कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 70 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 70

भाग 70

इसके बाद अशोक पुजारी जी के बताए तरफ के धर्मशाला में सब को ले कर चले गए।

सलमा ने साथ लाए नमक पारे और कुछ फल अमन को दिया और साथ ही बाकी सब को भी दिया।

थकान होने की वजह से सभी लेट कर आराम करने लगे।

करीब एक घंटे बाद घंटे की आवाज सुनाई दी।

अशोक बोले,

"लगता है द्वार खुल गया।"

उर्मिला ने भी हामी भरी पूछा, "चलें फिर..?"

अशोक उठते हुए बोले,

"हां चलो।"

उर्मिला,अशोक, पुरवा और सलमा जाने लगे पर अमन आराम ही करता रहा।

दोपहर का अभिषेक हो रहा था।

सलमा एक कोने में हाथ जोड़े खड़ी देखती रही पूजा का विधि विधान और उर्मिला अशोक पूरी श्रद्धा से पूजा करते रहे।

पूजा समाप्त होने पर पुरोहित जी ने अशोक के माथे पर चंदन लगाते हुए पूछा,

"पुत्र..! तुमको आज पहली बार देख रहा हूं। यहां के नही हो क्या..?"

अशोक बोले,

"नही पुरोहित जी..! हम यहां के नही हैं। बड़ी दूर से आए हैं बाबा के दर्शन को।"

फिर अपने बारे में अशोक ने सब कुछ बताया और बोले,

"ये मेरी धर्म पत्नी है और ये मेरी बिटिया है। इसे आशीर्वाद दीजिए महाराज।"

पुरोहित जी ने पुरवा के माथे पर भी तिलक लगाया और आशीर्वाद के लिए उसके माथे पर हाथ फेरा और बोले,

"सदैव खुश रहो बिटिया..!"

पर तुरंत ही जाने क्या उन्हें पुरवा के माथे पर दिखा कि उनके चेहरे का रंग फीका हो गया। उन्होंने अपना चेहरा शिव लिंग की ओर घुमा लिया और बोले,

"पुत्र..! सावधान रहना। मुझे किसी अनिष्ट की आशंका नजर आ रही है।"

पुरोहित जी के इतना कहते ही अशोक और उर्मिला घबरा गए। अशोक ने उनसे पूछा,

"महाराज..! ये आप क्या कह रहे हैं..? कैसी अनिष्ट की आशंका आपको नजर आ रही है। जरा खुल के बताइए। मेरा दिल बैठा जा रहा है।"

पंडित जी ने पहले को अशोक और उर्मिला को टालने की कोशिश की। पर जब वो नही माने तो वो फिर से पुरवा का माथा देखते हुए बोले,

"बेटा ..! मैं कोई ईश्वर नही हूं। बस जो मुझे नजर आ रहा है वही बता रहा हूं। एक ऐसा तूफान आने वाला है जिसमे तुम्हारा परिवार बिखर जायेगा। ऐसी मुझे आशंका हो रही है। अब इससे ज्यादा मैं तुम्हें कुछ नही बता सकता। अब भोले नाथ के द्वार आए हो। इन्हीं से विनती करो.. सब कुछ नष्ट होने से ये बचा लें। कुछ न्योछावर कर के अगर कुछ संजो लेने की प्रार्थना करो इनसे।"

अशोक और उर्मिला डर गए।

उर्मिला उनके चरणों को छू कर बोली,

"महाराज..! आप तो मनुष्य और ईश्वर के बीच का पुल हो। आप ही कुछ उपाय बताइए ना। हम खुद को न्योछावर करने को तैयार है, अपनी परिवार को बचाने की खातिर।"

पुरोहित जी बोले,

"पुत्री..! कल से तीन पांच दिन का महा रुद्री अनुष्ठान होने वाला है। अगर तुम चाहो तो इसमें शामिल हो कर होने वाले अनिष्ट को टाल तो नही सकती पर कम जरूर कर सकती हो।"

अशोक और उर्मिला ने आपस में कुछ विचार किया और फिर पुरोहित जी से अपने शामिल होने की सहमति दे दी।

जब मंदिर से वापस लौटे तो अनजानी अनहोनी के बारे में सोच कर दोनो का चेहरा उतरा हुआ था।

सलमा ने भी सब कुछ सुना था। वो बराबर समझाती रही थी कि चिंता मत करो कुछ नही होने वाला। ये तो साधु फकीर, मौलवी ऐसे ही लोगो को डराते रहते है। तभी तो इनकी दुकान चलती है।

पुरवा भी पुरोहित जी की बातों में रत्ती भर भी सच्चाई मानने को तैयार नहीं थी।

मगर उर्मिला और अशोक को पुरोहित जी की भविष्य वाणी पर कोई संदेह नहीं था।

सलमा के पास पांच दिन रुकने का समय तो नही था। पर क्या करती इस अनजान जगह पर अशोक और उर्मिला को जवान बेटी के साथ अकेले छोड़ कर भी तो नहीं जा सकती थी। आखिर उनको इतने इसरार से, राजी करने के बाद साथ ले कर आई थी। उसे तो रुकना ही था साथ में।

तय हुआ कि अब वो पांच दिन रुकेंगे। रोज अनुष्ठान में सम्मिलित होंगे। पांचवे दिन हवन होने के बाद तुरंत ही निकल लेंगे।

मंदिर का भक्ति मय माहौल सब को अपने रंग में रंग दे रहा था। कोई जाति धर्म का भेद नहीं रह जा रहा था। धर्म शाला की रसोई में पुरवा और उर्मिला सुबह शाम खाना और प्रसाद बनाने में सहयोग करती थीं। सलमा बाहर से साफ सफाई, सब्जी काटना पानी लाना आदि काम कर अपना सहयोग देती थी।

जब संस्कृत के श्लोक मंदिर के प्रांगण में गुजारे तो वहां मौजूद इंसान तो क्या.. पशु पक्षी भी स्थिर हो कर भक्ति रस को छकने लगते।

अमन भी अपना सहयोग देने से पीछे नहीं था। वो अभिषेक का जल कुंड से निकाल निकाल कर पुरवा को पकड़ाता। बाहर घाट की सफाई,झाड़ू का बीड़ा उसने उठा लिया था।

तड़के चार बजे से दिन चर्या शुरू हो जाती। नित्य कर्म से निवृत्त हो कर सभी सरोवर में स्नान करते।

उसके बाद मंदिर में पूजा में शामिल होते। पुरोहित जी को दूसरे धर्म के होने की वजह से सलमा और अमन को इस अनुष्ठान में शामिल करने में कोई एतराज नहीं था।

जब सलमा ने अपनी सच्चाई बता कर उनसे अनुमति चाही तो वो बोले,

"पुत्री..! ईश्वर ने सब को एक जैसे हालात में पैदा किया। ये तो विभिन्न धर्मों…, विभिन्न वर्णों में हमने ही बाटा है। बस पद्धति अलग अलग है। काम तो दोनो का ही अपने आराध्य को याद करना है। तुम्हारी श्रद्धा है तो तुम भी शामिल हो सकती हो।"

सलमा और अमन को पुरोहित जी की इजाजत मिल गई तो वो भी अब हर विधि विधान को पूरी शिद्दत से करने लगे।

अमन जो सुबह जागता नही था अब ब्रम्ह मुहूर्त में ही उठ कर सरोवर में स्नान कर लेता था। उसे ये सब बड़ा की रोमांचक लगता था। बड़ी जिज्ञासा से सब कुछ देखता समझने की कोशिश करता था।

अशोक और उर्मिला को पुरोहित जी आसान पर करीब बिठा कर सब कुछ अपने निर्देश में बता कर पूरा करवाते थे। सलमा अमन और पुरवा सहयोग करते थे। लगातार साथ रह कर काम करने और लगभग हम उम्र होने की वजह से दोनो के दिलों की निकटता बढ़ती जा रही थी।