समय छुटता साथ Rishabh Narayan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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समय छुटता साथ

समय "छुटता साथ"

आज मैं और मेरी पत्नी की शादी कि 43वीं सालगिरह है और हमारा परिवार साथ में है। हमारे परिवार में हमारी बेटी नीरंजना और हमारा जंवाई नीरज और इन दोनों का बेटा मारुति जो अभी 10 साल का है और इसकी छोटी बहन तारा है ,यह सब वैसे तो मुम्बई में रहते हैं इस प्रोग्राम के लिए यहां आए है और हमारा बेटा भी है जिसका नाम विवेक है उसकी पत्नी छाया इनकी बेटी हैं जिसका नाम पायल है जो अभी 5 साल की है जो‌ अपनी दादी को बहुत पसंद करती हैं, हमारा बेटा बहू और पोती भी दिल्ली रहते हैं और अब मेरी पत्नी ऋतुंजया जो बहुत खूबसूरत है, जिदंगी हैं मेरी उसको जब-जब देखता हूं उसमें मुझे साहस, महत्त्वकांक्षी और जिद्द व्यक्ति दिखता है जिसको हारना पसंद है पर पिछे हटना नहीं और इस परिवार का सदस्य मैं। यह है हमारा परिवार जिसने आज 43वी सालगिरह की तैयारी करी है मेरी पत्नी और मेरे लिए हमारे बच्चे हमसे बहुत प्यार करते हैं और एक वजह यह भी हो सकती दो बार दिल का दोहरा मुझे आ गया है, पर वजह कोई भी हो मैं खुश हूं मेरा परिवार साथ में है और मेरी पत्नी ऋतुंजया जो कभी-कभी अकेला महसूस करती थी बच्चो को याद करती थी वो बहुत खुश हैं जब से बच्चे आए हैं चेहरे में उनके चमक है खुशी हैं बहुत समय के बाद देखी उनके चेहरे में यह नूर, ऋतुंजया भी मेरे जैसे बूढ़े को संभालते संभालते परेशान हो जाती होगी अब बूढ़ापा उच्च सीमा पर चल रहा है मेरी उम्र 72 हैं और मेरी पत्नी ऋतुंजया की उम्र खैर-छोड़ो वो तो मुझे अभी भी 20 साल की लगती है बस बाल सफेद हो गये है बाकी उसकी काली आंखें सागर जैसी उसके लम्बे बाल चेहरा वैसा ही फूलों जैसा कोमल खूबसूरत।

प्रोग्राम की शुरुआत होने वाली है बस कुछ पडोसी मेहमानों के स्वागत का इंतजार कर रहे हैं कुछ आ गये हैं कुछ बचे हैं(मेरे दोस्त नानूराम, मन्नूलाल, धीरुवा, सौरभ, हितेश भाईया और गून्नलाल) काफी इंतजार करवा दिया इन्होंने। यह लोगो के साथ आनंद और बड़ जाता है, शायद दारू पार्टी का इंतेजाम कर रहे हुगें वैसे आज मन मेरा भी कर रहा है मौसम भी आज ठंडा है वैसे भीमताल का मौसम ठंडा ही रहता है। पता नहीं कहां इतना समय लगा दिया इन्होंने? यह सब मेरे भाई हैं पर हमारा रिश्ता दोस्ती वाला है।

मम्मी जी आईए पापा जी आप भी आइए जल्दी.....पापा जल्दी आइए मम्मी आ गई है कैक काटने...अच्छा जी बेटी नीरंजना आ रहा हूं....मेरी ऋतुंजया ने गुलाबी रंग की साड़ी जिसमें गोल्डन और काला रंग का बोडर हैं और काला रंग का बिलाऊज पहना है हाथो में सोने की चिड़िया और कानों में नग लगे झूमके और गले में सोने का लोकिट पहना है जो मैंने उसको दिया था पांच साल पहले उसके नये बूटिक कि खुशी में, वो आज बहुत सुंदर लग रही है उसका सादगी भरा अस्तित्व उसके चेहरे में नूर उसकी लम्बी नाक उसकी गोल ठुड्ढी फूलों जैसी कोमल लग रही है। अरे...नीरंजना जंवाई जी कहा है? मम्मी जी वो खाने की व्यवस्था देख रहे हैं आते हुगें... और विवेक कहा है वो दिख नहीं रहा है? पापा वो शायद ऊपर वाले कमरे में है शायद दोपहर वाली बात से नाराज़ हैं, यह सुनकर दुःख हुआ जो अभी तक खुशी थी वो गम में परिवर्तित हो गई, ऋतुंजया भी मुझसे नाराज़ हैं उसकी नजरें बता रही हैं। विवेक मुझे और अपनी मां को दिल्ली अपने साथ ले जाना चाहता है परन्तु इस घर को बैचकर नया बड़ा घर लेना चाहते हैं, पर मैं इससे सहमत नहीं हूं मैं इस घर को नहीं बेचूंगा क्योंकि इस घर में बहुत यादे है मेरे माता-पिता जी ने यह घर बनाया था और ऋतुंजया शादी के बाद इसी घर में सबसे पहले आई, नीरंजना का बचपन इधर ही बीता है अपने दादा-दादी के साथ, यह सिर्फ घर नहीं मेरे लिए यादों का महेल हैं जिसको मैं खोना नहीं चाहता। दिल बोलता है क्या में गलत कर रहा हूं? ऋतुंजया यहां अकेला महसूस करती है अपने बच्चों को याद करती रहती हैं अपनी पोती के साथ खेलने को तरसती है, मैं स्वार्थी तो नहीं हो रहा हूं घर को लेकर?

चलिए अब कैक काटते हैं मम्मी पापा विवेक भी आ गया है, नीरंजना की आवाज सुनकर मैं अपने सोच-विचार से बहार निकला... और. यह सुनकर मेरे दिल में खुशी छाई और मेरी पत्नी और मैंने कैक काटा, गाना गाया सबने हम दोनों को बधाईयां दी माहोल अच्छा बना है नाच-गाना शुरू हो गया है। एक आवाज आती है प्रो.सहाब बधाईयां शादी की सालगिरह पर वो मेरे हितेश भाईसाहब और साथ में नानूराम की आवाज थी। कहा थे, और साथी कहा है? प्रो.सहाब वो दारू का इंतेजाम कर रहे थे हम, आपके पिछे वाले कमरे में आपका इंतजार कर रहे हैं सब व्यवस्था हो गई है, बस आपका इंतजार है और आप बस ऋतुंजया भाभी को संभाल लेना पीछले बार उनको पता चला था पार्टी के बारे में उन्होंने बहुत गुस्सा किया था और 1 महीने तक घर में आने भी नहीं दिया था यह बात बोल के नानूराम ने जोर से ठहाके मारकर हंसा हां... हां...हा...हां, अब मैं उसको क्या जवाब दूं? यह सोचकर मैं हंस रहा हूं। हितेश भाईसाहब और नानूराम आप अपनी पार्टी शुरू किजीए मैं बच्चों का नाच-गाना देखकर आता हूं थोड़ी देर बाद।

मैं एक खाली कुर्सी में बैठकर प्रोग्राम देखने लग गया ऋतुंजया नाच रही हैं और साथ में तारा भी, अच्छा आनंद आ रहा है सबके चेहरों में खुशी है, पर..? विवेक का चेहरा वैसा नहीं लग रहा, वैसे बात विवेक की भी सही है यादे अपने लोग साथ हो तब बनती हैं वो घर ही क्या जहां खामोशी हो। परंतु मेरा दिल नहीं मान रहा है यह बात... ओहो... मुझे ऋतुंजया धूधली दिख रही है छाती में तेज दर्द उठ रहा है मैं जमीन पर गिर पड़ा मैं बेहोश हो रहा हूं...............................................


एसा लग रहा है मेरा हाथ फूलों से लीपटा है कोमल खूबसूरत एहसास हो रहा है, मेरी आंखें खुल रही है मेरे दाएं ओर मेरी पत्नी मेरा हाथ पकड़ा है उसकी आंखें नम हैं उसकी आंखों में अब नाराज़गी नहीं है मेरे लिए उसके होंठ सुखे है वो उदास है उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ा है वो मुझे कहीं नहीं जाने देना चाहती उसकी आंखों में अभी भी बहुत बातें हैं पर अब मैं सून नहीं पाऊंगा, मैं हास्पिटल में हूं मेरा बेटा विवेक की आंखों में भी डर है मुझे खोने का, मैंने पैन का इशारा किया और घर के कागज मंगवाएं मैंने घर बैचने वाले कागज में हस्ताक्षर किए।

मैं अपने साथ अपनी सारी यादें ले जा रहा हूं, अब वो घर नहीं सिर्फ मकान रहे गया है, मेरी ऋतुंजया अपने बेटे-बहू और पोती के साथ खुश रहेगी, अब उसको ना अकेलापन महसूस होगा ना उदास होगी, और मैं उसके साथ हमेशा रहूंगा।
अब गैहरी नींद में सोने का समय आ गया है- अलविदा।।

- लेखक: ऋषभ नारायण