खाली हाथ - भाग 8 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खाली हाथ - भाग 8

धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा। अरुण अपने माता-पिता से मिलने हर दूसरे दिन वृद्धाश्रम जाता रहा। हमेशा कुछ ना कुछ लेकर वह वहाँ पहुँच ही जाता था। अर्पिता की प्रेगनेंसी के दौरान तबीयत खराब रहने लगी। उसकी देख भाल करने के लिए अब घर में किसी का होना बहुत ज़रूरी था। अरुण को हमेशा शहर से बाहर टूर पर जाना होता था।

एक दिन अर्पिता ने अपनी मम्मी को फ़ोन लगाया, "हेलो मम्मी"

"हेलो, हाँ बोलो अर्पिता।"

"मम्मी डॉक्टर ने कहा है मुझे ज़्यादा से ज़्यादा आराम करना चाहिए। क्या आप...?"

"नहीं अर्पिता, यहाँ तुम्हारी भाभी निधि भी तो प्रेगनेंट है। मैं उसे छोड़ कर कैसे आ सकती हूँ। इस समय मेरा उसके पास रहना बहुत ज़रूरी है। वैसे भी यदि मैं वहाँ आ गई तो उसका मतलब तो यही होगा ना कि तुम्हारी इतनी बड़ी गलतीके बाद भी मैं तुम्हारा साथ दे रही हूँ। तुम नताशा जी को वापस क्यों नहीं बुला लेतीं? अब समझ आ रहा है तुम्हें, बड़े बुजुर्गों का साथ कितना मीठा और कितना ज़रूरी होता है। काश तुम ने उनके साथ अच्छा व्यवहार किया होता तो आज तुम्हें मुझे इस तरह नहीं बुलाना पड़ता।"

यह अर्पिता के मुँह पर पड़ा ऐसा तमाचा था जिसका घाव उसे अंदर तक छलनी कर गया।

"वह कितनी अच्छी हैं, मैं जानती हूँ। तुमने तो अरुण का भी दिल तोड़ दिया और उसे उसके ही माँ-बाप से अलग कर दिया। अब भी तुम्हारे दिल में परिवर्तन आया हो, यदि तुम अपने किए पर शर्मिंदा हो तो जाओ और माफी माँग कर अपने सास-ससुर को वापस लेकर आओ। मैं यदि वहाँ आऊंगी तो इसका मतलब यह होगा कि मैंने अपनी बेटी के कारण ऐसे समय में बहू को अकेला छोड़ दिया। मैं नहीं आ पाऊंगी अर्पिता।"

"पर मम्मा," वह कुछ और बोले इससे पहले शीला ने फ़ोन काट दिया।

अर्पिता की आँखों में अपनी माँ का ऐसा जवाब सुनकर आँसू आ गए क्योंकि उसने कभी भी ऐसी तो कल्पना ही नहीं की थी। आज उसे नताशा बहुत याद आ रही थी। कितना ख़्याल रखती थी वह उसका। आज अर्पिता को अपनी गलती का एहसास होने के साथ ही साथ बड़े बुजुर्गों की घर में उपस्थिति की अहमियत भी पता चल रही थी।
उधर नताशा और सूरज अपने मित्र मंडल के साथ बहुत ख़ुश थे। धीरे-धीरे उन्हें अपने घर की याद आना कम होते जा रहा था।

अरुण शाम को ऑफिस से आया, तब उसने अर्पिता से पूछा, "अर्पिता तुम्हारी मम्मी को फ़ोन किया क्या? कब आ रही हैं वह?"

अर्पिता का चेहरा उतर गया।

"क्या हुआ अर्पिता बोलती क्यों नहीं?"

"अरुण, भाभी भी प्रेगनेंट हैं ना इसलिए मम्मी नहीं आ पाएंगी। उन्होंने कहा ऐसे समय में उनका वहाँ रहना बहुत ज़रूरी है और..."

"और क्या? और क्या कहा उन्होंने?"

"उन्होंने कहा नताशा जी से माफी माँग कर उन्हें वापस लेकर आओ। जो गलती कर चुकी हो उसे सुधारो।"

अरुण ने कहा, "वाह-वाह-वाह-वाह, आज मेरी माँ की ज़रूरत आन पड़ी है, अपने स्वार्थ के लिए ही ना अर्पिता? स्वार्थ पूर्ति होने के बाद फिर क्या करोगी? फिर उन्हें मजबूर कर दोगी कि वह, उनका ही यह घर छोड़ कर चली जाएँ?"

"अरुण प्लीज, प्लीज मुझे माफ़ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है लेकिन अब मैं पछता रही हूँ।"

"लेकिन अर्पिता किस मुँह से मैं माँ-पापा को लेने जाऊँ। यह कहकर कि अर्पिता प्रेगनेंट है और हमें आपकी ज़रूरत है? यह मुझसे नहीं होगा अर्पिता। मैंने तो सोचा था हमारा छोटा-सा परिवार है। सुख शांति से रहेंगे लेकिन तुमसे वह हो ना पाया।"

इतना कहकर अरुण शांत होकर बैठ गया और कुछ सोचने लगा।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः