बच्ची को छोड़ दो,आखिर इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?,तुम्हारे गुनाहगार तो ठाकुर साहब और तुम्हारे पिता जी थे और वें अब इस दुनिया से जा चुके हैं,ये भी तुम्हारी तरह किसी से प्रेम करती होगी और उसके साथ अपना संसार बसाने का सपना देखती होगी,कृपया इस का सपना मत तोड़ो,मैं समझ सकती हो तुम्हें अपने प्रेमी से बिछड़कर कैसा लगा होगा? लेकिन जो गलती इस बच्ची ने की ही नहीं तो उसकी सजा इसे मत दो,वो तो मासूम है,उसे तो कुछ पता भी नहीं है"
और फिर कौशल्या की बात सुनकर वत्सला का मन पसीज गया और उसने अपने प्रेमी से नलिनी को छोड़ने को कहा और इन्द्रजीत और कौशल्या से बोली....
"आज के बाद अब कोई भी इस हवेली में प्रवेश ना करे,नहीं तो उसे जान से हाथ धोने पड़ेगे"
और फिर कौशल्या और इन्द्रजीत अपने संग नलिनी को लेकिन घर चले आएं और फिर नलिनी ने दोबारा उस हवेली में जाने की बात नहीं कही क्योंकि वो अब ठाकुर का राज जान चुकी थी.....

ये एक काल्पनिक कहानी है ,इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है,ये केवल मनोरंजन हेतु लिखी गई है....

समाप्त.....
सरोज वर्मा....