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यादों मे एक खास बात होती है, वो जाए कितनी ही पुरानी क्यु ना हो, एक बार याद करने बैठो तो फिरसे ताजा हो जाती है।"
जूनागढ़ मे HHA (Home health aid) के क्लासिस को मैने और मेरी दोस्त ध्रुवी ने join किया था। मेरा पहला दिन 7 जनवरी 2022, और हमारे क्लास टीचर का नाम अजीत सर था। पहले दिन गई तो पता चला की सर को गुजराती नही आती है। हिंदी मे बात करनी पड़ेगी, वैसे तो मुझे हिंदी आती है मगर सबके सामने बोलने मे अजीब लगता।
मे और ध्रुवी घर से 5:30 को निकलते थे। गाँव से बाँटवा जाते और फिर वहा से बस मे जूनागढ़ जाते। दोनों 8 बजे क्लासिस पहोचते...
दुसरे दिन मैने, ध्रुवी, कृपाली, अजीत सर और क्लास के कुछ लड़के, हम सब ने मिलकर क्लास की सफाई की, तब किसी से कोई पहचान नहीं थी। पर सबने साथ मे काम किया, थोड़ी मस्ती की और पुरा क्लास साफ कर दिया। फिर उसी क्लास मे हम रोज पढ़ते थे।
क्लास के बीच मे दश मिनिट की रिसेस होती। जिसका नाम "ममरा टाइम" रखा था। क्योंकि सभी दोस्त घर से ममरा लेके आते। या फिर दुकान से मगवाते। सब साथमे खाते, और कभी कभी सर को भी बुलाते।
सर जो पढ़ाते सब समझ आता और न समझ आये तो पूछ लेते वो वापस समझा देते। थोड़े दिनों मे सर और कुछ क्लासमेंट के साथ अच्छी दोस्ती हो गई। सबके साथ मेरी बनती नहीं थी मुझे कुछ लोग अच्छे नहीं लगते थे। इसलिए मे उनसे दुर रहती। किसी से नफरत नहीं थी पर जहाँ पर मन न हो वहाँ बात नहीं करती हु।
मेरी सर से कुछ शिकायत रहती, हमारी 3 घंटे की क्लास होती थी। उसमे हम 1:30 to 2 घंटे पढ़ते, बाकी का टाईम मस्ती और मोबाइल मे चला जाता और कभी तो कुछ लिखवाते नही थे। इस बात का बुरा लगता था। क्योंकि घर से वहा आने और जाने मे 4 घंटे लगते। तब जाके वहा पहोचते।
सबसे बड़ा कारण यह था। मुझे बस मे सफर करने मे परेसानी होती है। बस मे अक्सर साथ मे दवाई रखती हु। इसलिए मे दुःखी हो जाती, सोचती आज कुछ नहीं सिखा, आज का मेरा दिन वेस्ट हो गया।😞
सर को इसके बारे मे बताते पर वो सुनते और स्माइल करते फिर कहते यहा रेट पे रूम लेलो, तो आसानी होगी।
सर बहोत अच्छा पढ़ाते, पर मे उनको ये कहती की आप अच्छे टीचर नही हो। क्युकी सर सबके साथ दोस्त की तरह रहे है। सर से कोई बात पूछने के लिए सोचना नही पड़ता था।
कभी कभी (दूसरे सर) राजीव सर क्लास मे पढ़ाने आते। उनके क्लास मे आते ही पुरा क्लास होशियार स्टूडेंट बन जाता था। अगर कभी अजीत सर बोले की आज आपको राजीव सर पढाइयेगे, तो पुरा क्लास मना कर देता क्युकी राजीव सर बहोत strictly पढ़ाते। इसलिए किसी को अच्छा नही लगता था पर मुझे राजीव सर का पढ़ाना अच्छा लगता।
सर से एक और शिकायत थी। क्लास मे कहीबार किसी न किसी बात से फरियाद आती। क्लास टीचर होने की वजह से नाम उनका ही आता, सब बोलते की वो कुछ ध्यान नही रखते, किसीको कुछ कहते नही है। (दूसरे सर) भरत सर क्लास मे आकर बोलकर चले जाते। मगर अजीत सर सारी बाते सुन लेते....।
मेने कहिबार सर को बोला की आप अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट के लिए बोलिऐ। पर वो यही कहते की उपरवाला सब देखता है मुजे इन सबसे कोई मतलब नही है, मे अपना काम करुगा, जिसको जो बोलना है बोलने दो।
किसी ने कहा है ....
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जैसे किसीके साथ गलत करना अच्छी बात नही है उसी तरह गलत सहना भी अच्छी बात नही है।"पर ये बात सर की dictionary मे आती नही थी।
बुरा लगता की सर सबकी क्यु सुनते है? पर जब सर की बातें समझ आई तब लगा की वो अपनी जगह सही है। हमारी सोच उनसे अलग है इसलिए हमें गलत लगता था।
मुझे याद है मैने कहिबार सर से उसी आवाज मे बात की है। पर उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा। बस चुप चाप सब सुन लेते। और जब हम पूछते की "मे सच कह रही हु न" तब सिर्फ सिर हिला कर हा बोलते।
सर क्लास मे सभी के जन्मदिन को सेलिब्रेट करते। केक भी वही मगवाते, फिर होता गरबा, क्युकी गरबे के बिना सब अधूरा लगता। सर को गरबा नहीं आता था। कहीं बार सिखाने की कोशिस की पर वो बात को टाल देते। इसलिए हम सब खेलते और वो बैठकर वीडियो बनाते।
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कुछ खट्टी कुछ मिठी ये यादें, बहोत सी कहानिया, बहोत से किस्से जुड़े है, जिन्हे हम कभी नहीं भुल सकते"
सबके साथ बहोत अच्छी अच्छी यादे है। सर की सारी बाते आज भी याद करती हु। सच कहु तो ज़िन्दगी के सही मायने अजीत सर से मिलने के बाद समझ आये है। मेरी ज़िन्दगी सुभह से शाम तक जॉब बस यही थी। कॉलेज पुरा हुआ उसके बाद तो ऐसे एंजॉय किया नहीं था। ऐसा लगा मे ज़िन्दगी को फिर से जी रही हु।
हम सब सर के साथ दातर घूमने गए थे। मुझे डर लग रहा था क्युकी पैर की सर्जरी के बाद पहली बार मुझे सीडी सड़नी होगी। यही बात घर पर हो रही थी। घर पर सब ने मना किया जाने से, पर मैने पापा- मम्मी को बोला, सर मेरा ख्याल रखेगे और सर को बोल की आपको मेरा ख्याल रखना पड़ेगा। तब वो माने, ये ट्रिप मेरी ज़िन्दगी की सबसे अच्छी ट्रिप रही, मेने कही दिनो के बाद फिर से मजे किये, दोस्तो के साथ फोटो खीचे, धुमे, साथ मे खाना खाया, साथ मे बैठकर बाते की, किसी बात की कोई फिकर नही थी। बस मजे करने थे।
दूसरी बार सभी क्लासिस के क्लासमेंट और सभी सर के साथ बोरर्देवी गए थे। वहाँ सब लोगो ने साथ मे खाना बनाया और साथ मे खाना खाया। क्या बात करू उस दिन की....
उपर नीला आसमान, चारों और हरा जंगल, पंछी की चहक, वो उबड़-खाबड़ रास्ता😃, अजीत सर का रोटी बनाना, राजीव सर के साथ मस्ती करना, बंदरो की वो महफ़िल, पाऊभाजी का वो स्वाद, और ध्रुवी का साथ आज भी बहोत याद करते है।
एक दिन किसी बात की वजह से सर उदास थे। उन्होंने बोला की यहा के लोग अच्छे नही है और बोले की वो यहा से चले जाएगे। जानती हु... उनकी बात सच है यहाँ के लोग अच्छे नही है कभी भी किसीको भी जज कर लेते है। मगर सर की चले जाने की बात से मुझे बुरा लगा। सर को ऐसे उदास देख कर अच्छा नहीं लगा। मे ज्यादा कुछ बोली नही मगर सर को इतना कहाँ की आपकी कोई गलती नही है।.....
23 मार्च जब पहली बार सर ने मुझे "छोटी" बोला था। ये नाम मुझे बहोत अच्छा और प्यारा लगा। तब से वो मुझे इसी नाम से बुलाते है। सिर्फ टीचर नहीं पर मेरे लिए वो मेरे बड़े भाई थे। और मे उनकी छोटी। ये नाम उनका दिया हुआ है। जिस नाम को मैने अपनी पहेचान बनाया है।
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टीचर बनकर आये थे जिंदगी मे और बड़े भाई का रिश्ता जुड़ गया, खून का नहीं दिल का रिश्ता है हमारा"
यही पर दोस्ती की याद खतम नहीं होती है। कहानी का एक और हिस्सा है.....
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_Miss Chhotti