सैयद अब्बास - 2 Dear Zindagi 2 द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सैयद अब्बास - 2

सैयद अब्बास मेहदी रिजवी/ नई दिल्ली: उर्दू शायरी के चमिनस्तान में हज़ारों फूलों ने अपनी ख़ुशबू बिखेरी है। वक़्त तो गुज़रते गए और नए नए फूल चमन को आबाद करते गए। लेकिन कुछ ख़ुशबुओं का एहसास आज भी लोगों के दिलो दिमाग़ पर छाया हुआ है। उन्ही गुलों के हुजूम में एक फूल खिला जिसे दुनिया ने जौन एलिया के नाम से जाना और पहचाना।

मैं जो हूं जौन एलिया हूं जनाब
इसका बेहद लिहाज़ कीजिएगा।।

जौन उर्दू शायरी के एक आबाद शहर का नाम था। जिसकी दीवारों पर इश्क़ के क़िस्से लिखे थे. जिसकी मुंडेरों पर उल्फ़त के चिराग़ जल रहे थे। जिसकी फ़सीलों पर मुहब्बत के परचम लहरा रहे थे। जिसकी गलियों में ग़ज़लें गश्त करती थीं। जिसकी जमीन अशार उगलती थी। जिसको अंधरों से मोहोब्बत थी। जो उजालों से डर जाता था। कभी पहलू पर हाथ मारता था। कभी लंबी ज़ुल्फ़ों को चेहरों से झटक कर शेर सुनाता था। कभी रो पड़ता था। कभी जुनून के आलम में महफ़िल को लूट लिया करता था।

उस की उम्मीद-ए-नाज़ का हम से ये मान था,
कि आप उम्र गुज़ार दीजिए उम्र गुज़ार दी गई।।

जी हां जौन एलिया की शख़्सियत भी उतनी ही अजीब थी जितनी उनकी शायरी। वो बहुत सादगी के साथ ज़िंदगी का निचोड़ पेश करते थे। इस बेमिसाल शायर को गुज़रे तकरीबन 18 साल हो गए। यानी ८ नवंबर,२००२। ज़िंदगी में शायद जौन को उतनी शोहरत नहीं मिली जितनी विसाल के बाद। जौन को जानने वाले कहते हैं कि वो बचपन से ही नरगिसी ख़्याल और रुमानियत पसंद थे। जौन एलिया को पसंद करने वाले अफ़राद...जौन के चाहने वाले लोग उनकी शायरी से जितना लगाव रखते हैं उससे कहीं ज़्यादा उनके अंदाज़ पर मरते है। जिंदगी की छोटी छोटी सच्चाइयों से लेकर तजर्बे की गहराइयों तक उनकी शायरी सब कुछ बयान करती है।


तुम जब आओगी तो खोया हुआ पाओगी मुझे,
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं।
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें,
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं।।


उनके कमरे की किताबें इंकार की तालीम देती थीं। इसी कमरे में बैठकर वो बग़ावत के जज़्बात को काग़ज़ पर उतार दिया करते थे। जौन को अपने दर्द से बहुत प्यार था। वो अपने दर्द से बाहर आना ही नहीं चाहते थे दर्द की दवा तो बिलकुल नहीं करना चाहते थे।

चारासाज़ों की चारा-साज़ी से दर्द बदनाम तो नहीं होगा
हाँ दवा दो मगर ये बतला दो , मुझ को आराम तो नहीं होगा।


दर्द से जुनून की हद तक प्यार किया। इतना प्यार किया कि उनके मद्दाह ख़ुद ऐसे दर्द की दुआ करने लगे। लोग उनकी शायरी को समझने के लिए दर्द में डूबने लगे। उनके अशार पढ़कर ये एहसास करने लगे कि जैसे जौन ने हमारे हालाते ग़म को शायरी में ढाल कर बड़े क़रीने से बहुत सलीक़े से पेश किया है।

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या

फिर जौन अपनी ही शायरी का इंकार करने का हौलसा भी रखते हैं।