कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 5 Neerja Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कटासराज... द साइलेंट विटनेस - 5

भाग 5

आरिफ का निकाह बगल के गांव की नाज नाम की लड़की के साथ तय हुआ था। नाज शमशाद के चचा जाद फूफी नईमा की बेटी थी। रिश्तेदारी की वजह से एक दूसरे के घर आना जाना होता रहता था। इस वजह से नाज और आरिफ एक दूसरे से बखूबी परिचित थे। आपस में बातें करते, खानदान के दूसरे हमउम्र बच्चों के संग घूमते और परिवार के किसी भी जलसे में शामिल होते थे।

पर ये सब कुछ सिलसिला तभी तक कायम था जब तक निकाह तय नहीं हुआ था। तब से बदल गया जब से उनके निकाह की बात उठी दोनो के घरों में। ना इस रिश्ते से आरिफ को कोई एतराज था ना ही नाज को। अगर होता भी तो परवाह किसको थी उनकी मर्जी या रजामंदी जानने की। दोनो के घर वालो ने रिश्ता तय होने के बाद अब पहले की तरह मिलने जुलने पर पाबंदी लगा दी। नाज तो लड़की थी, चुप चाप घर वालों के हुकुम को मान लिया।

पर आरिफ नई उमर का आजाद ख्याल लड़का था। उसके लिए नाज की मर्जी बहुत मायने रखती थी। बिना उसकी रजामंदी के उसे निकाह कुबूल नही था। पर वो कैसे नाज़ के मन की बात जाने…? कैसे उससे मिले…? कैसे उससे पूछे…? कोई तरकीब उसे नही सूझ रही थी। दो दिनों तक आरिफ परेशान कोई जुगत लगाने की तरकीब सोचता रहा। पर कुछ समझ नही आ रहा था।

दोपहर का खाना खा कर वही सहन में पड़े दीवान पर लेट गया। लेटे हुए कब उसे नींद आ गई पता भी नही चला। वह सो गया। वो गहरी नींद में था। तभी कुछ बात चीत की आवाज उसके कानों में पड़ी। फिर जब वो आवाजें लगातार आती रहीं तो उसकी नींद उचट गई। लेटे लेटे ही धीरे से आंखे खोल कर देखा तो अम्मी जान की पड़ोसन जमुना अपनी बेटी उर्मिला और नातिन पुरवा के संग मिलने आई हुई थी। जमुना उनकी पक्की सहेली और पड़ोसन थी। उर्मिला और नईमा साथ खेल कर बड़ी हुई थीं। दोनों की खूब जमती थी बचपन से ही। बिना एक दूसरे के उन्हें चैन नहीं आता था। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता था, जब वो दोनों नही मिलती हो। कभी उर्मिला नईमा के घर आ जाती तो कभी नईमा उर्मिला के घर चली जाती। दोनों साथ में सर जोड़ कर खूब गप्पे लड़ाती, खेतों पर घूमने निकल जाती। उर्मिला की शादी जब पास के गांव ’सिधौली’ में तय हो गई तो नईमा बहुत खुश थी। वो उर्मिला से बोली,

"उर्मिला…!"

उर्मिला जो इस तरह अचानक शादी तय हो जाने से और घर वालों से बिछड़ने की सोच कर दुखी थी। खास कर माई से। वो अभी कुल तेरह बरस की ही तो थी। अभी भी जब तक माई से सट कर नही लेटती नींद नहीं आती थी उसे। उर्मिला अपनी दादी को अपने पिताजी का सुन कर माई ही कह कर बुलाती थी। वो धीरे से बोली,

"हूं…।"

नईमा बोली,

"चलो ये तो अच्छा है मेरी सहेली पास में ही रहेगी।

चच्चा ने तेरा बियाह कहीं दूर देश नही तय किया। वरना मैं तो मर ही जाती।"

उर्मिला ने बड़ी ही व्याकुलता से नईमा की ओर देखा। उसकी बड़ी बड़ी आंखे आंसुओ से डबडबाई हुई थी। उसे छुपाने की असफल कोशिश करते हुए वो बोली,

"नईमा …! पर फिर भी हमें अलग तो होना ही पड़ेगा। फिर मेरे ससुराल वाले जब मुझे विदा करेंगे तभी तो मै आ पाऊंगी।"

उर्मिला की बातों में दम था। इस बारे में तो नईमा ने सोचा ही नहीं था। अब उर्मिला की बातें सोच कर नईमा परेशान हो गई। अब उसका और उर्मिला का जोड़ा बिछड़ जायेगा।

जब कुछ उपाय नहीं सूझा तो नईमा उर्मिला से लिपट कर रोने लगी।

अब उर्मिला बोली,

"देख.. नईमा..! अब जब तक मैं हूं, तू हरदम मेरे साथ रहेगी। वादा कर तू.. मेरे विदा होने तक हमेशा मेरे साथ रहेगी।"

नईमा .. उर्मिला के बढ़े हाथों पर अपना हाथ रखते हुए बोली,

"वादा है नईमा…! अब तेरी विदाई तक मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी। चाहे घर वाले बिगड़ेंगे मुझे तब भी। तुम देखना।"

फिर दोनो अपने अपने घर वापस आ गई।

इसके बाद कुछ दिनों बाद उर्मिला की शादी कि रस्में शुरू हो गई।

हर रस्म में नईमा बिलकुल साए की तरह उसके साथ थी। नाचने गाने में देर हो जाने पर वो रात को भी उर्मिला के पास ही सो जाती। नईमा के घर वाले उसकी हालत समझ रहे थे। उन्हें पता था कि नईमा के लिए उर्मिला से अलग होना बहुत तकलीफ देह है। इस कारण घर वाले भी नईमा को कुछ नही कहते। चंद दिनों का साथ है दोनो सहेलियों का। फिर तो अलग ही ही जायेगी। ठीक है जब तक उर्मिला है नईमा उसके साथ रह ले।

तय दिन पर खूब धूमधाम के साथ बारात आई। नईमा बहन और सहेली दोनों का किरदार बखूबी निभा रही थी। वो इमली घुटाई से ले कर फेरे, परिछन तक सभी रस्म में उर्मिला का साया बन के साथ साथ थी। फेरों के बाद दूल्हे को उठ कर कोहबर में जाना था। यही समय होता है जूते चुराने का। फिर पूरे होते होते.. औरतों, सुन गुन करने लगी कि जूता कौन चुराएगा…? उर्मिला के कोई छोटी बहन तो है ही नही।

जूते चुराई की रस्म निभाने के लिए उर्मिला की कोई छोटी बहन नही थी। इस कारण उर्मिला की मां बड़े प्यार से नईमा को देख कर बोली,

"बहन कैसे नही है..? है ना…! नईमा उर्मिला की बहन सहेली दोनों ही है। नईमा बिटिया चुराएगी मेहमान के जूते। इतना सारा दहेज दिया है हमने। हर रस्म में बढ़ा चढ़ा कर नेग दिया है सबको। अब क्या एक रस्म में भी नेग नही देगें मेरी बेटी को।"

फिर उर्मिला की मां ने नईमा को कंधे से धकेलते हुए आगे किया और बोली,

"जा…. नईमा…! चुपके से जूते उठा ले। उन्हें पता नही चलना चाहिए।"

उर्मिला के कोई बहन नही थी इसलिए दुलहा और उसके भाई, दोस्त आश्वस्त थे कि जूते नही चुराए जायेंगे। फिर भी दूल्हा अशोक ने अपने एक दोस्त को निगरानी पर लगाया हुआ था।

इत्तिफाकन जिस समय उर्मिला की मां ने नईमा को जूते चुराने भेजा। उसी वक्त अशोक का दोस्त लघुशंका के लिए गया। जाना मजबूरी थी।

वो जल्दी से गया और जल्दी से निपट कर वापस आया। उसे कोई डर नही था जूते चोरी होने का।

क्या जब अशोक का दोस्त लौट कर आया तो जूते सही सलामत थे। क्या अशोक के जूते नईमा चुरा पाई….? क्या अशोक नेग बचा ले गया…? जानने के लिए पढ़े अगला भाग।