कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 112 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 112

भाग 112

अमन ने आहिस्ता से दरवाजा खोला जिससे पुरवा को कोई परेशानी नही हो। आज सत्ताइस साल बाद उसका पुरवा से सामना होगा। वो इतने लंबे अरसे बाद उसे देखेगा। दिल खुशी से पागल हुआ जा रहा था। पर ये खुशी धूमिल हो रही थी कि पुरवा की बीमारी से उसे निजात नही दिला पा रहा। पुरवा से मुलाकात का एक असंभव सपना पूरा हो रहा था, पर जिस हालत में पुरवा उसे दिख रही थी वो असहनीय था।

अमन धड़कते दिल से आया और बेड के पास आया और पास के स्टूल पर बैठ गया। पुरवा का पीठ उसकी ओर था। दीवाल की ओर मुंह किए वो शायद अपने पीछे मौजूद हर चीज से मुंह मोड़ कर, विरक्त हो कर उस दीवार अपने बीच में ही अपने जीवन के बाकी बचे समय की दुनिया ढूंढ कर उसे बिता लेना चाहती है। उसके पीछे क्या हो रहा है, उसे अब कोई लेना देना नही था।

अमन ने आहिस्ता से अपने हाथ को पुरवा की पीठ पर रक्खा।

खुद में ही गुम पुरवा चौंकी…! पूर्वी तो सुबह आने को बोल कर गई। नर्स तो इस तरह छुएगी नही..! फिर इस अनजान जगह में कौन है जो इस तरह उसे छू रहा है..! क्या महेश को वक्त मिल गया…? क्या वो वही शादी के बाद वाले महेश बन गए हैं..? आखिर उनको उसकी फिकर हो ही गई। उसने बिना पलटे हुए ही अपना हाथ उनके हाथों पर रख दिया।

और अपने पिछले दिनों में महेश द्वारा हुए शुष्क व्यवहार को याद कर आहत पुरवा का गला रूंध गया वो भरे कंठ से बोली,

"आ गए….? आपको तो मेरी बीमारी लग जायेगी..! इस लिए मुझसे दूरी बना ली थी। फिर वापस कैसे आ गए..? मैं ठीक तो नही हुई हूं। क्या मेरी बीमारी अब आपको नही होगी…? या मरने वाली हूं ये सोच कर आए हो…?"

अमन सब समझ गया। महेश के बदले व्यवहार से आहत पुरवा जीवन के प्रति निराश हो चुकी है। इसलिए दवा भी असर नहीं कर रही है।

उसने पुरवा को कंधे से घुमा कर उसका चेहरा अपनी ओर किया।

नाराज और मान से भरी पुरवा ने अपना चेहरा इस ओर तो कर लिया पर नाराजगी से आंखें बंद ही किए रही। आज इन्हें ऐसे माफ नही करूंगी..! जितना इन्होंने मुझे सताया है उतना बदला लूंगी तभी माफ़ करूंगी।

अमन ने भावना के वशीभूत हो कर पुरवा की दोनों बंद आंखों को बारी बारी से चूमा और बोला,

"पुरु…! मैं हूं अमन…। महेश नही हूं।"

पुरवा ने चौंक कर अपनी आंखे खोली।

देखा तो सच मुच महेश नही अमन है।

वो चौंक गई। आखिर अमन यहां कैसे आ गया..? ये पूर्वी उसे कहां ले कर आई है..? उसे कुछ समझ नही आ रहा था।

अमन को इतने लंबे समय बाद देख कर, अपने प्रति वही लगाव देख कर पुरवा खुद पर काबू नही रख सकी। उसने अमन को अपने अशक्त बाजुओं में जकड़ लिया और रोते हुए बोली,

"ओह..! अमन तुम…! मैने तो इस जीवन में तुम्हे देख मिल पाऊंगी इसकी आशा ही छोड़ दी थी। ये कौन सी जगह है..?"

अमन ने पुरवा को शांत करते हुए थपकी दी और बोला,

"सब बताता हूं पुरु…! पहले तुम शांत हो जाओ। रोना बंद करो।"

अमन ने उसे बेड पर आराम से लिटा दिया और फिर बताने लगा,

कैसे तुम विवान से मिलने के बाद खामोशी की चादर ओढ़ ली, उसकी वजह का पता लगाने के लिए पूर्वी ने विवान के डैडी से मिल कर ये जानना चाहा कि आखिर उसकी मम्मी उनके बारे में कैसे जानती है..? फिर विक्टर के बताने पर वैरोनिका आंटी से बात की। उनसे मेरे के बारे में पूछा। फिर मुझसे फोन से बात की। क्या मैं तुमसे मिलना चाहता हूं, ये पूछा। फिर ये जान कर कि जीवन के जिस मोड़ पर मैं तुमसे अलग हुआ था उससे बस एक कदम ही आगे बढ़ा हूं, बस डॉक्टर बन गया हूं। मेरी जिंदगी में तुम्हारे बाद कोई नही आया। मैं आज भी अकेला हूं, अपनी यादों के साथ।

पुरवा ये सच जान कर कि अमन ने शादी नही की। उदास स्वर में बोली,

"आखिर क्यों अमन…! तुम ने अपना घर क्यों नहीं बसाया..? क्यों इस तरह अकेले जिंदगी बिता रहे हो…? आखिर मैं भी तो वही महसूस करती थी जो तुम मेरे लिए लिए करते थे। फिर जब मैं आगे बढ़ गई.. घर बसा लिया.. तो तुम अकेले क्यों रहे…?"

पुरवा का हाथ अपने हाथों में ले कर उसकी उंगलियों से खेलते हुए बोला,

"अकेला कहा रहा..मैं..? तुम्हारे साथ बिताए पलों की यादें थी ना मेरे दिल में सुरक्षित। फिर वैरोनिका आंटी भी तो थीं। वो मेरा सहारा थीं, मैं उनका।"

अपने कांपते हुए दूसरे हाथ को पुरवा ने अमन के हाथों पर रख दिया।

दोनों ही आपस में गिले शिकवे, जो कुछ इस बीच उनके जीवन में खुशी और दुख के पल आपस में बांटते रहे।

अमन करीब दो घंटे बाद उठते हुए बोला,

"पुरु ..! अब तुम आराम करो। मैं चलता हूं।"

पुरवा ने अमन का हाथ पकड़ कर रोक लिया और बोली,

"मत जाओ अमन..मुझे अकेला छोड़ कर। पता नही वापस आओ तो फिर मेरी सांसे बंद ही मिलें।"

अमन बैठ वापस बैठ गया पर नाराजगी जाहिर करते हुए बोला,

अगर एक बार भी तुमने फिर से ऐसी बात की तो सच कह रहा हूं मुझसे बुरा फिर कोई नही होगा।

अमन बार बार पुरवा को ज्यादा बोलने से मना कर रहा था। पर पुरवा जैसे पुरानी वाली पुरवा बन गई थी। वैसी ही चंचलता, वैसा ही बातूनी पन।

बड़ी मिन्नत के बाद अमन ने पुरवा को सोने के लिए राजी किया। वो धीरे धीरे पुरवा के बालों में उंगलियां फेरता रहा और पुरवा सो गई।

उसके सोने के बाद अमन ने अपने जूनियर को मरीजों का खयाल रखने को कहा और खुद वापस अपने घर वापस आ कर सो गया।

सुबह नौ बजे वैरोनिका ने अमन को जगाया। वो बोली,

"अमन उठो बेटा…! नौ बज गए हैं। नाश्ता लग गया है। विवान और पूर्वी तुम्हारा इंतजार कर रहे है।"

अमन हड़बड़ा कर उठ गया और जल्दी से बाथरूम में भागा।

पुरवा अगर जाग गई होगी तो उसका इंतजार करती होगी। उसे जल्दी हॉस्पिटल पहुंचाना था।

इधर हॉस्पिटल में जब नर्स ने उसे दवा देने से पहले साफ सफाई के लिए जगाया तो रात की पूरी घटना उसके दिमाग में घूम गई।

पुरवा को अपनी सोच पर हंसी आई। क्या क्या सपना देख डाला..! अमन भला कैसे आ सकता है..! चलो कोई बात नही.. हकीकत में भले ना सही, कम से कम सपने में तो वो अमन से मिल ली। जो भी उसके दिल में था सब कुछ कह दिया।