प्रेमा को देखकर उसे लगा कि कोई खोई हुई चीज़ उसे मिल गई है। वह बड़ी देर तक उसे निहारता रहा और प्रेमा भी उसे बिना पलकें झपकाएँ देखती रहीं। फ़िर प्रेमा उसके नज़दीक आई और उसका हाथ पकड़कर उसके पास बैठ गई।
कैसे हो तुम ?
जी रहा हूँ, तुम्हारे बिना
ऐसे क्यों कहते हो? शहर जाकर कितना बदल गए हों।
मुझे लगता है कि मैं गौव से निकलकर ज्यादा बदल गया हूँ । मोहन ने गहरी सांस ली। और फ़िर प्रेमा को देखते हुए बोला कि अब भी देर नहीं हुई है। मुझे आज भी तुम्हारा इंतज़ार है । इन दस-ग्यारह महीनों में, मैं पंद्रह हज़ार से ज्यादा कमा रहा हूँ । आगे भी पढ़ाई कर रहा हूँ। किस्मत से मेरे आसपास अच्छे लोग है, जिन्होंने मुझे सही रास्ता दिखाया है।
मैं तुम्हारे लिए खुश हूँ, मोहन।
मैं तुम्हारे साथ खुश रहना चाहता हूँ, कहते हुए मोहन ने प्रेमा के होंठो को छू लिया और इतने दिनों बाद मोहन का स्पर्श पाकर प्रेमा बेचैन हो उठी और उसने भी मोहन को चूमना शुरू कर दिया। दोनों के दरमियाँ एक दीवार खींच गई थीं, जो टूटती गई । वह दोनों एक दूसरे को आज पा लेना चाहते थें । नहर के पास एक टूटी -फूटी झोपड़ी थीं, जो कहते है कि किसी बुढ़िया की थीं। दोनों वहीं चले गए और अपनी उमड़ती भावनाओं को एक दूसरे पर उड़ेलने लगे। मोहन की साँसों को महसूस करती, प्रेमा आज चरम सुख का अनुभव कर रहीं है। जब दोनों को एक दूसरे को पाकर संतुष्टि हो गई तो मोहन प्रेमा के बालों में हाथ फेरने लगा। तुझे डर तो नहीं लग रहा? किस बात का? वहीं, जो अभी हमारे बीच हुआ। नहीं, तू कौन सा मुझे, माँ बना देगा। प्रेमा ने हँसते हुए कहा तो मोहन के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई।
इस बारे में बात करना इतना मुश्किल भी है मोहन ने मन ही मन सोचा । तू कहे तो तेरे बापू से तेरा हाथ माँग लो । तुझे भी अपने साथ ले जाऊँगा। प्रेमा ने यह सुना तो मोहन से अलग होकर उठकर बैठ गई । माँ गुज़र गई थीं, तेरे जाने के दो-महीने बाद, अब सवा साल तक तो घर में कुछ उत्सव नहीं मनेगा । और मोहन मेरी हिम्मत नहीं होती कि तेरे बारे में बात करो । देख ! प्रेमा उसने उसे समझाते हुए कहा कि मैं तेरे सारे सपने पूरा करूँगा । शहर में हर चीज की आज़ादी है । दोनों बड़ी आसानी से इस मुश्किल से भी निकल जायेंगे । प्रेमा ने अपने कपड़े ठीक किए और झोपड़ी से बाहर निकल गई प्रेमा इस रविवार को मैं तेरा स्टेशन पर इंतज़ार करूँगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि तू ज़रूर आएगी । मोहन जाती हुई प्रेमा को देखकर बोला।
इस रविवार वह फ़िर स्टेशन पर खड़ा है । बिरजू पहले ही शहर के लिए निकल चुका है । उसे दूर से आती प्रेमा दिखी, वह खुश हो गया । दौड़कर पास गया तो देखा कि ,वह कोई ओर लड़की है । वह निराश हो गया। गाड़ी के जाने का समय हो गया है। और एक बार फ़िर मायूसी साथ लिए प्रेमा के बेगैर शहर पहुँच गया ।
समय अपनी गति से चल रहा है । मोहन ने अब कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ दी । वह किसी इलेक्ट्रॉनिक कंपनी में सर्विस टीम में लग गया । उसका वेतन भी बढ़ गया । मोहन अब अलग मकान लेकर रहना चाहता है, मगर वह बिरजू और श्याम को भी नहीं छोड़ना चाहता । अब कुछ दिनों से देख रहा है कि रेशमा उसमे कुछ ज्यादा ही रूचि दिखाने लगी है, बहाने से उनके फ्लैट में आना। मोहन के साथ घूमने का प्रोग्राम बना लेना और तो और उसके पसंद की चीजें बनाकर लाना। बिरजू और श्याम ने भी रेशमा का झुकाव मोहन की ओर देखा है । मैं तो कहता हूँ कि प्रेमा के किस्से पर अब मिट्टी डाल । पूरे दो साल हो चुके हैं, रेशमा के बारे में सोच। बिरजू ने कहा। मुझे लगता है कि वो पैसे की वजह से तेरे साथ चिपकी हुई हैं । तू उस पर खर्चा करता है । जूही का बाप कुछ करता नहीं। उसकी सारी कमाई तो घर जाती है । अपने शौक तेरे से पूरे करवाती है । श्याम ने सिगरेट पीते हुए कहा । कोई लड़की मेरे साथ नहीं रहना चाहेगी और तुम्हें पता है,क्यों ? उसने दोनों को गौर से देखा । बिरजू चुप हो गया और वहाँ से खिसक गया । श्याम भी उसके कंधे पर हाथ रखकर एकतरफ़ा हो गया ।
आज रेशमा का जन्मदिन है । उसने सभी दोस्तों को बुलाया है । मोहन ने उसके लिए एक ड्रेस खरीदी है, जिसे वह खरीदना चाहती थीं,मगर पैसे की कमी के कारण खरीद नहीं पाई। सब मस्ती कर रहे हैं । नाच-गाना , खाना पीना सब उसके फ्लैट में हो रहा है । रेशमा उसे द्वारा दी गई नीले रंग की ड्रेस में बेहद सुन्दर दिख रही हैं। रात के ग्यारह बजे रहे हैं, सब रेशमा के घर से निकल गए, उसकी सहली जूही भी श्याम के साथ निकल गई। जैसे ही मोहन जाने को हुआ तो रेशमा ने उसका हाथ पकड़कर उसे सोफे पर बिठा लिया । मोहन को यह उम्मीद नहीं थीं, रेशमा उसके पास आकर बोली, " मैं तुम्हे पसंद करती हूँ। उसके मुँह से यह सुनकर मोहन को कोई हैरानी नहीं हुई। वह भी रेशमा को पसंद करता है। और उसे लगता है कि रेशमा शहर में रहती है, उसे समझ लेगी । वह अभी यह सोच ही रहा था कि रेशमा न उसके गालो को चूम लिया । तो मोहन भी उसके होंठो की तरफ़ झुक गया। तभी कुछ सोचकर उसने कहा कि कल बात करेंगे। मोहन यह कहकर, वहाँ से चला गया। उसके फ्लैट से नीचे उतर कर जब सड़क पर पहुंचा तो उसने देखा कि बिरजू को कुछ लोग बुरी तरह मार रहे हैं । वह ज़ोर से चिल्लाया और उन्हें हटाने लगा। उन लोगों ने उसे भी मारना शुरू कर दिया। श्याम ने जब देखा देखा कि दोनों दोस्त मार खा रहे हैं तो वह दौड़कर वहाँ से भाग गया। और सड़क पर किसी को ढूँढने लगा जो उसकी मदद कर सकें । पुलिस को देखकर उसने सोचा कि उनसे मदद ली जाए इसीलिए उन्हें बुलाकर वहाँ ले आया। पुलिस को देखकर वे लोग भाग गए, मगर पुलिस ने मोहन और बिरजू को पकड़ लिया पर पैसे देने पर ज़्यादा पूछताझ नहीं की ।