हीर रांझा - भाग 2 Krishna द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर रांझा - भाग 2

साहिबा की बात सुनकर रांझा को बहुत गुस्सा आया और उसने जवाब दिया, "सही कहा गया है कि औरत दगाबाज़ होती है। तुम औरतों ने समस्या खड़ी की और मुझे मेरे भाइयों से अलग करवा दिया। मैं एक खुश जिंदगी जी रहा था लेकिन तुम्हारी बुरी जुबान के कारण घर में झगड़े शुरू हुए। तुम औरतें मर्दों को उकसाती हो ताकि एक-दूसरे से लड़ पड़ें। "

साहिबा ने उतनी ही तल्ख़ी से उलटकर कहा, "तुम बहुत ज़्यादा दूध और चावल खा रहे हो, इसलिए इतना घमंड दिखा रहे हो। एक तुम ही हो जो हमारे परिवार पर कलंक हो। अगर घर छोड़ दो और कुछ दिन भूखा मरना पड़े तो तुम्हारी ये सारी भाषणबाज़ी बंद हो जाएगी। तुम आलसी हो और किसी काम के नहीं हो। तुम गाँव की लड़कियों पर बुरी नज़र रखते हो। गाँव की औरतें हमें खुलेआम कहती हैं कि वे तुम्हारे प्यार में पड़ गई हैं। तुम्हारी खूबसूरती देख ये औरतें उसी तरह फंसती हैं जैसे कि मधु में मक्खियाँ चिपक जाती हैं। औरतें तुम्हारे पीछे दिन-रात भागती हैं। तुम्हारे प्यार ने जाने कितने घरों को बर्बाद कर दिया है।"

भौजाई की जली-कटी सुनने के बाद रांझा और भी गुस्से में आया और जवाब दिया, "सारी दुनिया जानती है कि तुम इस गाँव की सबसे झगड़ालू औरत हो और तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हारे पति को इस बात का कभी डर नहीं होगा कि कोई दूसरा आदमी तुमको भगा ले जाएगा । "

क्रोध से साहिबा की आँखे लाल हो गई और उसकी सूरत पर लहराती लटें जहरीले साँप की फन की तरह हो गए।

वह बोलने लगी, "अगर हमलोग तुम्हारे लिए इतने ही बुरे हैं तो जाओ किसी सियाल की लड़की से शादी कर लो। जाओ उनके घरों के आस-पास जाकर अपनी बाँसुरी बजाओ और उनकी औरतों को फाँस लो। अगर तुमको हमारी खूबसूरती पसंद नहीं तो जाओ हीर से शादी कर लो। उसे दिन-रात तलाश करो ताकि तुम उसे अपने जाल में फँसा सको। अगर दिन में वह हाथ न आए तो रात को घर की पिछली दीवार गिराकर उसे भगा ले जाओ।"

साहिबा की बातों का जवाब देने में रांझा भी पीछे नहीं हटा। कहने लगा, “तुम्हारे जैसी भौजाई को तो नदी में डूबो देना चाहिए। मैं हीर को ब्याह कर लाऊँगा और तुम्हारे जैसी औरतें उसकी नौकरानी बनेंगी।"

और यह कहने के बाद रांझा मुँह घुमाकर बैठ गया, साहिबा उसका कांधा देखती हुई बोली, "तुमको अब जल्दी से जल्दी शादी कर ही लेनी चाहिए नहीं तो हीर की खूबसूरती मुरझा गई तो बहुत देर हो जाएगी।'

इस झगड़े के बाद रांझा अपनी बाँसुरी को लेकर पिता का घर छोड़कर जाने लगा। अब वह तख़्त हजारा का पानी तक नहीं पीना चाहता था। गाँव का एक चरवाहा दौड़ा-दौड़ा रांझा के भाइयों के पास गया और उनको इस बारे में बताया। रांझा का अपनी भाइयों और भौजाइयों से फिर सामना हुआ।

रांझा के भाई कहने लगे, 'रांझा, क्या हो गया तुमको | हमारी पत्नियाँ तुम्हारे लिए नौकरानी की तरह काम करती हैं और हम लोग तुम्हारे गुलाम हैं। क्यूँ घर छोड़कर जा रहे हो?"

भौजाइयाँ कहने लगीं, "हम खून के आँसू रोते हैं जब तुम हमें कड़वी बातें कहते हो। हमने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया। अपनी जिंदगी, संपत्ति... सब कुछ तो तुम पर न्योछावर कर दिया।”

रांझा ने भौजाइयों को जवाब दिया, "मैं घर छोड़ने का मन बना चुका हूँ तो तुम लोग मुझे अपने इरादे से भटकाने की कोशिश क्यों कर रहे हो? बहुत दिनों से मुझे तख़्त हजारा के दाना-पानी से नफ़रत सी हो रही है। पहले तुम लोगों की जली-कटी सुनकर मेरा दिल जला। उसके बाद तुम सबने मुझे मेरे भाइयों से अलग करवा दिया और अब अपना असली रंग बदलकर मीठी-मीठी बातें कर रही हो। तुम सब अपने इरादों में सफल नहीं हो सकती। मैं तय कर चुका हूँ कि मुझे पिता का घर छोड़कर जाना है।”