अग्निजा - 141 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 141

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-141

अगले दिन सुबह साढ़े पांच बजे अलार्म बजा और केतकी की नींद खुल गयी। उसने भावना को धीरे से हिलाया ‘उठो...जल्दी से ...आधे घंटे में तैयार हो जाओ...’

‘अरे, ग्रूमिंग तो खत्म हो गयी न...सोने दो...’ केतकी ने भावना की चादर खींच ली, लाइट जलाए और पंखा चालू करके वह बोली, ‘योर टाइम स्टार्ट्स नाउ...’

भावना उठ बैठी, लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। पैंतीस मिनट में तैयार होकर आयी तो डायनिंग टेबल पर उसकी चाय का कप तैयार था और केतकी अपने सिर पर नोटबुक रखकर हाईहील्स पहनकर चल रही थी। वह सब कुछ एंजॉय कर रही थी। उसके बाद केतकी ने ग्रूमिंग के दौरान सीखी हुई सभी बातें करके दिखाईं। करीब करीब दो घंटे तक यह सब चलते रहा। भावना उसकी तरफ देख रही थी। केतकी थककर सोफे पर बैठ गयी। उसने रुमाल से अपना चेहरा पोंछा। भावना ने खुद को चिकोटी काटकर देखा, ये सब सपना तो नहीं? वह झूठमूठ नाराज होते हुए बोली, ‘तुम्हें इतना बुखार चढ़ा है, फिर भी मुझे जगाया नहीं? ’ केतकी को हंसी आ गयी, ‘मुझे तो बुखार नहीं आया है लेकिन तुम बकबक बंद करो।’

‘कैसे बंद करूं? अब तक तुम्हें आलस आता था ये सब करने में। मुझ पर गुस्सा करती थी। अब तुम्हारे भीतर इतना उत्साह कहां से आ गया?’

‘तुम्हारी मेहनत सफल होनी चाहिए या नहीं? प्रसन्न ने भरोसा जताया है तो मुझे भी तो मेहनत करनी होगी न उसके लिए?’

भावना ने बीच में ही कहा, ‘अच्छा, यानी प्रसन्न भाई के लिए चल रहा है ये रिवीजन...बहुत अच्छे।’

केतकी ने उत्तर दिया, ‘अरे कीर्ति सर, उपाध्याय मैडम की भावनाएं, उनके आशीर्वाद का अपमान कैसे किया जा सकता है? अब नतीजा चाहे जो हो, मैं तो पूरी तैयारी के साथ प्रतियोगिता में उतरने वाली हूं। फिर उसमें कोई मैडल मिले न मिले, कोई फर्क नहीं पड़ता।’

‘अरे मिलेगा ही। हमारे प्रसन्न भाई को तो पूरा भरोसा है।कहा था न उसने एक बार कि कोई पुरस्कार नहीं मिला तो वह अपना संगीत हमेशा के लिए छोड़ देंगे?’

‘हां...उसे संगीत न छोड़ना पड़े इसीलिए पूरी तैयार के साथ प्रतियोगिता में उतरना होगा।’ भावना केतकी की तरफ देखती रही। चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए गाने लगी...क्या करूं हाय...कुछ कुछ होता है...

केतकी ने गुस्सा होने का नाटक करते हुए कहा, ‘तुम्हें कुछ कुछ होता है, इसका मतलब है भूख लगी होगी...पोहे बनाऊँ?’

केतकी सुबह-शाम प्रैक्टिस के लिए जाने लगी। देर तक नेट पर अब तक हुई ब्यूटी क्वीन्स की जानकारियां इकट्ठा करने लगी। सामान्य ज्ञान बढ़ाने की कोशिश करने लगी। एक रात को सोने से पहले मेल चेक करते समय ब्यूटी पेजेन्ट के आयोजकों का मेल दिखायी दिया।‘पहला राउंड दिल्ली के एक फाइव स्टार होटल में पांच दिन चलेगा। दो दिनों की ग्रूमिंग और फिर अगले राउंड का सिलेक्शन।’ केतकी ने उत्साहित होकर भावना को नींद से जगाया।। ‘भावना... ये देखो...’ भावना ने नींद में ही वह मेल पढ़ा। लेकिन उसे मेल से भी अधिक केतकी के चेहरे का उत्साह देखकर आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई। आज तक किसी भी बात के लिए उसे उसने इतना उत्साहित नहीं देखा था। जैसे ही भावना बाथरूम में गयी, केतकी ने प्रसन्न को मैसेज करके यह खबर दे दी। भावना जब बिस्तर पर आयी, उसी समय प्रसन्न का जवाब आया, ‘शुभेच्छा नहीं देता, एडवांस में बधाई दे देता हू। एक नयी केतकी का जन्म देखना मुझे अच्छा लगेगा।’ भावना ने मस्ती के मूड में कहा, ‘ये मार्केटिंग वाले भी न...किसी भी समय मैसेज भेजकर परेशान करते रहते हैं। लेकिन तुम आज इस मैसेज को देखकर चिढ़ी नहीं? ’

भावना को अपने पास खींचकर गले से लगाकर केतकी सो गयी। उसके बाद चार दिन प्रैक्टिस में गुजरे। प्रसन्न रोज सुबह-शाम आता था। केतकी का प्रयास देखकर उसे खुशी हो रही थी। यू-ट्यूब पर रोज नयी लिंक खोजकर भावना और केतकी को भेज रहा था। बहुत कुछ पढ़कर केतकी को सुनाता था। समझाता था। केतकी को लग रहा था कि उसके व्यक्तित्व नये सिरे से तैयार हो रहा है। प्रसन्न बार-बार कहता था, ‘फाइनल राउंड में यदि मंच पर तुम्हें रैम्प करने का अवसर मिला तो यह तुम्हारी सबसे बड़ी जीत होगी। बिना बालों वाली एलोपेशियन लड़कियों के लिए तुम सबसे बड़ी प्रेरणा बनोगी। रैम्प पर तुम्हारे एक-एक कदम से न जाने कितनी ही लड़कियों के भीतर की कमतर भावना दूर होती जाएगी। उन्हें जीवन के प्रति सकारात्मक बनाता जाएगा। वही तुम्हारे लिए सबसे बड़ा ताज होगा। उस पर किसी और का अधिकार नहीं होगा, केवल केतकी जानी का होगा।’

केतकी को लगा कि यदि उसके पिता जनार्दन जीवित होते तो उन्होंने भी अपनी बेटी को इसी तरह सहारा दिया होता...प्रोत्साहन दिया होता। भावना को लगा, ‘कोई पिता, भाई अच्छा दोस्ता अथवा प्रेमी ही ऐसा कर सकता है। प्रसन्न भाई एक ही समय में कितनी भूमिकाएं निभा रहे हैं, वह भी अच्छे तरीके से।’

केतकी अकेली दिल्ली जाने के लिए तैयार नहीं थी। उसकी इच्छा थी कि उसके साथ भावना या प्रसन्न चलें। लेकिन दोनों ने भी साफ मना कर दिया क्योंकि दोनो को ही लगता था कि इस बार केतकी का अकेले जाना ही अच्छा हो। अनजान जगह पर अकेले घूमने-फिरने के लिए उसमें हिम्मत आनी चाहिए। उसकी जाने की फ्लाइट की और लौटने की ट्रेन की टिकिटें बुक हो गयी थीं। केतकी थोड़ी सी खरीदारी करने के लिए बाहर निकली थी लेकिन भावना ने उसे बहुत सारी चीजें खरीदवाईँ। शनिवार को सुबह की फ्लाइट थी। इस लिए रात को तीन बजे घर से निकलना था। प्रसन्न अपने दोस्त की गाड़ी लेकर आ गया था। ठीक ढाई बजे उसने केतकी के घर के नीचे हॉर्न बजाया। कुछ ही देर में केतकी और भावना सामान लेकर नीचे उतरीं। हवाई अड्डे पर तीनों गप्पें मार रहे थे, हंसी-मजाक कर रहे थे। दोनों ही केतकी को कई हिदायतें दे रहे थे, सलाह दे रहे थे।

हवाई अड्डे के गेट पर केतकी ने कह ही दिया, ‘कोई मेरे साथ चलता तो बहुत अच्छा होता।’ भावना ने उसे गले से लगाते हुए कहा, ‘हम तो तुम्हारे साथ हैं ही न बहन? ऑल द बेस्ट।’

प्रसन्न ने धीरे से कहा, ‘हमसे भी नजदीक एक व्यक्ति तुम्हारे साथ है। एक नयी केतकी। वह जितना सपोर्ट तुमको देगी, दूसरा कोई उतना दे ही नहीं सकेगा। अपने जीवन की इस प्रगति के लिए तुम्हें दिल से बधाई। ’

केतकी का विमान दिल्ली में उतरा, तब अहमदाबाद में फोन पर उसके विरोध में एक षडयंत्र रचा जा हा था। एक भयंकर षडयंत्र। वह षडयंत्र क्या हो सकता था? सौंदर्य प्रतियोगिता की एक प्रतिभागी को पीछे खींचने का षडयंत्र।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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