भाग 58
पुरवा के हाथ आगे बढ़ाते ही अमन खुशी से झूम गया। चलो किसी तरह वो मानी तो सही। इतना लंबा समय हो गया था उसे पुरवा से किसी ना किसी बहाने मिलते। पर एक इंच भी बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। पुरवा उसकी ओर देखती भी नही थी। अमन को लगता कि कहीं उसकी बात चीत की कोशिश को पुरवा गलत ना समझ ले। इस लिए बिना सोचे विचारे कुछ नही कहना था उससे।
अब अभी ही कैसे जरा सी बात पर कैसे तुनक गई। पर चलो अच्छा है कि कम से कम किसी तरह मान तो गई। इस लिए अमन ने खुशी से हंसते हुए पुरवा से हाथ मिलाया।
पुरवा से किसी ने नहीं बताया था उस आदमी और बच्ची के बारे में। अब सलमा मौसी को तो अम्मा से ही फुरसत नहीं है। वो भला क्या बताएंगी…? ये अच्छा मौका था जानने का। अब जब मौका मिला है बात करने का तो वो अपनी ही मतलब पूरा कर ले। अब तोअमन उसे जरूर बताएगा। इस लिए बोली,
"अच्छा..ये बताइए… अभी अभी बने थोड़े थोड़े वाले दोस्त जी..! वो बच्ची और वो आदमी कौन थे..? जिनके जाने के बाद पूरा बात माहौल ही गंभीर हो गया था। दर असल हम थोड़ा देर से जागे। (सिर हिला कर अपने होठों को सिकोड़ते हुए बोली) वो हमारी.. जरा आंख लग गई थी ना इसलिए कुछ समझ नही पाई।"
अमन बोला,
"हां.. वो तो हमने भी देखा था.. सोते हुए। अच्छा बताता हूं।"
फिर अपना पैर दबने से ले कर.. नीचे जाने तक की एक एक बात उसने तफसील से पुरवा को बता डाली। उसे सुन कर पुरवा के चेहरे पर कई तरह के भाव आ जा रहे थे।
बात खत्म होने पर गंभीर मुद्रा में वो बोली,
"अच्छा..तभी बाऊ जी अम्मा हमको दादा जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताते। पर बहुत ही महान थे हमारे दादा जी ना।"
अमन बोला,
"हां.. और क्या..? देश के लिए जान देना कोई मामूली बात है क्या। महान तो वो थे ही।"
पुरवा ने पूछा,
"अच्छा ये बताईए.. क्या कभी कुछ ऐसा मौका लगे तो आपके अंदर भी है हिम्मत।"
अमन गंभीरता से बोला,
" पर मैं जान देने की अपेक्षा परदे में रह कर क्रांतिकारियों की मदद कर देश के लिए कुछ करना ज्यादा पसंद करुंगा।"
पुरवा मजाक उड़ाते हुए बोली,
"डरपोक कहीं के.. असली बलिदान और सर्वश्रेष्ठ बलिदान तो प्राणों का ही होता है। तुम्हारे अंदर हिम्मत कहां..?"
अमन बोला,
" नहीं मेरी थोड़ी थोड़ी दोस्त…! मैं हरगिज डरपोक नहीं हूं। लड़ने के लिए जिंदा रहना जरूरी है। जब रहेंगे ही नही तो लड़ेंगे कैसे..! और अगर जरूरी ही हुआ तो मेरा यकीन करो उसमें भी पीछे नहीं हटूंगा।"
सलमा और उर्मिला आई तो थीं बस जरा सी दूर ही टहलने पर उनके इस और आते ही कलकत्ता जाने वाली एक्सप्रेस गाड़ी आ गई। उसके आते ही मुसाफिरों का जो हुजूम उमड़ा कि उन्हें एक ओर लग के खड़ा होना पड़ा। तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी। फिर वो उस भीड़ से निकल कर कैसे जा पाती..!
जितने लोग चढ़ने वाले थे उतने ही उन्हें छोड़ने भी जाने कैसे आ गए थे। इतनी भीड़ की वजह शायद ये थी कि यही एक मात्र गाड़ी ऐसी थी जो सीधा बंगाल जाती थी।
अभी गाड़ी खुलने में कुछ समय बाकी था। पर बिना गाड़ी गए भीड़ कम नही होती ओर बिना भीड़ छटें निकालना मुश्किल था।
उर्मिला का सारा ध्यान पुरवा के ऊपर लगा था। अशोक और साजिद भाई तो पहले ही सो गए थे। अब अगर कहीं अमन भी सो गया तो पुरवा बिचारी अकेली हो जायेगी। और फिर अगर कहीं वो पगली भी सो गई तो….! नही नही खाने पीने का सामान है, साथ में कुछ कीमती सामान भी है। अगर कहीं कोई चोर उचक्का ले उड़ा तो…! पर चाह कर भी उर्मिला जा नही सकती थी सामान के पास.. बच्चों के पास। वो झल्लाते हुए सलमा से बोली,
"अब देख रही हो सलमा बहन इन यात्रियों का हुजूम। लग रहा है जैसे आज पूरा लखनऊ ही खाली हो जायेगा। सब बंगाल ही चले जायेंगे।"
सलमा बोली,
"हां उर्मिला..! तुम सही कह रही हो। पर इस समय तो कोई जियारत का कोई पाक मौका भी नहीं है। फिर इतने सारे लोग क्यों जा रहे..?"
सलमा की बातों से उर्मिला ने ध्यान दिया इस और कि जाने वाले यात्रियों में दो चार को छोड़ दें तो अधिकतर मर्द टोपी में और औरतें हिजाब में नजर आ रही थीं।
साथ में सभी के ढेर सारा सामान भी नजर आ रहा था। उर्मिला बोली,
"होगा कोई मौका… तभी तो इतने लोग जा रहे हैं।"
सलमा हंस कर बोली,
"तुम भी कैसी बात करती हो उर्मिला…! अब कोई ऐसा मुक्कद्दस मौका होगा तो मुझे नही पता होगा भला…?"
उर्मिला बोली,
"हां सलमा बहन ये तो आप ठीक ही कह रही हो। आपको तो पता ही होता।"
कुछ आधे घंटे बाद कलकत्ता एक्सप्रेस यात्रियों से ठसाठस भरी हुई सीटी बजाती हुई चल दी।
गाड़ी जाते ही स्टेशन खाली हो गया।
फौरन उर्मिला और सलमा जिस जगह सामान रक्खा था, उस तरफ चल पड़ीं।
उनको उम्मीद थी कि सब सो गए होंगे। पर जब वहां पहुंच कर देखा तो पुरवा और अमन बड़े ही अच्छे से बात चीत कर रहे थे।
सलमा बोली,
"वाह.. बच्चों ..! तुम लोग तो जिम्मेदार हो गए हो। मुझे और उर्मिला को ये डर लग रहा था कि कही तुम दोनों भी ना सो गए हो।"
पुरवा बगल हो कर सिमट कर बैठ गई। उसने सलमा और उर्मिला के आराम से बैठने के लिए जगह खाली कर दिया। और बोली,
"नही.. मौसी..! हम तो गाड़ी में ही सो लिए थे। फिर इतनी जल्दी थोड़े ही ना नींद आयेगी।"
सलमा और उर्मिला ने चप्पल उतार कर एक तरफ रक्खी और बिछे चादर पर झोले की टेक लगा कर अधलेटी सी हो गई और आंखें बंद कर आराम करने लगी।
सलमा ने अमन से पूछा,
"अमन ..! कितना बजा है।"
अमन अपने कलाई में बंधी घड़ी को देखते हुए बोला,
"अम्मी..!अभी ग्यारह बजने वाले हैं।"
सलमा बोली,
"अभी समय है। हम थोड़ा आराम कर लेते हैं। तुम ऐसा करो… सवा बारह जब बजे तो हमको बता देना।"
अमन बोला,
"ठीक है अम्मी.. आप निश्चिंत हो कर आराम करिए। हम आपको समय से बता देंगे।"