अग्निजा - 154 - अंतिम भाग Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 154 - अंतिम भाग

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-154

इस इनर राउंड में क्या होगा, दर्शकों के बीच उत्सुकता थी। सोनल गोदरेज, अनिता वालचा, मिलिंद कसबेकर, यतीन कपूर और प्रकाश डिसूजा के प्रतिभागी आए और आपस में उन्होंने बात की इससे मालूम हुआ कि यह राउंड रैपिड फायर राउंड जैसा था। अधिकांश जज और प्रतिभागियों ने इस राउंड को फुलझड़ी की तरह हंसी-मजाक में परिवर्तित कर दिया था। सबको विश्वास था कि असली रैपिड फायर तो ठाकुर और केतकी जब आमने-सामने होंगे तब देखने के मिलेगा।

ठाकुर रविशंकर ने पहले ही प्रश्न पर स्पिन बॉल डाली, ‘खुद से प्रेम करती हो?’

‘सीख रही हूं, क्योंकि आवश्यक है।’

‘तुम झूठ कब बोलती हो?’

‘जब सच्ची नहीं होती हूं तब। लेकिन ऐसा बहुत कम होता है।’

‘मुझ पर गुस्सा करती हो?’

‘संभव ही नहीं।’

‘डरती हो?’

‘जरूरत ही नहीं’

‘चापलूसी करती हो?’

‘आप वह पसंद नहीं करेंगे।’

‘मेरे बारे में तीन शब्द कहो।’

‘मान, सम्मान, आदर।’

‘मुझे कैसा इंसान मानती हो विस्तार से बता सकती हो?’

‘रवि हैं यानी धधकते हुए सूरज की तरह, लेकिन मैं आपके नाम को आदित्य, दिवाकर, भास्कर, प्रभाकर, त्रिलोक, दिनकर और सूर्य की तरह भी पहचानती हूं। उसका जलना-उबलना उसके लिए वेदनादायी ही है। उसको जलाने वाला है, लेकिन सृष्टि के लिए यह अनिवार्य है, उपकारी है। जीव-सृष्टि को जीवन देने वाला है। सिवाय, मेरे जीवन में भगवान शंकर का महत्त्व अधिक है। इस लिए मुझे केतकी नाम मिला है। केतकी के फूल को सालभर कोई नहीं पूछता लेकिन महाशिवरात्रि को केतकी के बिना महादेव की पूजा हो ही नहीं सकती। मुझे केतकी नाम देने वाले मेरे जीवन के सबसे स्नेही पुरुष यानी मेरे नाना। उनका साथ मुझे अत्यंत प्रिय था। वह प्रखर शिवभक्त थे। उनका नाम प्रभुदास था। उनका नाम आपके उपनाम में है। आपकी इस अवस्था का कारण जो भी हो, आपको इस वेदना से मुक्ति मिले मैं इसके लिए प्रार्थना करती हूं। जाने-अनजाने बाकी 29प्रतिभागी किनारे हो गयीं और यह प्रतियोगिता आपके और मेरे बीच हो रही है, इस तरह का वातावरण तैयार हो गया। मानो आप मुझे हराने की कोशिश कर रहे हैं और मैं आपको जीतने के लिए आतुर हों, कुछ इस तरह की स्थितियां बन गयीं। इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं। तहेदिल से माफी मांगती हूं। और मुझसे बहुत सुंदर-सुंदर प्रतिभागी यहां पर हैं। इस प्रतियोगिता को जीतने के लायक हैं। मैंने, एक बिना बालों वाली लड़की ने इस प्रतियोगिता में भाग लेने का साहस दिखाया और यहां तक पहुंच गयी, यही मेरी जीत है। मेरी सफलता है। सिर पर बाल न होने के कारण इस बीमारी से त्रस्त कोई युवती, कोई स्त्री मेरी इस सफलता के उदाहरण से प्रेरित होकर यदि आत्महत्या से परावृत्त होती है तो मेरी सच्ची जीत होगी। बाल न होने के कारण सालों साल अपना सिर ढांक कर शरम से घर में बैठे रहने वाली कोई स्त्री यदि मेरी सफलता से प्रेरणा पाकर अपना सिर खुला रख कर घर से बाहर निकल सके तो वह मेरी जीत होगी। दैट्स ऑल...मैं आपसे एक अनुरोध करूं?’

जज ठाकुर जैसे तैसे बोल पाये, ‘हां...कहिए...’

‘मुझे मालूम है कि ये प्रोटोकॉल के विरुद्ध है फिर भी मेरी इच्छा है कि आप मेरे पास आएं। प्लीज...ये आखिरी अनुरोध है।’

हॉल में सन्नाटा पसर गया कि आखिर यह लड़की कह क्या रही है। हरेक की दृष्टि ठाकुर साहब पर टिकी हुई थी कि अब ये दुर्वासा कुपित होंगे...

ठाकुर रविशंकर प्रभु उठे और उसकी तरफ बढ़ने लगे। लेकिन इस समय उनकी चाल में वह उनका चित-परिचित रौब नहीं था। उनकी चाल नरम पड़ गयी थी। जबरदस्ती चल रहे हों, इस तरह ले केतकी पास पहुंचे। केतकी की तरफ देखते रह गये। बिना कुछ कहे। केतकी उनके पैरों पर गिर गयी। उसने उन्हें दंडवत प्रणाम किया। बाद में उठकर बोली, ‘आप मेरे भोले प्रिय महादेव, सूर्यदेव और मेरे नाना प्रभुदास के समान हैं, मैं आपका वंदन करती हूं और मेरी माफी स्वीकार करें, ऐसी बिनती करती हूं।’

ठाकुर रविशंकर का बदन अचानक कांपने लगा। वह गरजे, ‘लड़की, तुम अपने आपको समझती क्या हो? तुमने आज क्या किया है, पता है तुमको?’ केतकी अपने दोनों हाथ जोड़कर चुपचाप खड़ी थी।

‘तुम ..तुम केतकी जानी...ने आज इस ठाकुर रविशंकर प्रभु को हरा दिया।उसका अभिमान, उसका गर्व सब धूल में मिला दिया...’ कहते-कहते अचानक उन्होंने अपने दोनों हाथ अपने मस्तक की ओर ले गये और मन में द्वंद्व चल रहा हो, इस तरह वह थरथर कांपने लगे। दोनों हाथों को खींच कर नीचे लेकर आए। और सभी स्तब्ध रह गये। ठाकुर रविशंकर प्रभु ने अपने सिर पर रखा विग उतार कर नीचे फेंक दिया। दुनिया को आज पहली बार मालूम हुआ कि उनके सिर पर एक भी बाल नहीं था।

‘केतकी...तुमने आज इस बूढ़े की शरम निकाल दी। मुझे मुखौटों के बंधनों से मुक्त कर दिया।मैं विग के बिना घर से बाहर नहीं निकल पाता था। किसी के साथ एक कमरे में नहीं रह सकता था। किसी के घर रहना टालता था। क्योंकि इस वजह से मैं पूरी तरह गंजा हूं और मैं विग पहनता हूं-यह पता चल जाता। मुझे डर लगता था और तुम एक स्त्री होकर अपने गंजेपन की लेशमात्र लज्जा या चिंता न करते हुए सभी के सामने आत्मविश्वास के साथ आयी। मैंने अपने न्यूनताबोध के कारण तुम्हें हराने की बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारे तेजस्वी व्यक्तित्व, सच्चाई ने मुझे हरा दिया। मुझे माफ करो...मुश्किल है..फिर भी तुम मुझे माफ कर दो। करोगी न?’

‘आप मुझे शर्मिंदा न करें। आप हारे नहीं हैं, आपका अहंकार हारा है। आपने अपने न्यूनताबोध पर विजय पायी है...हम दोनों साथ-साथ विजयी हुए हैं। एक ने विग से मुक्ति पायी, शरम छोड दी और अपने मूल स्वरूप में आने का साहस दिखाया। मैं ही आपका जितना धन्यवाद करूं उतना कम है। आपको नमन।’

‘केतकी...तुम बहुत चतुर हो। मैं तुमसे जीत नहीं सकता। लेकिन तुम्हारा अनुरोध मानकर मैं ठाकुर रविशंकर प्रभु उठकर तुम्हारे पास आया। इस लिए तुम मेरी ऋणी हो। इस ऋण की खातिर ही सही मेरी एक बिनती सुनोगी क्या?’

‘बिनती नहीं... आदेश दें।’

‘आज से मैं तुम्हें अपनी बेटी कह सकता हूं?’

‘एक शर्त पर...मैं आपको नाना कहूं तो?’ और फिर वह रविशंकर के गले लग गयी। नाना और नवासी का यह अनोखा मिलन देखकर लोगों की आंखों में आंसू आ गये। ठाकुर केतकी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘इसकी प्रत्येक प्रस्तुति में झलकने वाला आत्मविश्वास मानो मुझे फटके मार रहा था। इसी वजह से मैंने इसे कहीं कहीं शून्य नंबर दिये तो कहीं एक। लेकिन केतकी के पास आने से पहले प्रत्येक शून्य पर एक और शून्य चढ़ाकर उसे आठ बना दिया तो कहीं एक के सामने शून्य लगाकर दस नंबर बना दिये। और रैपिड फायर राउंड में क्या किया मालूम है? प्लीज, मेरे बाजू में विराजमान जज उस कागज को देखकर बताएं तो अच्छा होगा।’

अनिता वालुचा ने कागज देखकर बताया, ‘ग्यारह।’ सभी तालियां बजाने लगे।

ठाकुर रविशंकर ने केतकी को किनारे किया। ‘किसको कितने नंबर देने हैं, कौन सा टाइटल देना है ये तो सभी जज मिलकर तय करेंगे। लेकिन मेरे अकेले का विचार लेंगे तो आज की विजेता मेरी बेटी है...केतकी...’  तालियां फिर से गड़गड़ाने लगीं।

ठाकुर प्रभु को लगा कि उनका आज का प्रदर्शन अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा और इसी लिए उन्हें तालियां भी अधिक मिल रही हैं। इसके बाद फाइनल के क्लाइमेक्स में एक के बाद एक टाइटल अवार्ड घोषित होने लगे। प्रत्येक विजेता का तालियों से स्वागत हो रहा था। लोग खुशियां जाहिर कर रहे थे। लेकिन सभी को केतकी के नाम की प्रतीक्षा थी कि उसे कौन सा टाइटल मिलेगा। तभी प्रमुख आयोजकों ने मंच पर कर घोषणा की, ‘सभी जानते हैं कि आज की प्रतियोगिता का स्टार आकर्षण यानी सरप्राइज पैकेज थीं केतकी जानी। हमारी प्रतियोगिता के पारंपरिकक मैडल अथवा टाइटल में उसके लायक एक भी न होने कारण हमने उसे विशेष टाइटल मोस्ट इंस्पायरिंग पर्सन से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। थैंक्यू केतकी फॉर बीईंग विद अस। मैं केतकी जानी और आदरणीय रविशंकर ठाकुर प्रभु को मंच पर आने का अनुरोध करता हूं। प्लीज, मंच पर लाइट बढ़ाएं। सभी को इस अनोखे क्षण का दर्शन करने दें।’ ठाकुर और केतकी मंच के दो कोनों से सामने आये। उजले प्रकाश में दोनों के चेहरे प्रफुल्लित होकर चमक रहे थे और उनके गंजे सिर भी। केतकी को ट्रॉफी गले में टाइटल का सेस लटकाया गया। दोनों की आंखों में नमी थी। दिल हल्का हो गया था और मन आनंद से भरा हुआ था। समझदार दर्शकों को मालूम था कि यह दृश्य भूतो न भविष्यति जैसा है। टीवी चैनल और बाकी मीडिया के फोटोग्राफर इस क्षण को अपने अपने कैमरों में कैद करते जा रहे थे।

इधर भावना और प्रसन्न को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि केतकी ने इतन बड़ी सफलतापा ली है। और एनडी गुस्से में था, ‘कमाल है ये बाल्ड ब्यूटी। मैंने तीन बार तीन लाख का ऑफर दे चुका तब भी ये बूढ़ा ठाकुर मेरे लिए मॉडलिंग करने के लिए तैयार नहीं हुआ। ऐसे कठोर आदमी को इस टकली ने हरा दिया। चलो, इसका मतलब है कि अपनी पसंद गलत नहीं है। ये लवंगी मिर्ची हाथ लग जाए तो मजा आ जाए। ’

मुंबई में फाइनल राउंड चल रहा था उधर डरबन में चंदाराणा बेचैन हो रहे थे। विचारों में गुम थे। प्रसन्न शर्मा ने केतकी की सफलता की खबर उन्हें सुनायी लेकिन चंदाराणा कुछ ज्यादा बोले नहीं। उन्होंने अपने बिस्तर के पास रखे तकिये के नीचे से एक लिफाफा निकाला। उसमें से एक फोटो निकालकर उसकी तरफ देखने लगे। वह एक लड़की का फोटो था। ‘बेटा, केतकी मुझे माफ करना। तुमको टीचर बनना था लेकिन मैंने तुम्हें जबरदस्ती डॉक्टर बनने के लिए भेजा। तुम नाराज थीं फिर भी मेरा कहा मान लिया। कॉलेज के पहले ही दिन हुई दुर्घटना में तुम हमें छोड़कर चली गयी। फिर सारा व्यवसाय, उद्योग समेट कर मैंने ये स्कूल खोल लिया। और आज तुम मानो केतकी जानी बन कर मेरे जीवन में वापस आ गयी। स्कूल में उसे देखने के बाद ड्रावर में रखा तुम्हारा फोटो देखे बिना मुझे चैन नहीं पड़ता। तुम दोनों एकदम एक जैसी हो। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। खुशी के आंसू।’

.........

अगले दिन शाम को केतकी और प्रसन्न मरीन ड्राइव के समुद्र किनारे बैठकर सूर्यास्त का आनंद ले रह थे। सुबह से ही खूब गप्पें मारी जा रही थीं। अचानक केतकी का मोबाइल बजा। उसे फोन उठाना नहीं था। यदि उसे मालूम हो जाता कि वह फोन रास्ते के उस पार खड़ी कार में से किया जा रहा है तो उसने वहां जाकर फोन करने वाले की पिटाई की होती। बेचारा एनडी मोबाइल की तरफ गुस्से से देखते हुए धीरे-धीरे कार चला रहा था। इसी धुन में उसने सामने खड़ी कार को टक्कर मार दी। आवाज सुनकर ट्रैफिक हवलदार भाग कर आया। उसने एनडी की गाड़ी को खटखटाया। पुलिसवाला गुस्से में था। न चाहते हुए भी एनडी ने कांच नीचे उतारा। और उसके सामने सौ का नोट रख दिया।

‘ऐ शाणे नाम बोल अपना...’

‘एनडी...पहचाना नहीं?’

‘जरूरत नहीं है...लाइसेंस दिखा...’

चिढ़कर एनडी ने लाइसेंस दिया। हवलदार ने देखा, ‘अरे बाबा, नरेश देसाई नाम है...और एड्रेस राजकोट का..चल साइड में आ जरा...साब को बताना पड़ेगा...’

उसकी कार आगे निकली तभी भावना पुकु और निकी को लेकर आयी। केतकी को देखककर दोनों भागने लगे। केतकी और प्रसन्न के बीच में जाकर बैठ गये। केतकी को खुशी हुई। चलो दोनों के बीच में कोई तो आकर बैठा। अच्छा हुआ। प्रसन्न इस बात से खुश था कि दोनों के बीच की खाली जगह भर गयी और दोनों जुड़ गये।

‘प्रसन्न...तुम्हारे हिसाब से मैंने भले ही दुनिया जीत ली हो...लेकिन मैं वाकई तुम्हारे लायक नहीं हूं। मेरे कारण तुम दुःखी हो, मुझे अच्छा नहीं लगेगा।’

‘केतकी...तुम साथ रहो या न रहो...लेकिन मेरे मन में तुम सदा ही रहोगी। तुम्हारा मेरे जीवन में होना ही मेरे लिए सबसे बड़ा सुख है यदि ये बात मैं तुम्हें समझा पाता तो मुझे खुशी होती। ’

‘मेरा मन अभी भी तैयार नहीं हो रहा है। मुझे कुछ समय चाहिए हां या न कहने के लिए...’

‘मेरे मन में तो ऐसा कोई सवाल ही नहीं है..तुम्हारा जवाब कुछ भी हो...मैं तुम्हारा था और हमेशा रहूंगा। तुम मेरे जीने का कारण हो। मेरे संगीत का प्राण हो। खैर, तुम जब तक कोई निर्णय लोगी तब तक हम दोस्त बन कर रहेंगे ठीक?’

प्रसन्न ने हाथ बढ़ाया। केतकी ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। ‘फ्रेंड्स फॉर एवर।’ उन दोनों के हाथों पर पुकु-निकी ने अपना हाथ रख दिया। उसी समय भावना ने सूर्यास्त के बैकग्राउंड में इस अनोखे दृश्य को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया।

उसी समय वहां से गुजर रहा एक भिखारी मधुर स्वर में गाने का प्रयास कर रहा था... हम बने.. तुम बने.. एक दूजे के लिए..

शुभारंभ....

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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