कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 88 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 88

भाग 88

पुरवा ने अपने चेहरे को छुआ। खून सूख कर कड़ा हो गया था। अमन नलका चलता रहा। पुरवा ने पहले छीटें मार कर मुंह धोया। फिर नलके के बहते पानी के नीचे बैठ कर सिर से से नहा लिया। ये हालत ने उससे क्या करवा दिया..!

पुरवा के नहा लेने पर अमन ने ओढ़नी का परदा तान कर मुंह घुमा कर खड़ा हो गया।

पुरवा ने कपड़े बदल कर उतरे हुए कपड़े को धो कर साफ़ किया। और वही झाड़ी पर सूखने डाल दिया।

इसके बाद अमन ने भी नहा कर साथ लाए कपड़े पहने और अपने कपड़े धो कर सूखने को डाल दिया।

ये सब करते करते पूरी रात बीत गई। सुबह की किरण फूटने को आतुर हो गई।

वहीं बेंच पर टेक लगा कर पुरवा और अमन बैठे आगे क्या करना है इसके बारे में सोच रहे थे।

कल की घटना की दहशत इतनी थी कि इक्का दुक्का लोग ही दिख रहे थे अभी तक। पर सुबह होते ही गाड़ी पता करने और आने जाने वालों का सिलसिला शुरू हो गया।

हर कोई सुरक्षित जगह पर जाना चाह रहा था। जिसकी कौम के लोग जिस तरफ ज्यादा तादात में थे, वो वहीं जाना चाहता था। सब के जुबान पर एक ही बात थी कि अब देश का बंटवारा हो कर रहेगा। अब इसे कोई नही रोक पायेगा। गांधी बाबा लाख चाहें पर जिन्ना और उनके भड़काऊ भाषण से माहौल बहुत ज्यादा बिगड़ गया है। गलत फहमियां इतनी ज्यादा फैल गई है कि हिंदू मुस्लिम का एक दूसरे से भरोसा उठ गया है। इस लिए जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी अपने अपनों के बीच जाना ही ठीक है।

तभी पाव और चाय ले कर एक अधेड़ आदमी बेचते हुए उनकी ओर आया।

अमन ने उससे अपने और पुरवा के लिए दो गिलास चाय और दो पाव लिए। पैसे निकाल कर देते हुए अमन ने उस आदमी से पूछा,

"अच्छा दादा..! ये बताओ कल तो बड़ा तूफान मचाया था दंगाइयों ने ट्रेन में। अपने भी तो सुना ही होगा।"

वो आदमी उतरे चेहरे से गंभीर आवाज में बोला,

"हां..! भाई..! सब सुना। यकीन नही होता कि कल तक सब मिल जुल कर सगे भाई की तरह रहते थे। आज इन सियासत के प्यादों ने ऐसी आग लगाई है कि पूरा देश जी सुलग रहा है। कब.. कौन.. आ कर किसका कतल कर दे भरोसा ही नहीं है। अब रोजी रोजी चलाने के लिए, पेट पालने के लिए घर से निकलना पड़ा है बेटा। पर माहौल निकलने काबिल नही है इस वक्त। तुम कहां जा रहे हो..?"

फिर अमन ने कल गाड़ी में जिन लोगों के ऊपर हमला हुआ था उनके बारे में पूछा।

उसने बताया कि यहां के सरकारी अस्पताल में सब को ले जाया गया है। मुर्दा लोगो का दो दिन शिनाख्त का इंतजार कर अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा। घायलों का इलाज चल रहा है।

अमन ने पाव और चाय जल्दी जल्दी खाया और पुरवा को भी जल्दी से खाने को बोला। फिर कपड़े को लपेट कर रक्खा और पुरवा को साथ ले कर जिला अस्पताल की ओर चल दिया।

वहां पहुंच कर पहले मुर्दा घर की ओर रुख किया। जिस हिसाब से उन पर तलवार से वार किया गया था। बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। इस लिए शव गृह में दाखिल हुए। फिर एक को देखा शव को हिम्मत जुटा कर देखना शुरू किया। हर शव के चेहरे से कफन हटाते हुए यही डर हावी रहता कि कही ये बाऊ जी का ना निकले। पुरवा बस अमन की बांह थामे चल रही थी। अमन चेहरे से कपड़ा हटा कर देखता और पुरवा की ओर देख कर इनकार में सर हिलाता। हर बार इनकार में सर हिलाने पर पुरवा को थोड़ा सुकून मिलता।

पर एक एक कर के आखिरी तक देख लिया। उनके बीच बाऊ जी को नही पा कर पुरवा अमन के गले लग कर रोने लगी। मन में एक आस बंधी कि शायद बाऊ जी घायलों में हो।

अब तेजी से अमन पुरवा को साथ लिए वार्ड की ओर भागा। जहां सामान्य घायल थे वहां तो देखने का कोई फायदा ही नही था।

अमन ने एक नर्स को देखा और उससे कुछ पूछना चाहा तो वो नज़र अंदाज कर के वहां से जाने लगी। फिर अमन ने मिन्नत करते हुए पूछा,

"क्या कल लाहौर आने वाली ट्रेन में दंगाइयों के हाथों घायल हुए यहां आए है..? कृपया बता दे.. घायलों में हमारे बाऊ जी भी थे। हम तो किसी तरह भाग कर जान बचाने के कामयाब हुए है। अब अम्मा और बाऊ जी को खोज रहे हैं।"

बोलते हुए अमन और पुरवा की डबडबा आईं आंखो को देख कर नर्स का दिल पसीज गया।

वो बोली,

"हां बेटा…! कुछ लोग लाए तो गए हैं। पर बड़ी ही खराब हालत में हैं। अब देखो बचते भी हैं या नहीं। जल्लादों ने बड़ी बे रहमी से मारा है उन्हें। गॉड उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।"

फिर वो बारी बारी से हर घायल के पास ले जा कर उन्हें दिखाने लगी।

पर अशोक उनमें नही दिखे।

निराश बच्चों को देख वो नर्स कुछ सोचते हुए बोली,

"यहां पर बेड नही खाली था तो उस तरफ ऊपर में एक घायल को रक्खा गया है। चलो एक आखिरी कोशिश कर लेते हैं। वहां भी देख लें।"

वो नर्स जिसका नाम वैरोनिका था अमन और पुरवा को ले कर ऊपर के हिस्से में गई। कुछ बेड डले हुए थे। उस पर पूरी तरह पट्टी से ढके हुए लोग लेटे हुए थे। वैरोनीका बोली,

"बच्चा लोग..! देख लो तुम। हो सकता है इसमें तुम्हारे अम्मा, बाबू जी हों।"

पुरवा तेजी से आगे आई और एक एक कर के घायलों को देखने लगी। जब पांचवे और आखिरी बेड के पास पहुंची तो उस पर लेटे आदमी को देख कर खुशी से बिलख पड़ी,

"बाऊ जी..! अमन.. मेरे बाऊ जी..!"

कहते हुए उनसे लिपटने को आतुर हो गई।

वैरोनिका ने आगे बढ़ कर पुरवा को ऐसा करने से रोक दिया और समझाते हुए बोली,

"माई चाइल्ड..! धैर्य रख्खो। वो घायल हैं। उनको ऐसे छूने से दर्द होगा।"

पुरवा ने वैरोनिका के बात पर सिर हिला कर सहमति जताया और पीछे हट गई।

मुस्कुराते हुए अमन की ओर देखा और बोली,

"अमन..! बाऊ जी जिंदा है।"

अमन बोला,

"हां..! पुरु..! ये किसी चमत्कार से कम नहीं है। तुम बिलकुल भी चिंता मत करो। बाऊ जी अब अच्छे हो जायेंगे।"