खाली हाथ - भाग 5 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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खाली हाथ - भाग 5

वृद्धाश्रम के हंसी ख़ुशी के माहौल को देखकर नताशा ख़ुश थी, यह देखकर सूरज ने पूछा, "क्या कहती हो नताशा, तो छोड़ दें उस घर को?"

"हाँ लेकिन अरुण नहीं मानेगा, उसके लिए हमारा यह फ़ैसला बहुत ही दुःख दायी होगा। मैं उसके सामने यह कभी नहीं कह पाऊंगी," नताशा ने दुःखी होते हुए कहा।

"मैं जानता हूँ नताशा जब वह टूर पर जाएगा हम तब शिफ्ट होंगे और जब वह हमसे मिलने आएगा तब मैं उसे समझाऊंगा कि इसी में हम सब की भलाई है।"

"हाँ तुम ठीक कह रहे हो, इसी में हम सब की भलाई है," कहते हुए नताशा की आँखों में आँसू छलक आए। जिन्हें वह काफ़ी समय से अंदर रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह माने ही नहीं।

सूरज ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा, "रो मत नताशा, शायद हमारे भाग्य में यही लिखा है। इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। मैं तो हर वक़्त घर पर ही था। मैं सब जानता हूँ तुमने कितनी कोशिश की है। खैर छोड़ो, रोना बंद करो और हिम्मत से काम लो।"

अगले हफ्ते लगभग चार-पांच दिनों के बाद शुक्रवार के दिन अरुण अपने टूर पर जा रहा था। तब नताशा उसके पास गई और उससे पूछा, "अरुण बेटा कब वापस आएगा?"

"माँ पांच दिन का टूर है, क्यों माँ क्या हो गया? आप उदास लग रही हो, क्या बात है बताओ? तबीयत तो ठीक है ना?"

"हाँ बेटा ठीक है, बस मन थोड़ा भारी हो रहा था।"

अरुण ने पूछा, "माँ टूर कैंसिल कर दूं क्या?"

"कैंसिल करने की ज़रूरत नहीं है, मैं ठीक हूँ।"

"पर मुझे आपकी चिंता लगी रहेगी," कहते हुए अरुण ने उन्हें सीने से लगा लिया।

तब तक सूरज भी वहाँ आ गए और वह भी बिना कुछ कहे अरुण के गले लग गये। अर्पिता यह दृश्य देख रही थी और मन ही मन सोच रही थी वाह बड़ा प्यार लुटाया जा रहा है एक दूसरे पर। सोचते हुए वह वापस रसोई में चली गई। उसके बाद अरुण अपने टूर पर चला गया।

नताशा ने अरुण के जाने के बाद दो सूटकेस निकाले और दोनों के कपड़े और कुछ ज़रूरी सामान रखना शुरु कर दिया। अर्पिता ने यह देख लिया लेकिन कुछ पूछ ना सकी। नताशा ने पूरी तैयारी कर ली। उसके बाद वह घर के हर कमरे को जाकर देख रही थी, जहाँ उसने अपना पूरा जीवन बिताया था। सुख-दुख सब कुछ इन्हीं चार दीवारों के अंदर महसूस किया था। आज उसी चारदीवारी को छोड़ते समय हर कमरे के अंदर उसके आँसू टपक कर गिर रहे थे। पूरा जीवन ही कुछ पलों में उसकी आँखों में दृष्टिगोचर हो गया था। उसके बाद वे अर्पिता से मिले बिना, कुछ भी कहे बिना, जब वह स्नान करने गई थी, घर से निकल गए। घर की तरफ़ देखकर दोनों ने अंतिम प्रणाम किया।

तभी सूरज ने नताशा के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "नताशा अब चलो भी, मोह माया जितनी भी इस घर से है अब तुम्हें छोड़ना होगा। अब हमारा एक नया ठिकाना है चलो," इतना कहते हुए सूरज ने नताशा का हाथ पकड़ा और अपने घर को आख़िरी बार देखते हुए निकल गए।

वृद्धाश्रम पहुँचते से सब ने उनका स्वागत किया। सब उनके पास आकर अपना परिचय दे रहे थे। सब ने उनका नाम पूछा, क्या करते थे, यह भी पूछा किंतु यहाँ क्यों और कैसे आए किसी ने नहीं पूछा। किसी ने भी उनके घावों को कुरेदने की कोशिश नहीं की।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः