Swapna--Bhoole Nahi Bhagat - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

स्वप्न--भुलाए नही भूलता - अंतिम भाग

सुबह चार बजे बापू के पेट मे भयंकर दर्द उठा।दर्द इतना भयंकर था कि दर्द की वजह से वह खाट पर नही लेट सके।बापू दर्द की वजह से चीखने लगे।हम घबरा गए।सामने के क्वाटर में काशीराम गौतम जी रहते थे।वह रेलवे में ड्राइवर थे और सादाबाद के रहने वाले थे।उन्हें बुला लिया।
दर्द से तड़पते हुए बापू आंगन में चक्कर लगाने लगे।सर्दी के मौसम में भी शरीर से पसीना छूटने लगा।काशीराम बापू के साथ घूमते हुए पसीना पोंछने लगे।
मैं और इन्द्र रेलवे डॉक्टर के पास गए।जौहरी नए डॉक्टर थे।युवा थे।इन्द्र बोला,"दूसरे डॉक्टर पर चलते है।"
डॉक्टर माहेश्वरी रेलवे में पुराने डॉक्टर थे।उनका बंगला भी रेलवे अस्पताल के पास ही था।हम उनके पास गए।वह बोले,"डॉक्टर जोहरी का इलाज चल रहा है।उनके पास ही जाओ।" हमने डॉक्टर माहेश्वरी से काफी मिन्नते कज पर वह हमारे साथ जाने के लिए तैयार नही हुए थे।और फिर हमें डॉक्टर जोहरी के बंगले पर जाना पड़ा।
हम डॉक्टर जौहरी के पास गए।वह तुरंत हमारे साथ चल दिये।जौहरी कल से ही बापू को देख रहे थे।उन्हें मर्ज मालूम था।उन्होंने आते ही इंजेक्शन दिया और दवा दी और बोले,"इन्हें अस्पताल ले चलो।घर पर इलाज नहीं हो पायेगा।"
डॉक्टर जौहरी चले गए।बापू को अस्पताल ले जाने के लिए गौतमजी साईकल ले आये।बापू को साईकल पर बैठाया गया।इन्द्र घर पर ही रह गया था।मैं और माँ बापू के साथ चल दिये।अभी उजाला नही हुआ था।सब लोग घरों में सोए हुए थे।और बापू साईकल पर और हम उनके पीछे।बापू के दर्द अभी कम नही हुआ था।दर्द से वह कराह रहे थे।माँ को देख कर बापू बोले,"तू कहाँ जा रही है?"
"तुम्हारे साथ चल रही हूँ।"
"मेरे साथ,"बापू करहाते हुए बोले,"लौट जा।"
लेकिन माँ ने उनकी बात सुनी अनसुनी कर दी तब बापू फिर बोले,"बच्चे घर पर अकेले है तू कहा चल रही है।"
"तुम्हारे साथ।"
"आरी वापस लौट जा।मेरे साथ कहाँ तक चलेगी।"
उस समय तो मैं नही समझ पाया पर बाद मैं मुझे बापू की बात में छिपे संकेत का एहसास हुआ था।शायद बापू को अपनी मौत का एहसास हो गया था।इसीलिए वह ऐसी बात कह रहे थे।
और बापू को लेकर हम अस्पताल पहुंचे थे।बापू को रेलवे अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।
मेरे बापू मिलनसार,रहमदिल,और लोगो के सुख दुख में शामिल होने वाले इंसान थे।रेलवे ही नही रेलवे से इतर भी लोगो से उनके सम्बन्ध थे।इसलिए जैसे जैसे लोगों को बापू के अस्पताल में भर्ती होने के बारे में पता चलने लगा।लोग बापू को देखने के लिए रेलवे अस्पताल में आने लगे।
इंजेजेक्शन और दवा के असर के बाद बापू स्वस्थ नजर आ रहे थे।इसलिए मिलने आने वालों से बाते कर रहे थे।मैं वार्ड में ही था।वहां से बिशन सिंह मुझे अपने क्वाटर ले गया।जब मैं उसके। क्वाटर से वापस बापू के पास आया तो वह मुझ से बोले,"मैं सही हूँ।तुम घर चले जाओ।नहाकर आ जाना।मैं घर जाना नही चाहता था।पर बापू के बार बार कहने पर मै घर चल दिया।
मैं कालोनी के रास्ते अपने क्वाटर पर आया था।मैं नहाने के लिए कपड़े उतारने लगा।तभी एक सिपाही साईकल पर दौड़ता हुआ आया,"भैयाजी जल्दी चलो।"
"क्या हुआ?"
"साहब तुम्हे बुला रहे है।'
मैं तुरन्त साईकल पर बैठ गया।वह तेज साईकल चलाकर ले गया।लेकिन मैं वार्ड में घुस पाता उससे पहले दरवाजा बंद हो गया।
स्वप्न सच हो गया था

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