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लॉस्ट - फिल्म रिव्यू

लॉस्ट कैसे और कहां लॉस्ट हो गई उसकी बात करें या फिर बात करें यामी गौतम धार की जिसके बलबूते पर फिल्म को खड़ा किया गया है? फिल्म का मुद्दा दिलचस्प है की आज देश में हजारों लाखों लोग गुमशुदा हैं जिनका कोई अता पता नहीं और थोड़ी सी छानबीन के बाद पुलिस प्रशासन भी उनको ढूंढना छोड़ देता है। क्या फिल्म इस लॉस्ट के मुद्दे को ठीक से न्याय दे पाई है?

कहानी शुरू होती है एक नवजवान अशास्पद युवक ईशान भारती के खो जाने की खबर से, पोलिस आखिरकार उसके गुम होनेकी रिपोर्ट दर्ज कर लेती है। पर उसपर ज़्यादा छानबीन होती नहीं। एक रिपोर्टर विधि सहानी मतलब यामी गौतम को इस कहानी में रुचि जागती है और वह इस विषय पर ईशान की बहन से मिलती है। उससे जानकारी प्राप्त करती है की ईशान क्या करता था, कहां जाता था, किस्से मिलता था वगैरह वगैरह।

कहानी का बहुत सारा समय उन अलग अलग लोगों से मिलने में गया जिनका गुमशुदा ईशान से कोई संबंध था, कोई उसका दोस्त था या फिर प्रेमिका। यहां ईशान की पूर्व प्रेमिका अंकिता चौहान पर घूमता है शक का दायरा। अंकिता चौहान मतलब पिया बाजपाई इस फिल्म में एक नेता रंजन बर्मन मतलब राहुल खन्ना के साथ अनैतिक संबंध में हैं। दोनों को ही ईशान को गुम करवाने की साज़िश से जुड़ा हुआ दिखाया गया है।

ईशान जिंदा है या मर गया है? इस पर फिल्म में अंत तक सस्पेंस है। फिल्म की पृष्ठ भूमि में है कोलकता। वहां की पुलिस, बंगाली भाषा और वहां की गलियों में घूमकर होती है जांच पड़ताल। पर ये सब एक पत्रकार कर रही है पुलिस नहीं। पुलिस भी पत्रकार को पुछ रही है वह ऐसा क्यों कर रही है। पत्रकार विधि मतलब यामी गौतम कई बार पत्रकार की जगह एक एक्टिविस्ट बन जातिं हैं जिसमे उसे राजनेताओं और अन्य लोगों से धमकियां मिलती हैं। उसे इस केस से लगाव हो गया है और वह गुमशुदा लड़के के परिवार को न्याय दिलाने में लगी है।

फिल्म में काफी समय बाद राहुल खन्ना मतलब विनोद खन्ना के बड़े बेटे दिखे जिन्हें बहुत समय के बाद शायद मौका मिला । वे 90 के दशक में एम टीवी वीजे रह चुके हैं और उन्हें वेक अप सिड फिल्म में आखरी बार देखा गया। या कह लीजिए की वे भी कुछ 12–13 साल तक लॉस्ट थे। इस फिल्म में भी उनकी हिंदी में अंग्रेजी लहजा सुनाई दिया, पर उनकी अदाकारी अच्छी रही। एक राजनेता के रोल में बिलकुल फिट। एक दम डिप्लोमेटिक हाव भाव।

आपको पता होगा की यामी गौतम की शादी हो चुकी है, तो जायज़ बात है अब उन्हें रोमांटिक रोल करने वाली हीरोइन के किरदार नहीं मिलेंगे। क्योंकि हिंदी फिल्मों में हिरोइन की सेक्स अपील उनके कुंवारेपन से जुड़ी है, शादी हुई नहीं की उनकी अपील गायब और प्रेक्षक की रुचि गायब। इस लिए कई हिरोइनें या तो अपनी शादी छुपातीं हैं या फिर शादी करते करते चालीसी पकड़ लेती हैं। पर शादी के बाद कैसे रोल मिल सकते हैं और कैसे रोल उनसे करवाए जा सकते हैं वह यामी गौतम को इस रोल में देखकर स्पष्ट होता है। एक ऐसा रोल जिसमें स्त्री का प्रेम स्वरूप नहीं पर गंभीर और निडर स्वरूप दर्शाया जाए। एक स्वरूप जिसमें उन्हें अपने व्यवसाय से अधिक प्रेम हो। या फिर रानी मुखर्जी जैसा मर्दानी वाला रोल या फिर हिचकी वाला रोल। पर क्या हिंदी फिल्मों का लेखन स्त्री पत्रों को केंद्र में रखकर लिखा जाएगा? कितना और कब ये तो समय बताएगा। नारी समानता का एक निर्देश ये भी हो की फिल्मों में नारी का पात्र भी मज़बूत बने।

वापस फिल्म की कहानी पर नजर डालें। इसमें कहानी कभी एक गुमशुदा लोगों का सामाजिक मसला उठाती है तो कभी नक्सली बन जाने के कारण पर एक बढ़ी बहस हो रही होती है। फिर कभी गंदी राजनीति तो कभी एक व्यक्ति का नाकामयाब प्रेम। पर इन सबके बीच कहानी गेंद की तरह यहां वहां भटक कर बिखर जातीं नज़र आई। किसी एक मसले पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक था।

ईशान भारती फिर मिला या नहीं? जिंदा या मुर्दा? फिल्म आप देख लें और पता कर लें। फास्ट फॉरवर्ड करके समय बचाना हो तो आपकी मर्जी, सब बात मैं कहूंगा तो आप क्या करेंगे। फिल्म zee5 पर है, सब्सक्राइब कर लें या फिर दोस्त से कुछ दिन उधार ले लें। वैसे मुझे वेब सिरीज़ से ज़्यादा फिल्में अच्छी लगातीं हैं क्योंकि ये मेरा समय बचाकर अपने निर्धारित अंत तक पहुंच ही जातीं हैं।

–महेंद्र शर्मा १२.०३.२०२३


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