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सरदार जी की कन्याए

दोस्तों आप इसे कविता कह लीजिए या कहानी कह लीजिए। लगभग पिछले पाँच से महीनों से ये रचना काफी बार घूमती घूमती मुजे इंटरनेट पे मिली है। लेखक अज्ञात है। पर हर बार ये लब्ज मेरे दिल और दिमाग को हिला कर रख देते है।

मोहल्ले की औरते कन्या पूजन के लिए तैयार थी,

मिली नहीं कोई लड़की, उन्होंने हार अपनी मान ली।

फिर किसीने बताया, अपने मोहल्ले के है बाहरजी,

बारह बेटियों के बाप, है सरदार जी।

सुनकर उसकी बात, हस कर मैंने कह दिया,

बेटे के चक्कर में सरदार, बेटियाँ बारह कर बैठ गया।

पड़ोसियों को साथ लेकर, जा पहुंचा उसके घर पे,

सतश्रीअकाल कहा मैने, प्रणाम उसे करके।

कन्या पूजन के लिए आपकी बेटियाँ घर लेकर जानी है,

आपकी पत्नी ने कन्या बैठाली या अभी बैठानी है ?

सुनकर मेरी बात बोला, आपको कोई गलत फहमी हुई है,

किसकी पत्नी जी ?, मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है ।

सुनके उसकी बात, में तो चकरा गया,

बातों बातों में वो मुजे, ना जाने क्या क्या बता गया।

मत पूछो इनके बारे में, जो बातें मैने छुपाई है,

क्या बताऊ आपको, की मैने इन्हे कहाँ कहाँ से उठाई है।

माँ बाप इनके हैवानियत की हदें सब तोड़ गए,

मंदिर, मस्जिद और कई अस्पतालों में थे छोड़ गए।

बड़े दरिंदे है, अपने इस जहान में।

ये दो छोटियाँ जो है, मिली थी मुजे कूड़ेदान में।

इसका बाप कितना निर्दई होगा, जिसे दया ना आई इस नन्ही सी जान पे,

हम मुर्दों को लेकर जाते है, वह जिंदा ही छोड़ गया इसे समशान में।

ये जो बड़ी प्यारी सी है, थोड़ा लंगड़ाकर चल रही है,

मैंने देखा कि तालाब के पास एक गाड़ी खड़ी है,

बेग फेंक कर भाग ली गाड़ी, जैसे उसे जल्दी बड़ी पड़ी है,

शायद उसके पीछे भी एक बहोत बड़ी आफत पड़ी है ।

बैग था आकर्षित मैंने लालच में उठाया था,

देखा जब खोलके तो आंसू रोक नही पाया था।

जबरन बैग में डालने के लिए उसने पैर इसके मोड़ दिए थे,

शायद उसे पता नही चला की उसने कब पैर इसके तोड़ दिए थे।

सात साल हो गए इस बात को ये दिल पर लगाकर बैठी है,

बस गुमसुम सी रहती हैं, दर्द सीने में छुपा कर बैठी है।

सुनके बात सरदारजी की, सामने आया सब पाप था,

लड़की के सामने जो खड़ा था, कोई और नही वो उसका बाप था।

देखा जब पड़ोसियों की तरफ, उनके चेहरे ले रंग भी बताते थे,

वोह भी किसी न किसी लड़की के मुजे मां बाप नजर आते थे।

दिल पे पत्थर रख कर, लड़कियों को घर लेकर आया,

बारी बारी से सबको हमने पूजा के लिए बैठा दिया।

जिन हाथों ने अपने हाथो से, तोड़े थे जो पैर जी,

टूटे हुए उन पैरो को छू कर, मांग रहे थे वोह खैर जी।

क्यूं लोग अपनी बेटी मार कर दूसरो की पूजना चाहते हैं,

कुछ लोग क्यों कन्या पूजन एसे हि मनाना चाहते है ।।

तो दोस्तो ये थी रचना जिसका इंटरनेट पे टाइटल था " सरदारजी कि कन्याए "। आज हम सब के लिए बहुत दुख कि बात है की हम अपनी परंपराओंको, अपने रीती रिवाजोको बड़े अच्छे से समझते हैं, और बड़े अच्छे से उनका पालन करते हैं। पर उनके पीछे छुपी भावनाओं को, असली उद्देश्य को नही समझ पाते।

बेटियाँ बोज़ नहीं है, ये हाथ जोड़ के विनम्रतासे आपसे विनती हे बेटियों को बोज ना समजे। किसिने खूब ही लिखा है की " किसिका जब भाग्य अच्छा होता है सो मेसे एक भाग्य अच्छा होता है तो उसे भाग्य से लड़का मिलता है, पर बेटियाँ सो भाग्य से मिलती है यानि जिनके सो मेसे सो भाग्य अच्छे होते है तब उसके घर बेटी का जन्म होता है। बेटियाँ बोज नहीं है ।।।

कविता को पूरा पढ़ने के लिए धन्वयवाद । इस स्टोरी को Rating देके आप मेरा मनोबल बढ़ा सकते है, में हर महीने एक नई स्टोरी Post करता हु। अगर कोई भी स्टोरी Miss नहीं करना चाहते तो मुजे Matrubharti App पे फॉलो कर सकते है। आपको ये स्टोरी कैसी लागि Comment करके अवश्य बताएं। आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

में हूँ Pravin Rathod। मिलूँगा आपसे जल्दी एक और नई स्टोरी के साथ। तब तक खुश रहिए, मुस्कुराते रहिए और Learnings को अपनी life में Impliment करते रहिए।

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