छुटकी दीदी - 12 Madhukant द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुटकी दीदी - 12

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सुबह सलोनी ने अग्रवाल जी के घर जाकर बताया, ‘अंकल, नानी जी ने हाँ कर दी है। अब आप चटर्जी जी से फ़ाइनल कर लें।’

‘बैठो बेटी, अब तुम्हारे सामने ही बात कर लेता हूँ, क्योंकि किसी बात में पर्दा नहीं होना चाहिए।’

फ़ोन मिलाते हुए अग्रवाल जी ने स्पीकर ऑन कर लिया, ‘चटर्जी जी, बधाई हो आपको। कोलकाता भी बात हो गई है। अब सबकी पूर्ण सहमति है।’

‘ठीक है, आपको भी बधाई अग्रवाल जी।’

‘यह बताओ, रक़म का भुगतान कैसे करोगे?’

‘देखो अग्रवाल जी, आप बीच में हैं तो मुझे कोई चिंता नहीं है। पचास लाख तो मैं आज ही टोकन मनी भेज देता हूँ। बाक़ी एक महीने के बाद जब रजिस्ट्री होगी, तब दे दूँगा।’

‘एक मिनट होल्ड करना।’

अग्रवाल जी ने सलोनी से पूछा, ‘बेटी, पचास लाख की टोकन मनी कोलकाता दिलवानी है या यहाँ मँगवानी है?’

‘यहीं मँगवा लो, हमें आपके फ़्लैट के भी देने हैं। वे आपके पास ही रह जाएँगे।’

‘चटर्जी जी, आप हमारी फ़र्म में भिजवा दीजिए। मैं इनको यहीं दे दूँगा।’

‘ठीक है, मैं आज ही भिजवा दूँगा। अग्रवाल जी, इन्हें एक सावधानी रखनी पड़ेगी। अभी किसी से मकान बेचने की चर्चा न करें और भाड़े वालों को ख़ाली करने के लिए बोल दें। सबको यही बताएँ कि हमने पूरी बाड़ी की मरम्मत करानी है।’

‘आप चिंता ना करें, मैं समझा दूँगा।’

‘धन्यवाद,’ कहते हुए उन्होंने फ़ोन बंद कर दिया। 

‘चलो बेटा, हो गया यह काम भी। चटर्जी की बात सुन ली ना! अभी कुछ दिन मकान बेचने की बात न बताना और बाड़ी की मरम्मत कराने की बात कहकर सबको ख़ाली करने के लिए बोल देना। पचास लाख आज आ जाएँगे। अपनी माँ से पूछ कर बता देना, उनका क्या करना है?’

‘अंकल, आप अपने पास जमा कर लेना। हमने फ़्लैट के आपको देने तो हैं ही।’

‘तो ठीक है, अपनी माँ से पूछ लेना कि रजिस्ट्री किसके नाम करानी है। आज से यह फ़्लैट तुम्हारा हुआ। हम तो अब किराएदार बनकर रहेंगे।’

‘अंकल, क्यों लज्जित करते हैं? रजिस्ट्री होने के बाद भी यह फ़्लैट आपका ही रहेगा। जब तक यह मकान रहेगा, तब तक इस मकान पर अग्रवाल भवन ही लिखा रहेगा।’

‘ठीक है बेटी, जाओ, अपनी माँ और नानी को सब बातें बता दो।’

सलोनी उठकर चली आई।

…….

स्कूल से आने के बाद सलोनी ने नानी को सब बातें बताईं और यह भी कहा कि अभी बाड़ी को बेचने की बात किसी को नहीं बतानी। सबको ख़ाली करने के लिए बोलना है यह कहकर कि बाड़ी की मरम्मत करानी है।

‘ठीक है बेटी, मैं ऐसा ही करूँगी। मुझे तुमसे कुछ सलाह भी करनी है…।’

‘कहो नानी, क्या कहना है?’ सलोनी आराम से कुर्सी पर बैठ गई।

‘सलोनी बेटे, मैंने रात को जो हिसाब लगाया, वह तुझे ठीक लगे तो कहना, नहीं तो अपनी सलाह देना। कुल दो पन्द्रह आने हैं। सबसे पहले तो पचास लाख फ़्लैट के देने हैं। पचास तेरी शादी के लिए बैंक में तेरे नाम जमा करा दूँगी। पचास मैं कहीं ब्याज पर दूँगी, जिससे मेरा खर्चा चलता रहेगा। पैंतीस तेरी माँ को दे दूँगी। उसकी मर्ज़ी वह जो करे। बाक़ी बचे भाग्या के बच्चों के नाम से जमा करवा दूँगी। मैंने तो यह विचार किया है, बाक़ी तू बता, इसमें कुछ बदलाव करना हो तो?’

‘वैसे तो नानी आपने सब ठीक विचार किया है, परन्तु हम कहते हैं कि हमारे लिए इतने पैसे किसलिए, हम तो नौकरी करते हैं?’

‘इस बात पर तो मैं कुछ नहीं सुनूँगी। सारी उम्र तूने सेवा की है … सच में तो सारी सम्पत्ति पर तेरा ही अधिकार है।’

‘ठीक है नानी, आपका फ़ैसला ठीक है। इस विषय में आप हमसे अधिक समझदार हैं। इसलिए आपने बहुत अच्छा किया है,’ कहते हुए सलोनी ने फ़ोन रख दिया।

नानी से बात करते हुए सलोनी को ध्यान आया कि हमें सुकांत बाबू को भी खबर कर देनी चाहिए। एक-दो दिन में पता तो सबको लग ही जाएगा। यदि सबसे पहले हमने उन्हें नहीं बताया तो उनको बड़ा दुःख होगा। एक गहरी साँस लेकर सलोनी ने फ़ोन लगाया। घंटी बजनी समाप्त हो गई … शायद उन्हें बाड़ी बेचने की बात का पता लग गया है और वे रुष्ट हों, इसलिए हमारा फ़ोन नहीं उठाया। यह सोचकर वह उदास हो गई।

तभी सुकांत का फ़ोन आ गया।

‘नमस्ते सुकांत बाबू। हमने अभी आपको फ़ोन लगाया था।’

‘हाँ, तुम्हारा फ़ोन आया था, लेकिन उस समय मैं कैंटीन में अपने दोस्तों के साथ बैठा मस्ती कर रहा था। अब मैं अकेला बाहर आ गया हूँ।’

‘आपसे एक आवश्यक बात करनी है।’

‘कहिए?’

‘परन्तु पहले हम अपने कान पकड़कर क्षमा माँगते हैं। बोलो, क्षमा कर दिया ना!’

‘अरे, पहले बात तो बताओ।’

‘नहीं, पहले क्षमा कीजिए।’

‘सलोनी, आज कैसी बातें कर रही हो! क्या तुम्हें अधिकार नहीं है … ठीक ग़लत … अच्छी बुरी बातों को हमारे साथ बाँट सको। यदि कुछ ग़लत हुआ तो भी वह हमारी साझी विरासत है … संकोच ना करो … जल्दी से बताओ, क्या बात है?’

‘बात यह है कि दो दिन पहले हमने अपनी बाड़ी के बेचने का विचार किया और आज उसका सौदा भी हो गया, परन्तु अभी यह बात किसी से कहना नहीं। सबको यही बताएँगे कि बाड़ी की मरम्मत करानी है, इसलिए ख़ाली करा रहे हैं … सच मानना सुकांत बाबू, यह सब इतनी जल्दी में हो गया कि आपसे सलाह भी नहीं कर पाई।’

‘फिर नानी कहाँ रहेगी?’

‘नानी के लिए हमने दिल्ली में अपने सामने वाला फ़्लैट ख़रीद लिया है। कुछ दिनों बाद सब दिल्ली आ जाएँगे।’

‘एक ओर सोचता हूँ तो यह अच्छा हुआ। अब तुम दोनों को एक साथ सँभाल पाओगी। दूसरी ओर …।’ एक गहरी साँस सुकांत के दिल से निकली।

‘हम समझते हैं सुकांत बाबू। जब आप दिल्ली आ जाओगे तो हमारी मंज़िल आसान हो जाएगी।’

‘ख़ैर, वह तो देखा जाएगा, परन्तु एक सूचना मुझे भी तुमको देनी है। आजकल मैंने भी यहाँ एक प्राइवेट कॉलेज ज्वाइन कर लिया है। टाइम पास हो जाता है और कुछ जेब खर्च भी मिल जाता है।’

‘यह तो बहुत अच्छा किया। हम तो भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आपको दिल्ली भेज दें, फिर हमारी सब मुरादें पूरी हो जाएँगी।’

‘ठीक है, हमको ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। ओ.के., सलोनी।’

और फ़ोन बंद हो गया।

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