कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 79 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 79

भाग 79

नानी के घर से निकलते-निकलते साढ़े आठ बज गए थे। पहाड़ी रास्तों पर सफर का आनंद उठाते हुए सब मंजिल की ओर बढ़े जा रहे थे।

तभी अशोक बोले,

"साजिद भाई..! आप सब की बदौलत अच्छे से कटास -राज बाबा के दर्शन हो गए। हम वहां सब कुछ पड़ोसियों के भरोसे छोड़ कर आए हैं। जिस गाड़ी से हम आए थे वो कब मिलेगी..? हमें उसी गाड़ी पर बैठा दे आप।"

सलमा उलाहना देते हुए बोली,

"क्या अशोक भाई..! अभी आज ही लौट रहे हैं और जाने की तैयारी भी कर रहे हैं। रुकिए कुछ दिन तब जाइएगा। अभी आपको हिंगलाज माता के दर्शन भी तो करवाने हैं।"

अशोक का जी ना जाने क्यों पुरोहित जी की बातों को सुनने के बाद से उचट गया था। वो बस जल्दी से घर पहुंच जाना चाहते थे। इस लिए बोले,

"नही नही.. साजिद भाई…! अब अगली बार जब आप सब इस्माइलपुर आयेंगे तब हिंगलाज-माता के दर्शन करेंगे। अभी तो आप आज्ञा दे हमको। बस हमारे जाने का बंदोबस्त कर दें।"

साजिद सोचते हुए बोले,

अशोक भाई..! वो गाड़ी हफ्ते में एक दिन ही जाती है। आज रात को ही जायेगी।"

अशोक बोले,

"तब तो बढ़िया है। अभी से रात तक आराम कर लेंगे और रात को गाड़ी पकड़ लेंगे। क्यों पुरवा की अम्मा…? क्या कहती हो..?"

उर्मिला बोली,

"हां.. ठीक तो है।"

अमन ने पुरवा की ओर देखा।

वो एक टक बाहर की ओर देख रही थी। उसके चेहरे पर कोई भी भाव नही था।

क्या पुरवा बस कुछ घंटे की मेहमान है उसके घर में। उसके बाद वो उससे बिछड़ जायेगी…. फिर कब मिलेगी.. मिलेगी या भी नही कुछ पता नहीं था।

साढ़े ग्यारह बजते-बजते वो चकवाल पहुंच कर अपनी हवेली के सामने खड़े थे।

मोटर की आवाज सुन कर नौकर दौड़ा समान उतारने को। इधर मुन्ना मचलने लगा कि उसके अमन चाचू और दादी दादा आ गए।

पर अमन इन सब बातों से उचाट ही रहा।

अमन ने पिछले दिनों का अखबार उठा कर दखा तो लिखा था उसका नतीजा तीन दिन पहले ही आ गया है। वो सीधा अपने स्कूल चला गया।

वहां से लौटकर आया तो कुछ सोचकर अम्मी अब्बू के कमरे में जाने का इंतजार करने लगा।

जैसे ही अमन ने देखा कि अब्बू अम्मी अपने कमरे में गए। वो उनके पास गया और बोला,

अम्मी..! अब्बू..! मेरा नतीजा आ गया है। मुझे लाहौर जा कर अंक पत्र निकलवाना होगा। मैं भी अशोक चच्चा के साथ उसी गाड़ी से चला जाऊं क्या..?"

साजिद ने पहले तो सोचा कि मना कर दें। अभी क्या जल्दी है अंक पत्र की। बाद में जा कर ले लेगा कभी। पर अभी अशोक उर्मिला को कुछ दूर ही सही साथ मिल जाएगा इसलिए बोले,

"ठीक तो है। उनको भी कुछ दूर तक ही साथ तो रहेगा। और तुम्हारा काम भी हो जाएगा। चले जाओ।"

पुराने अखबारों की खबर साजिद ने भी देख ली थी। देश का माहौल खराब हो रहा था। उनकी जैसी सोच वाले लोग लाख कोशीश कर रहे थे, पर उन्माद भड़काने वाले उन जैसों पर भारी पड़ रहे थे। उसे भी चिंता हो गई थी। बस ये लोग खैरियत से अपने घर पहुंच जाएं तो उनकी भी इज्जत रह जाए। इसी लिए सीधी लखनऊ तक की गाड़ी से आज ही भेजने को राजी भी हो गए थे।

सच बात ये थी कि अमन का नतीजा तो आया था, पर उसने किसी को बताए बिना अपने स्कूल जा कर अंक पत्र हासिल कर लिया था। उसमे दर्ज अंक पर्याप्त थे उसके सपनों को पूरा करने के लिए। मतलब उसका अरमान किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज में पढ़ने का था। उस कॉलेज में पढ़ने के लिए जितने अंक चाहिए थे उससे ज्यादा ही अंक अमन को मिले थे। अगर वो बता देता तो अम्मी अब्बू को तो उम्मीद नहीं पूरा यकीन था कि वो उसे नही जाने देंगे। इस लिए अंक पत्र का बहाना करके वो लाहौर चले जाना चाहता था। फिर दाखिला लेने के कुछ समय बाद वो उन्हें बताने का फैसला किया था। जिससे उनके इनकार करने का कोई मतलब ना रह जाए।

दोपहर को खाना खाने के बाद कुछ देर आराम किया सभी ने। फिर करीब तीन बजे साजिद ने सभी को बाजार घुमाने का तय कर लिया। आखिर वो उनके घर आए थे। कुछ सौगात देना तो बनता ही था। यहां की रेशम की साड़िया और पश्मीना की शाल बहुत अच्छी और वाजिब कीमत पर मिलती थी।

साथ में गुड़िया भी थी इस बार।

सभी ने खूब खरीदारी की।

उर्मिला के चार रेशम की साड़ी खरीदी। जो पुरवा को पसंद ही वो उसे ले ले।

एक पुरवा की शादी के लिए सुर्ख लाल बनारसी साड़ी। अशोक के लिए मलमल की धोती और सिल्क का कुरता। साथ में चमड़े का जूता मोज़ा।

अशोक और उर्मिला ना ना… कहते रहे। उन्हें बिलकुल भी अच्छा नही लग रहा था कि साजिद और सलमा उन पर इतना ज्यादा खर्च करें। पर वो दोनो कहां सुनने वाले थे उर्मिला अशोक के इनकार को..!

खूब खरीदारी कर के शाम को सब वापस आए। गुड़िया और पुरवा की छह दिन पहले हुई दोस्ती आज फिर रंग चढ़ गई थी। दोनों ने अपने लिए एक रंग एक कढ़ाई का सुंदर सा सलवाल कमीज का कपड़ा लिया। गुड़िया पुरवा से बोली,

"अम्मी बता रहीं थीं आपकी शादी है अगले साल। हमें जरूर बुलाएगा भूलिएगा मत। इस बार अम्मी अब्बू के साथ हम जायेंगे, भाई जान नही। आप बुलाएंगी ना।"

पुरवा ने धीरे से फीकी सी हंसी हंस कर हां में सिर हिलाया।

वापस लौट कर सबने चाय संग नमक पारे खाए।

फिर सलमा ने उर्मिला को हिदायत देते उसके समान का झोला अलग करते हुए बोली,

"उर्मिला…! ये सब ले जाओ.. ठीक से संभाल कर अपना सब सामान रख लो। देखते ही देखते निकलने का वक्त हो जायेगा। मैं बावर्ची खाने में जा रही हूं। तुम सब के लिए खाने और ले जाने के लिए बनवा दूं। बस अभी उनको सब समझा कर आती हूं। तुम सब व्यवस्थित करो।"

उर्मिला कुछ झोला खुद और कुछ पुरवा को पकड़ा कर अपने वाले कमरे में चली गई, जहां उसका सब सामान रक्खा हुआ था। कमरे में पहुंच कर पुरवा से बोली,

"पुरवा..! तुम सब ध्यान से रख लो कुछ छूटे ना। हम तो बहुत थक गए हैं। अभी फिर निकलना है। थोड़ा सा आराम कर लें।"

अशोक भी पीछे पीछे आ गए थे, उर्मिला की बात सुन कर बोले,

"अच्छा.. तुम थक गई हो तो क्या ये बच्ची नही थकी है..! उसे भी तो आराम करने का मन करता होगा। ला बिटिया..! हम तुम मिल कर जल्दी से रख से सब फिर आराम करें।"

इसके बाद दोनो बाप बेटी सब सामान व्यवस्थित कर के झोले में रखने लगे।