टूबीएचके के शिकंजे में फंसी जिन्दगी Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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टूबीएचके के शिकंजे में फंसी जिन्दगी

 

व्यंग्य

टूबीएचके के शिकंजे  में फंसी जिन्दगी

यशवंत कोठारी

जिंदगी का सफ़र आज कल टू बीएचके के मकड़ जाल में फंस कर रह गया है ,जिसे देखो वही इस अंधी दौड़ में शामिल है ,ये कोई नहीं सोचता की इस अंधी दौड़ के अंत में एक अँधा कुआँ है और यह रास्ता कहीं नहीं जाता .विकास और प्रगति की अंधी दौड़ ने आँखों पर एक ऐसा काला चश्मा लगा दिया है की कुछ सूझता ही नहीं .बिल्डरों ने हर तरफ से घेर रखा है ऐसे ऐसे सब्ज बाग दिखाते हैं की पूछों मत . नयी पीढ़ी सोचती है एक बार यह फ्लैट हाथ आ जाये बस  एवरेस्ट फतह हुआ ही समझो.इएमआई के क्या कहने ऐसा लगता है जैसे एक बार ही देनी है और उस से पहले डाउन पेमेंट और उस के पहले बैंक में राशी जमा कराना भी जरूरी .फ्लैट की चाहत ने फ्लेट कर रखा है .दूर से देखने पर फ्लैट की टावर  एक माचिस की डिब्बी की तरह लगता है , पास से देखने पर कबूतर खाना  लेकिन इस फ्लैट की चाहत  ने जिन्दगी को मजबूर व मजदूर  कर दिया  है , नयी  पीढ़ी सोचती है गाँव की जमीन में हिस्सा पांति हो तो शहर में फ्लैट ले लूँ ,बापू सोचता है की बुढ़ापे की इस  एक मात्र लाठी को कैसे बेच दूँ ?

पुराणी पीढ़ी के बाबु नुमा लोगों ने नयी पीढ़ी के बहकावे में आकर अपना कसबे का बंगला ,थाली लोटा बेच दिया और नयी पीढ़ी के पास महानगर में चले गए ,वहां किसी के पास किसी के लिए टाइम नहीं है वीक एंड तो वर्क डेज से भी  ज्यादा बिजी .लॉन्ग वीक एंड आ जाये तो दो चार सो मील घूम आते हैं बस .

फ्लैट में एक बालकोनी नुमा खिड़की या खिड़की नुमा  बालकोनी होती है जिस में से एक बार में एक ही सदस्य मुंडी बाहर निकाल सकता है .चार सौ –पांच सौ फीट का फ्लैट सुपर बिल्ट एरिया अलग, कार्पेरट एरिया अलग,पार्किंग ,अलग क्लब अलग बस सब के  सब मिला कर मासिक क़िस्त बनती हैं  जो सब से ज्यादा .बच्चों के लिए खेलने -कूदने ,साइकल चलाने या बूढों के घूमने- फिरने  के लिए कोई जगह नहीं होती  परसनल स्पेस के अलावा आप का कोई हक़ नहीं .बिल्डर जो  सब्ज बाग दिखाता है वो जल्दी ही ख़तम हो जाते हैं,वेल फेयर एसोसिएशन जल्दी ही राजनीति के दलदल में फंस जाती है बंदा  करे  तो क्या करें, कहाँ जाये?  हर माह इ एम आई  व् मेंटिनेंस क़िस्त का तगड़ा झटका ,यों लगता है जैसे जिन्दगी बेंक में गिरवी रख दी हों .हर  शहर में लम्बी ऊँची  टावर्स स्वर्ग जैसी सुविधा देने के वादे और बिल्डर ,अफसर व  सरकार के गठजोड़ में कोई न कोई बंदा रोज़ फंसता है  अनधिकृत निर्माण टूटते हैं लेकिन बिल्डर का कुछ नहीं बिगड़ता ,अफसरों का कुछ नहीं बिगड़ता ,गरीब ग्राहक के सपनों का अधूरा ताजमहल टूट जाता है सपने चूर चूर हो जाते हैं.कई लोग उजड़ जाते हैं .

 .घर पर सुबह कामवाली,बर्तन वाली ,खाना बनाने वाली ,सेकुरिटी गार्ड, ड्राईवर, केयर टेकर के अलावा किसी के दर्शन नहीं होते ,किसी से बात करने की कोशिश में भागती दोड़ती,अस्त, व्यस्त जिन्दगी में किसी के पास किसी के लिए हाय ,बाय के अलावा समय नहीं है . पहले मोहल्ले कालोनियां क्षितिज़ाकार होती थी,सब को दिखती थी  अब वर्टिकल टावर  होती है किसी को कुछ नहीं दीखता ,फ्लैट का मैन गेट खुला  रखना असभ्यता है , बड़ी टाउन शिप में सुबह शाम कुछ बूढ़े बुढियां एक कोने में बैठ कर बतियाँ लेते हैं या भजन - कीर्तन कर लेते हैं ,सुबह घर पर आरती गाने से नए लोगों की नींद में खलल पड़ता है,बेबी की पढाई में विघ्न होता है .पेट नाराज़ हो सकता है. पु रानी  पीढ़ी घर बेच कर  फ्लैट में आई लेकिन सुकून यहाँ  पर  नहीं मिल  रहा है .बड़ी अजीब हालत है बंगले वाला फ्लैट में रहना चाहता है ,और फ्लैट वाला जमीन वाले मकान नुमा घर की तलाश में भटक रहा हैं .कहीं शांति नहीं .

पड़ोसी पड़ोसी को नहीं पहचानता आप मिलने की कोशिश करो तो ठंडा व्यवहार. होली दीवाली पर  भी कोमन स्पेस में कोई मेला देख लो वहीँ खा पी लो या पी खा लो  बस एक उधार की जिन्दगी हो गयी है फ्लैट संस्कृति .

 

 

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यशवंत कोठारी, 701,SB -5 , भवानी सिंह रोड बापू नगर  जयपुर-302015 ,MO-9414461207