Manav Dharm - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

मानव धर्म - 2

संपादकीय


मनुष्य जीवन तो सभी जी रहे हैं। जन्मे, पढ़ाई की नौकरी की, शादी की, पिता बने, दादा बने और फिर अरथी उठ गई। जीवन का क्या यही क्रम होगा? इस प्रकार जीवन जीने का अर्थ क्या है? जन्म क्यों लेना पड़ता है? जीवन में क्या प्राप्त करना है? मनुष्य देह की प्राप्ति हुई इसलिए खुद मानव धर्म में होना चाहिए। मानवता सहित होना चाहिए, तभी जीवन धन्य हुआ कहलाए।

मानवता की परिभाषा खुद पर से ही तय करनी है। ‘यदि मुझे कोई दुःख दे तो मुझे अच्छा नहीं लगता है, इसलिए मुझे किसी को दुःख नहीं देना चाहिए।’ यह सिद्धांत जीवन के प्रत्येक व्यवहार में जिसे फ़िट (क्रियाकारी) हो गया, उसमें पूरी मानवता आ गई।

मनुष्य जन्म तो चार गतियों का जंक्शन, केन्द्रस्थान है। वहाँ से चारों गतियों में जाने की छूट है। किन्तु, जैसे कारणों का सेवन किया हो, उस गति में जाना पड़ता है। मानव धर्म में रहें तो फिर से मनुष्य जन्म देखोगे और मानव धर्म से विचलित हो गए तो जानवर का जन्म पाओगे। मानव धर्म से भी आगे, सुपर ह्युमन (दैवी गुणवाला मनुष्य) के धर्म में आए और सारा जीवन परोपकार हेतु गुजारा तो देवगति में जन्म होता है। मनुष्य जीवन में यदि आत्मज्ञानी के पास से आत्म धर्म प्राप्त कर ले, तो अंततः मोक्षगति परमपद प्राप्त कर सकते हो।

परम पूज्य दादाश्री ने तो, मनुष्य अपने मानव धर्म में प्रगति करे ऐसी सुंदर समझ सत्संग द्वारा प्राप्त कराई है। वह सभी प्रस्तुत संकलन में अंकित हुई है। वह समझ आजकल के बच्चों और युवकों तक पहुँचे तो जीवन के प्रारंभ से ही वे मानव धर्म में आ जाएँ, तो इस मनुष्य जन्म को सार्थक करके धन्य बन जाएँ, वही अभ्यर्थना। — डॉ. नीरूबहन अमीन



 

अन्य रसप्रद विकल्प