What culture are serials giving - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सीरियल क्या संस्कार दे रहे है - 2

पहले केवल फिल्में ही मनोरंजन का साधन थी।बाद में छोटा पर्दा यानी टी वी आया।पश्चिम में तो बहुत पहले आ गया था।पर हमारे यहाँ जरा देर में आया।वो भी सीमित लोगो तक ही सीमित रहा।नब्बे के दशक में इसका विस्तार होना शुरू हुआ।और धीरे धीरे इसने घर घर मे जगह बना ली।आज हालात यह है कि फिल्मों से ज्यादा छोटा पर्दा ज्यादा लोकप्रिय हो गया है।और आजकल टी वी के अलावा मोबाइल,लेपटॉप,कम्पूप्यूरटर आदि भी आ गए है।यह भी टी वी का काम भी कर रहे है।ये सभी माध्यम मनोरंजन करने के साथ समाज को प्रभावित भी कर रहे है।
हर चेंनल पर नाटक और सीरियल व अन्य प्रोग्राम दिखाए जा रहे है।
आजकल हम टी वी चैनलों के सीरियल कक देखे तो आजकल ज्यादातर सीरियल में औरत का नेगेटिव रोल यानी नकारात्मक रूप दिखाया जाता है।आजकल पैसा और शोहरत मुख्य हो गयी है।पैसा,शौहरत और अहम के लिए औरते पति से बेवफाई करने में भी नही चूकती।औरते हत्या,स्मगलिंग,जालसाजी आदि अपराध में भी लिप्त दिखाई जा रही है।
आजकल के ज्यादातर टी वी चैनलों पर दिखाए जाने वाले सीरियल समाज पर गलत असर डाल रहे है।इन सीरियल का असर बच्चे,बड़े,औरत मर्द सभी पर पड़ता है।समाज मे स्थापित त्याग,पतिव्रता,प्रेम,बलिदान की औरत कज छवि को ये सीरियल तोड़ रहे हैं।औरत को पतिव्रता धर्म की नही पतिता होने की राह दिखा रहे है।क्यो?
ऐसा नही है कि औरत पतित,बेवफा या आपराधिक मानसिकता से ग्रस्त या अपराधी प्रवर्ति की नही होती।होती है।आये दिन हम अखबार में औरत की बेवफाई,या प्रेमी के साथ पति की हत्या या अपराध में लिप्त औरत के समाचार पढ़ते हैं।पर ये घटनाएं अपवाद है।अपवाद से न समाज की दिशा तय होती है न ही समाज का प्रतिबिंब झलकता है।लेकिन फ़िल्म और सीरियल बनाने वाले इन अपवादों को ही समाज का प्रतिबिंब मानकर कहते है।जो समाज मे हो रहा है,हम तो वो ही दिखा रहे है।
सब प्रश्न ये भी उठता है कि जो कुछ समाज मे अपवाद स्वरूप होता है,उसे ही दिखाने में फ़िल्म और टी वी वाले रुचि क्यो रखते है।नायिका को क्यो खलनायिका बनाने पर उतारू है।समाज का उजला पक्ष या अच्छी बातें दिखाने के लिए क्यो नही तैयार है।
फिल्में हो या टीवी दोनो का ही मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ समाज को शिक्षित,जागरूक करके दिशा देने का भी काम है।हमारे समाज मे आज भी नारी की छवि पति वार्ता नारीकी है।आज भी उसके लिए पति ही सर्वस्य होता है।पति और बच्चे उसका घर संसार होते है।इसकी खुशी के लिए वह हर त्याग और ब्लीदान के लिए तैयार रहती है।पहले की फिल्मों में औरत की इसी छवि को दिखाया जााता था।ऐसी नारी की छवि होती थी पुरानि फिल्मों में जो सास श्वसुर का भी सम्मान करती थी और मिल जुलकर रहती थी।लेकिन आज फिल्मों और टी वी पर उन अपवादओ को ज्यादा तजरिह दी जााती है।
निर्माताआ का उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना ही नही होना चाहिए।पैसे कमाने के लिए चाहे जो भी दिखाने का प्रयास नही करना चाहिए।पैसे के साथ सनज को शिक्षित व जागरूक करना भी निर्माताआ का उद्देश्य होना चाहिए।ऐसे सीरियल बनाये जाने चाहिए जो समाज को जागरूक करे और शिक्षित भी करे।और रूढ़ियों को तोड़े

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