कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 26 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 26

भाग 26

अशोक और उर्मिला से नमस्कार कर अमन बैठ गया। अब एक बार फिर से पुरवा की पुकार शुरू हुई। इस बार अशोक आवाज दे रहा था।

फिर से भुनभुनाती हुई पुरवा मिठाई की प्लेट और पानी का लोटा ले कर तेज तेज चलती हुई आई। पर अब उसे चलने में कोई परेशानी हो रही थी। अमन के पास मिठाई और पानी रख कर जाने लगी तो अमन की निगाह पुरवा पर पड़ी। फिर तो उसकी साड़ी पहनने का तरीका देख कर अमन की हंसी तेजी से फूट पड़ी। एड़ी से करीब दो बित्ता ऊंची साड़ी और बिलकुल मजदूर औरतों की तरह पल्ला खींच कर लपेटे देख कर। ऐसे साड़ी पहने हुए अमन ने आज तक किसी को भी नही देखा था।

पहले तो पुरवा को समझ नही आया कि वो क्यों हंस रहा है…? पर जब उसे खुद को घूरते देखा तो समझ गई कि वो उसे ही देख कर हंस रहा है। पुरवा ना तो किसी से दबती थी ना किसी से उसे संकोच होता था। खुद पर हंसते हुए देख चिढ़ गई और गुस्से से उबल पड़ी। पर अमन उसके घर में मेहमान था।इस लिए खुद को नियंत्रित किया और भरसक कोशिश कर नरम शब्दों में बोली,

"बड़ी हंसी आ रही है आपको….! पर जब ये पूरी कनात आपको भी लपेटनी पड़े और फिर उसके बाद, दौड़ भाग कर काम भी करना पड़े तब पता चले।"

अमन समझ गया कि उसकी हंसी ने पुरवा को चिढ़ा दिया है। वो माफी मागते हुए बोला,

"वो… मुझे माफ कर दीजिए जी। मेरा वो मतलब नहीं था। बस …! पहली बार किसी को ऐसे साड़ी पहने देखा ना वो इस लिए।"

पुरवा घूरती हुई अंदर चली गई। अब उसे सब के लिए खाना परोसना था।

अंदर पुरवा ने पीढ़ा पानी सब कुछ रख दिया फिर उर्मिला को आवाज की कि वो सब को ले कर अंदर आए।

उर्मिला ने सभी को अंदर चलने को बोला। फिर पहले अशोक अमन और साजिद की थाली परोसी। जब वो खा चुके फिर अपनी ओर सलमा की थाली लगवाई। खाना बेहद स्वादिष्ट था। साजिद अमन और सलमा ने तारीफ कर कर के खाई।

अशोक खा कर उठने लगे तो अपनी आदत के अनुसार उनके मुंह से निकला ’ जय शिव शम्भू’।

उस समय तो अमन कुछ नही बोला। पर फिर बाहर आ कर बैठते ही बोला,

"काका…! आप शिव भक्त हो..?"

अशोक बोले,

"हां..! बेटा..! मेरा रोम रोम दिन रात शिव शिव ही पुकारता है। शिव की भक्ति ही मेरी शक्ति और संबल है।"

अमन ने अशोक से पूछा,

"काका… ! शायद आपने सुना हो मेरे तरफ भी एक बहुत ही मशहूर शिव मंदिर है।"

अशोक ने पूछा कौन सा मंदिर है बेटा..?"

अमन बोला,

"वो काका…! कटास राज का मंदिर है। बड़ी मान्यता है। आप ने भी शायद नाम सुना होगा।"

अशोक बोले,

"हां… बेटा..! सुना तो है। देवी सती के हवन कुंड में सती हो जाने के बाद उनके दुख में भगवान शिव के आंखो से जो आंसू निकाला था उसी से कटास राज के सरोवर का निर्माण हुआ था। ऐसी मान्यता है कि पांडव भी अपने वनवास के समय अज्ञात वास का कुछ समय यहां शिव आराधना करते हुए बताया था। जिससे उनकी कृपा से अज्ञात वास सफलता पूर्वक पूरा हुआ था।"

अब तक वो सभी वापस बाहर आ कर बैठ गए थे।

फिर एक लंबी सांस ले कर बोले,

"पर नसीब वालों को ही उनका दर्शन पूजन बदा होता है। हम तो घर गृहस्ती में ऐसा उलझे हैं कि बस बाबा विश्वनाथ और बाबा बैजनाथ यहीं तक पहुंच पाए हैं।"

साजिद भी अशोक की बात सुन रहे थे। वो बड़े ही प्यार से बोले,

"क्यों भाई… अशोक..! क्यों वहीं तक पहुंच पाए हैं…? आप चलिए वापसी में हमारे साथ। हम आपको बढ़िया दर्शन करवा देंगे। हमारे घर से बहुत दूर नहीं है। यही कोई तीस पैंतीस मिल होगा। बल्कि चोवा सैदान शाह में हमारा एक सेंधा नमक का कारखाना भी है। आप चलिए हमारे साथ मैं आपका दर्शन का इंतजाम करवा दूंगा।"

तभी सलमा और उर्मिला भी अपना खाना समाप्त कर बाहर आ गईं। उर्मिला सलमा को साथ ले कर आस पास घुमाने जा रही थी। साथ जाने की बात आधी ही उसके कानों में पड़ी। उर्मिला बोली,

"कौन कहां जा रहा है… भाई…! हम बोल दे रहे हैं, रात में लिट्टी चोखा खिलाए बगैर हम किसी को भी जाने नही देंगे।"

साजिद बोले,

"अरे…! आप परेशान मत हो, बिना रात का खाना खाए कोई कहीं नहीं जा रहा है। वो मैं तो अशोक से कह रहा था कि वो वापसी में हमारे साथ चले, कटास राज के दर्शन कर आए।"

सलमा बड़े उत्साह से बोली,

"हां.. हां क्यों नही..! आपने बहुत अच्छी बात कही। पर अशोक जी अकेले क्यों चले…? साथ में उर्मिला को भी लिए चले। बार बार थोड़ी जाना हो पाता है। वो भी दर्शन कर लेगी।"

फिर लगभग एक फैसला सा सुनाते हुए बोली,

"बस..अब फैसला हो गया…उर्मिला और अशोक भाई आप दोनो हमारे साथ चल रहे हैं। मैं और कुछ नहीं जानती।"

उर्मिला जाने की बात समाप्त करने की गर्ज से सलमा का हाथ पकड़ कर बाहर बाग की ओर घुमाने चल दी।

पर सलमा का तो सारा ध्यान अब बस उर्मिला को अपने साथ ले जाने पर था। नईहर और उससे जुड़ा हर चीज हर एक लड़की को बहुत प्यारा होता है। फिर उमर चाहे जो भी हो जाए। दूर की वजह से सलमा के ससुराल बिरले ही कोई जाता था। उसका अरमान अधूरा ही रह गया कि कोई नईहर से आता, उसका वो इज्जत, खातिरदारी करती। अब एक आशा जगी थी कि अशोक और उर्मिला उसके साथ चल सकते है। उन्हें अपना घर बार, अपना देश दिखाती। खूब घुमाती फिराती।

उसे बेचैनी थी ये जानने की कि उर्मिला क्या फैसला लेती है जाने को ले कर…! बाग के पास पहुंचते ही सलमा से रहा नही गया वो थमक कर रुक गई और उर्मिला से पूछा,

"तो तुम दोनों चल रहे हो ना… हमारे साथ उर्मिला..! देखो मना मत करना।"

उर्मिला के लिए सलमा का इतना प्यार से, मनुहार से किया गया आग्रह टालना बड़ा मुश्किल काम था। पर उसकी भी कुछ समस्याएं थी, जिन्हें सार्वजनिक नही किया जा सकता था। सलमा का चेहरे पर चिंता की कुछ लाइनें खिंच आई उसके बहुत जतन करने के बाद भी। भरपूर कोशिश कर उन्हें छिपाया और बोली,

"मन तो मेरा भी कर रहा बाबा के दर्शन करने का। पर क्या करें कुछ मजबूरियां है, जवान बेटी, घर, जानवर सब कुछ ऐसे ही छोड़ कर नही जा सकते। फिर पुरवा का ब्याह भी तो करना है। ऐसा करो.. पुरवा के बाऊ जी को लेती जाओ आप।"

क्या सलमा राजी कर पाई उर्मिला और अशोक को अपने साथ ले जाने के लिए…? आखिर क्या वजह थी जो उर्मिला को सलमा के साथ जाने से रोक रही थी…?

जानने के लिए पढ़ें अगला भाग।