Kahani Saraswati aur Sanskar ki - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

कहानी सरस्वती और संस्कार की - 3

पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि संस्कार ने शिवम को फोन किया और सरस्वती को अपने साथ लेकर आने के लिए कहा। सभी स्टूडेंट्स ने जब संस्कार को देखा तो उनमें खुशी की लहर दौड़ गई। संस्कार ने सभी के सामने सरस्वती के बारे में बताना शुरू किया। अब आगे…

संस्कार पहले मुस्कुराया और फिर उसकी बात के जवाब में कहा, "जी, बिलकुल। मेरी अभी शादी नहीं हुई है क्योंकि मुझे सरस्वती से ही बहुत ज्यादा प्यार मिला है। और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि सरस्वती मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है बल्कि वो तो…"

संस्कार कुछ पलों के लिए शांत हुआ और फिर मुस्कुराते हुए आगे बोला, "ये मैं बताऊंगा नहीं बल्कि आप सभी को दिखाऊंगा।" कहकर संस्कार स्टेज के पीछे गया और वहां से एक औरत(उम्र– 42 साल) और एक आदमी(उम्र– 44 साल) के साथ फिर से स्टेज पर आया।

संस्कार के दाएं ओर खड़ी लाल कलर की सिंपल साड़ी पहने, आंखों में काला काजल, होठों पर लाल लिपस्टिक लगाए और सिर पर काले बालों का जूड़ा बनाए वो बहुत ही सुंदर लग रही थीं। साथ ही संस्कार के बाएं ओर खड़े ब्लैक कलर का टू पीस सूट पहने, बाल सलीके से सेट किए और ब्लैक कलर के ही शूज पहने वो भी बहुत ज्यादा हैंडसम लग रहे थे। दोनों को देखकर उनकी सही उम्र का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था।

संस्कार ने उन दोनों का हाथ पकड़कर सामने देखते हुए सबसे कहा, "ये दोनों मेरे पेरेंट्स हैं और मेरे पेरेंट्स ही हैं ‘सरस्वती’।"

संस्कार की इस बात पर चौंककर सभी एक दूसरे को देखने लगे।

संस्कार ने मुस्कुराकर अपने बाएं ओर खड़े शख्स की और हाथ करते हुए कहा, "ये हैं मेरे पिता मिस्टर सरस शर्मा।"

फिर अपने दाएं ओर खड़ी महिला की तरफ हाथ करते हुए कहा, "ये मेरी मां मिसेज रेवती शर्मा।"

फिर सबकी तरफ देखते हुए कहा, "सरस रेवती, मतलब सरस्वती।"

ये सुनकर भीड़ में बैठे शिवम ने सीटी बजाई तो सभी लोगों ने तालियां बजा दीं और संस्कार अपने माता–पिता की तरफ मुस्कुराकर देखने लगा।

सरस शर्मा, संस्कार के पिता। बहुत ही सीधे व्यक्तित्व वाले शख्स, हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। अपने हर काम में ईमानदारी का साथ कभी नहीं छोड़ते। संस्कार के आईएएस ऑफिसर बनने से पहले ये एक पब्लिकेशन में किया करते थे और वहां भी अपने स्वभाव से इन्होंने सबको अपना बना लिया था।

रेवती शर्मा, संस्कार की मां। इनका स्वभाव थोड़ा चंचल है, ये भी कह सकते हैं कि अपने पति के बिलकुल विपरीत। लेकिन चंचल स्वभाव के साथ–साथ इनमे अपनेपन का भी भाव है जिससे ये हर इंसान से अपनेपन का रिश्ता जोड़ लेती हैं।

फिर संस्कार ने उन्हें नीचे उनकी कुर्सियों पर बैठने के लिए कहा और खुद फिर से माइक पकड़कर खड़ा हो गया।

संस्कार ने माइक में कहा, "मेरी लाइफ की सबसे बड़ी खुशी हैं मेरे पेरेंट्स। उन्होंने बचपन से ही मेरी हर ख्वाहिश को पूरा किया है इसलिए नहीं क्योंकि वो मुझे बिगाड़ना चाहते थे बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें मुझपर खुद से भी ज्यादा भरोसा था।

संस्कार ने आगे कहा, "आजकल की जेनरेशन की हमेशा ये प्रोब्लम रहती है कि उनके पास कोई बात करने वाला नहीं है, वो बहुत अकेले हैं और इसी रीजन की वजह से एंट्री होती है गर्लफ्रेंड्स और ब्वॉयफ्रेंड की। लेकिन कोई भी इंसान उन लोगों से बात करने की कोशिश नहीं करता जो उम्र के ढलने के साथ–साथ और अकेले होते जाते हैं, हमारे पैरेंट्स। एक बार उनसे बात करने की कोशिश तो करो क्योंकि हमारी तकलीफ को जितने अच्छे से वो समझ सकते हैं और कोई नहीं समझ सकता।"

"एक्चुअली, मैं भी अपने पेरेंट्स की इंपॉर्टेंस को 10th स्टैंडर्ड से पहले नहीं समझता था। बुरा लगता था मुझे जब वो मुझे डांटते थे। पर जब मुझे 11th में घर से बाहर रहकर पढ़ना पड़ा तो मुझे रियलाइज हुआ कि मेरे पैरेंट्स की मेरी लाइफ में आखिर क्या इंपॉर्टेंस है!"

"वहां पर रहकर मुझे उनकी कही हर एक बात याद आने लगी और ये महसूस होने लगा कि वो जो भी कहते थे वो एकदम सही था और मेरी भलाई के लिए था। हमारी फाइनेंशियली कंडीशन इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए उनकी सारी आशाएं मुझी से थीं। तब मैने सोच लिया कि एक दिन अपने पेरेंट्स की आंखों में मुझे मेरे लिए गर्व देखना है, मुझे उनका वो सपना पूरा करना है कि दुनिया उन्हें मेरे नाम से जाने।"

अपनी आंखों में आंसुओं को लेकर संस्कार बोले जा रहा था और वहां बैठे सभी लोगों की आंखें भी गीली हो चुकी थीं।

संस्कार ने नम आंखों से आगे कहा, "वो बेचारे आखिर चाहते ही क्या हैं यही कि हम सक्सेसफुल हो जाएं और हमारा आगे का जीवन चैन से गुजरे। इसमें उनका तो खुद का कोई लालच भी नहीं है। सिर्फ वही दो ऐसे इंसान हैं जो हमारे जन्म से लेकर जिंदगी के हर एक पल में हमारी सलामती ही चाहते हैं तो क्या हमारा इतना भी फर्ज़ नहीं बनता कि हम उन्हे गर्व महसूस करने का एक मौका दें! इन्हीं सब बातों को सोचकर और अपने माता–पिता को अपना भगवान बनाकर मैं आज यहां तक पहुंच गया हूं।"

सरस जी और रेवती जी तो खुद को कंट्रोल ही नहीं कर पा रहे थे। उनकी आंखों में तो जैसे आंसुओं की बाढ़ आ गई थी लेकिन संस्कार को खुशी इस बात की थी कि वो आंसू दुख के नहीं बल्कि उसके लिए गर्व के थे।

संस्कार ने आगे कहा, "अपने इस संसार को ये संस्कार संगीत के रूप में कुछ देना चाहता है।"

संस्कार ने माइक को हाथ में पकड़कर सरस जी और रेवती जी को देखकर गाना शुरू किया,

"ये तो सच है कि भगवान है
है मगर फिर भी अनजान है,
धरती पे रूप मां–बाप का
उस विधाता की पहचान है।

ये तो सच है कि भगवान है
है मगर फिर भी अनजान है
धरती पे रूप मां–बाप का,
उस विधाता की पहचान है।

जन्मदाता हैं वो नाम जिनसे मिला
थामकर जिनकी उंगली है बचपन चला,
कांधे पर बैठके जिनके देखा जहां
ज्ञान जिनसे मिला क्या बुरा क्या भला

इतने उपकार हैं क्या कहें
ये बताना ना आसान है,
धरती पे रूप मां–बाप का
उस विधाता की पहचान है।

ये तो सच है कि भगवान..."

(Song– ये तो सच है की भगवान है, Film– हम साथ साथ हैं)

संस्कार अपना गाना पूरा कर पाता उससे पहले ही उसका गला रूंध गया। उधर सरस जी और रेवती जी की हिम्मत ने भी जवाब दे दिया था तो दोनों तेजी से स्टेज पर आए और संस्कार के गले लग गए।

संस्कार उनकी बाहों में फूट–फूट कर रोया क्योंकि उसे उनकी वो सारी कुर्बानियां याद आने लगीं जो उन्होंने उसके लिए दी थीं। जो सुकून संस्कार को आज उन दोनों की बाहों में मिल रहा था वो उसके लिए किसी जन्नत से कम नहीं था।

उन्हें देखकर सभी लोगों ने जोर से तालियां बजा दीं। तब जाकर संस्कार का ध्यान टूटा और वो उन दोनों से अलग हुआ।

अपने आंसुओं को पोंछते हुए हल्का सा मुस्कुराकर संस्कार ने कहा, "अरे, ये माहौल तो कुछ ज्यादा ही सीरियस हो गया। सॉरी! लेकिन क्या करूं इमोशंस कंट्रोल ही नहीं हुए।"

ये कहकर संस्कार सरस जी और रेवती जी के साथ नीचे उतरने लगा तभी सरस जी ने अपना हाथ छुड़ाते हुए संस्कार से इशारों में ही कहा, "तुम चलो, मैं अभी आता हूं।"

संस्कार को समझ नहीं आया कि आखिर सरस जी करना क्या चाहते हैं?

आखिर किस वजह से सरस जी स्टेज से नीचे नहीं आए? क्या वो कोई जरूरी बात बताना चाहते थे या कोई राज खोलना चाहते थे? जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।

कृपया समीक्षाएं देते रहिए।

–हेमंत शर्मा


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