कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 114 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 114

भाग 114

विवान, पूर्वी और अमन तीनों बारी बारी से पुरवा के पास देख भाल के लिए रहते थे। हल्की फुल्की बातें कर के पुरवा को तनाव मुक्त रखने की पूरी कोशिश करते थे। बीच बीच में वैरोनिका भी आती थी पुरवा से मिलने के लिए। वो जब भी आती पुरवा के पसंद का कुछ ना कुछ अपने हाथों से जरूर बना कर लाती थी। ज्यादा कुछ तो खाना मना था, पुरवा थोड़ा सा मन बदलने के लिए चख भर लेती थी।

कटास राज चलने की पूरी तैयारियां हो है। सुबह सात बजे वो सब निकल पड़े कटास राज के दर्शन के लिए। पुरवा के साथ वैन में पूर्वी और वैरोनिका थीं। अमन की कार में अमन,विवान और ड्राइवर थे।

दोनो गाडियां शेखपुरा, कोट सालवार, कोट मोमिन, फूलरवान होते हुए कल्लार खार, फिर चोवा सैदान शाह पहुंची। वहां पर गाड़ी रुकवा कर अमन ने पुरवा को बाहर दिखाया।

बहुत कुछ बदल गया था इतने सालों में। कई सीमेंट की फैक्ट्रियां लग गई थीं जो वहां के शुद्ध हवा को दूषित कर रही थी। पुरवा ने कुछ देर तक वहां के बदले माहौल को निहारा।

फिर दुबारा चलते वक्त उसने पूर्वी से कहा कि तकिए से टेक लगा कर उसे बिठा दे। वो बाहर देखना चाहती है। अब सब दिखाने बताने के लिए अमन पुरवा वाली वैन में ही बैठ गया।

रास्ते में नानी का बंगला भी पड़ा। अमन ने उसे दिखाया और बोला,

"पुरु..! वो देखो… नानी का घर। जहां हम रुके थे। अब वहां कोई नहीं है। नानी के जाने के बाद से बंद पड़ा हुआ है। पड़ोसियों को बचा कर बार्डर पार कराते हुए अब्बू भी दंगाइयों के शिकार हो गए थे। अम्मी ये गम ज्यादा दिन नहीं सह पाई। सीमा भाभी का व्यवहार अब्बू के जाते ही बदल गया था। वो अम्मी को बहुत ज्यादा परेशान भी करती थीं। चमन भाई जान खामोशी से सब देखते थे। एक तो अब्बू चले गए थे दूसरे परिवार से मिली उपेक्षा ने उन्हें तोड़ दिया। दो साल बाद वो भी चल बसी।"

फिर लंबी सांस ले कर अमन बोला,

"अम्मी का गुनहगार मैं भी कम नहीं हूं। मैने भी घर से और उनसे सारे रिश्ते खत्म कर लिए थे। कई खत वो लिखती तो एक घंटे के लिए भी बड़ी मुश्किल से जाता था। उनके लिए कोई उम्मीद भी तो नहीं बची थी। अब्बू कि ख्वाहिश थी की मैं यहां का कारोबार संभालूं। पर मेरी तो मंजिल कुछ और थी। चमन भाई हाल चाल लेते रहते हैं। वो क्या क्या संभालते..? इस लिए यहां का बिजनेस बंद हो गया।"

पुरवा ने फीकी सी मुस्कान के साथ अमन की ओर देखा और अपनी कलाई आगे कर के हाथों के कंगन को दिखाते हुए बोली,

"कुछ याद है..? ये कंगन..?"

अमन ने मुस्कुरा का उसे घुमा कर देखा और बोला,

"जो.. नानी ने तुम्हें दिए थे… शायद वही है ना…!"

पुरवा बोली,

"हां… वही है। महेश की मां ने भी एक जड़ाऊ कंगन दिया था मुझे। वो मुझे बहुत मानती थीं पर उन्हें हमेशा बस यही एक ही शिकायत मुझसे रही कि मैं ये कंगन क्यों हमेशा पहनती हूं। उनके दिए वाले क्यों नहीं पहनती। जब ज्यादा टोकती तो दो चार दिन पहन लेती, पर फिर यही पहन लेती।"

अमन बोला,

"मेरी निशानी जो थी। कैसे उतार देती तुम..!"

पुरवा बोली,

"मैने तो इतना संभाल कर रक्खा तुमसे जुड़ी याद को। और तुम….?"

अमन बोला,

"मेरी किताबों की रैक में आज भी कवर लगी सजी हुई है तुम्हारी दी हुई किताबें। जब भी मैं ज्यादा परेशान होता, दिल बेचैन होता था.. मैं जुदाई की शाम का गीत जरूर पढ़ता था। उसे पढ़ कर ऐसा महसूस होता कि तुम मेरे पास हो। किताब को छू कर तुम्हें छूने का एहसास होता था।"

पूर्वी और वैरोनिका चुप चाप बैठ उन दोनो की बातें सुन रही थी।

बड़ी देर से चुप बैठी पूर्वी बोली,

"मम्मी…! आपके साथ जो कुछ हुआ था शायद उस वक्त उसके खिलाफ जाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। पर हम तो नई पीढ़ी के है। अपना देश कहने को तो आजाद जो गया पर अपनी बेड़ियों से आज भी आजाद नही हो पाया है। आपको तो मेरी भावना को समझना चाहिए था, पापा को समझाना चाहिए था।"

पुरवा बोली,

"बेटा ..! तुम्हें क्या लगता है..! इस मामले में तुम्हारे पापा मेरी सुनते .! मैने कोशिश की थी, पवन का वास्ता भी दिया था कि आप उसके लिए तो दूसरे धर्म वाली को अपनाने पर राजी हो गए थे। पर वो बोले पवन बेटा है वो लड़की किसी भी बिरादरी की हो हमारे कुल खानदान की हो गई। फिर पंजाबी भी पहले हिंदू ही थे। पर ईसाई … ना.. ना.. मेरी बेटी डिसूजा और फर्नांडिस हो जाए ये मेरे जीते जी संभव नहीं है। फिर मैं क्या करती तुम बताओ..? मैं खामोश रही कि मुझ पर तुम्हे बढ़ावा देने का आरोप ना लगे

पूर्वी बोली,

"मम्मी..! क्या आपको अच्छा लगेगा कि अमन अंकल और आपकी तरह मैं और विवान भी अपनी जिन्दगी अलग अलग बिताए..? को कुछ आप दोनो ने झेला वही मैं और विवान भी झेलें…! मुझे पापा की इच्छा की परवाह नही है, अगर उनको मेरी खुशी की कोई परवाह नही है। तो मुझे भी उनकी इजाजत की जरूरत नहीं है। मां बाप की खुशी अपनी औलाद की खुशी में होती है, पर उनके लिए तो शायद औलाद सिर्फ बेटा ही है और उसी की खुशी भी मायने रखती है। अगर आप का आशीर्वाद मिल जाए तो मैं और विवान भी अपना नया जीवन शुरू कर सकते हैं।"

पुरवा बोली,

"मेरा आशीर्वाद तो तुम्हारे साथ है ही। जितना तुमने बेटा मेरे लिए किया उतना कोई भी नही कर सकता। तुमने हर सीमा को पार कर के मेरे लिए, मेरी खुशी के लिए किया है। अगर तुम इतना सब कुछ ना करती तो मैं हॉस्पिटल के उसी कमरे में अकेले दम तोड देती अतृप्त इच्छाओं के साथ।"

पूर्वी अपनी मां की बातें सुन कर उनके सीने से लगने के लिए आगे बड़ी। पर पुरवा ने उसे पूछे धकेल दिया। नाराज होते हुए बोली,

"तेरा दिमाग खराब है..! मेरे करीब मत आ। ये राज रोग किसी को नही छोड़ता। दूर रह मुझसे।