रामसेतु फिल्म रिव्यू Mahendra Sharma द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

रामसेतु फिल्म रिव्यू

फिल्म के नाम में ही बहुत बड़ी कहानी है जिसपर सदियों से चर्चा हो रही है की आखिर रामसेतु सच में रामजी की वानर और रींछों की सेना ने बनाया था की जिसमें पानी में तैरने वाले पत्थर थे या फिर ये कोई प्राकृतिक निर्माण हुआ जिसे बनने में किसी मानव या पशु का कोई श्रम नहीं लगा था?

आस्था रखने वाले लोग इसे श्री राम की देन मानते हैं और नास्तिक लोग रोज़ ये ढूंढने में लगे रहते हैं की ऐसा कुछ मानवनिर्मित नहीं। तो सच या आस्था इसका फैसला इस फिल्म देखने के बाद थोड़ा बहुत हो सकता है?

अक्षय कुमार इस फिल्म में एक पुरातत्वविद डॉ आर्यन कुलश्रेष्ठ की भूमिका में हैं जिन्हें उनके काम में बहुत ही इज्जत दी जाती है। उन्होंने तालिबान के कब्जे में आए अफगानिस्तान में बुध की लेटी हुई हजारों साल पुरानी प्रतिमा ढूंढी जिसे तालिबान ने खंडित किया था।

आगे कहनी में दिखाते हैं की जब 2007 में तत्कालीन सरकार ने रामसेतु तोड़कर वहां से श्रीलंका जाने का रास्ता बनाने का प्रस्ताव पार्लियामेंट में रखा तो सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल हुई जिसने सरकार के राम सेतु तोड़ने के निर्णय को चुनौती दी गई। इस कानूनी प्रक्रिया में अक्षय यानी डॉ आर्यन को सरकार की तरफ से सच ढूंढने के लिए आमंत्रित किया गया। डॉ आर्यन ने यह दलील रखी की रामसेतु एक कुदरती तौर पर बना ढांचा है जिसे किसी मानव ने नहीं बनाया।

आर्यन की इस दलील और कुछ सबूतों पर कोर्ट में बहुत चर्चा हुई। पर इसका असर आर्यन की निजी जिन्दगी पर पड़ा। उसके बेटे को स्कूल में इसलिए पिटना पड़ा क्योंकि उसके पिता ने भगवान राम के ना होने के लिए सबूत देने चाहे। भगवान राम का न होना भारत देश की सदियों पुरानी संस्कृति और जीवन चर्या पर सवाल उठाने जैसा है। भगवान में आस्था रखने वाले लोग कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते। तब लोगों ने आर्यन के परिवार को नास्तिक बताकर शर्मिंदा करना चाहा।

अब आर्यन के पास इस नौकरी को छोड़ने के अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं बचा था तब एक बड़े उद्योगपति ने उसे बुलाकर उसे एक प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव था की वो रामसेतु के कुदरती ढांचा होने के पुख्ता सबूत कोर्ट में पेश करे, जिसके लिए उसे अच्छे पैसे मिलेंगे और साथ ही इस आस्तिक समाज के सामने अपना सच रखने का मौका मिले। आर्यन यह प्रस्ताव स्वीकार करके उस क्षेत्र में जाता है जहां भारत और श्रीलंका की समुद्री सरहद है। वहां उसे अन्य वैज्ञानिक भी मिलते हैं और विश्व की सबसे अच्छी तकनीकी सामग्रियां भी दी जातीं हैं ताकि वह रामसेतु को एक कुदरती ढांचा दिखाने के सबूत वैज्ञानिक तरीके से दे सके।

पर बात कुछ अलग हुई, सबूत तो रामसेतु के राम की सेना ने बनाए हुए मिलने लगे। रामसेतु के पत्थर उतने हि पुराने थे जितनी रामायण। जिसपर आर्यन को खुदको भरोसा नहीं हो रहा था। तब उसने यह बात जब उद्योगपति को बताई तो उसने जूठा आश्वासन देकर उसे अपनी रिसर्च जारी रखने को कहा। पर फिर आर्यन और उसके साथी वैज्ञानिकों पर जान लेवा हमले हुए, उसकी पंडुपी को समुद्र में डुबाने की कोशिश हुई पर वे लोग बच गए।

आगे आर्यन अपनी रिसर्च के लिए श्रीलंका तक पहुंच गया जहां पहले से अंतरिक युद्ध जारी था। वहां उसे एक दोस्त मिला जो उसे अपनी मंजिल तक पहुंचाने का वचन देता है। कौन था वो दोस्त? क्या सच में रामसेतु कुदरती है या श्री राम की सेना ने उसे बनाया है? क्या रावण था? इन बातों में रुचि रखना एक आस्था में रुचि रखने वाले का काम है जब के नास्तिक और मॉडर्न दिखने वाले लोग इसका सबूत आज तक मांगते हैं।

फिल्म इंटरवल के बाद बहुत दिलचस्प हुई और जो नए पात्र जुड़े उसके किरदार ने दर्शकों का दिल जीत लिया। अब आगे फिल्म देखकर ही आप निर्णय लें की कैसी लगी।

फिल्म का संबध सन 2007 में सरकार के एक केस से है जिसमें सरकार रामसेतु तोड़कर सेतुसमूद्रम मार्ग बना रही थी जो हजारों किलोमीटर के रास्ते को छोटा करके कई हजार बैरल इंधन और पैसे बचाता। पर उसपर एक पीआईएल फाइल की गई और आखिर में सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा।

कहानी सत्य और कल्पना दोनो के बीच का सेतु बांध रही है, कहानी आस्तिक विचार और नास्तिक शैली के बीच एक रास्ता ढूंढने का प्रयास है जिसे हम संस्कृति कहते हैं।

संस्कृति किसी धर्म की गुलाम नहीं, यह संस्कृति एक प्रदेश एक देश के लोगों की जीवन शैली और उनके विचार अन्य देशों के सामने प्रस्तुत करती है। संस्कृति एक प्रदेश के लोगों को अपने पूर्वजों और विचारों को सदियों तक संजोने का पाठ सिखाती है। अगर आप उस संस्कृति के मूल खोदकर उन्हें झूठा प्रतीत करने की कोशिश करेंगे तो यह उस पूरे प्रदेश और वहां रहने वालों के अस्तित्व पर बहुत बड़े सवाल खड़े कर देगा। इसलिए संस्कृति को समझना और संजोना आवश्यक है। उसकी जड़ों में जाकर उसपर वैज्ञानिक कारण ढूंढना मूर्खता है।

फिल्म एमेजॉन प्राइम पर है, इसे श्रेष्ठ फिल्म नहीं कह सकते, पर ग्राफिक्स पर बहुत ही उच्च कोटि का कार्य हुआ है, बहुत ही मनमोहक दृश्य हैं और साथ ही कुछ तथ्य भी हैं जिसे जानकर शायद आप का विश्वास इस देश की संस्कृति पर और ज्यादा मजबूत हो जाए।

– महेंद्र शर्मा 23.02.2023