अग्निजा - 102 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 102

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-102

आदत के अनुसार यशोदा की नींद सुबह जल्दी खुल गयी। जैसे-तैसे तीन-चार घंटे की नींद हुई होगी, लेकिन रात के जागरण का असर उसके चेहरे पर दिखायी नहीं पड़ रहा था। उल्टा, उसके चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी और दुनिया जीत लेने का भाव था। यशोदा उठ कर चादर की तह लगाने लगी तभी केतकी ने उसे अपने पास खींच लिया। ‘कम से काम आज तो आराम से सोओ।’

‘अरे, पर बज कितने गये, ये तो देखो।’

‘देखने की जरूरत नहीं है। सो जाओ...’ यशोदा का हाथ पकड़ कर केतकी ने अपने पास खींच लिया। करवट बदल कर उसके शरीर पर अपना बांया पैर डाल दिया। ‘अब बिना हिले डुले चुपचाप पड़ी रहो।’ उसका यह आदेश यशोदा टाल नहीं पायी। रात की बात याद करते करते यशोदा फिर से सो गयी। उसकी जिंदगी में ऐसा पहली ही बार हो रहा था। वरना रोज वही जागरण, कामकाज, ताने, चीख-चिल्लाहट, गुस्सा और मारपीट-उसके साथ यही होता था।

दस बजे के करीब भावना की नींद खुली। घड़ी की ओर देखने के बाद वह केतकी को जगाने के लिए उसकी तरफ पलटी, तो केतकी और मां –दोनों गहरी नींद में सो रही थीं। कितना अच्छा दृष्य था...मां के चेहरे पर संतोष का भाव पसरा हुआ था। उसके शरीर पर केतकी का दाहिना पैर था। दोनों मानो एकदूसरी के लिए ही बनी थीं। भावना को थोड़ी सी जलन हुई। उसने धीरे से केतकी को हिलाने का प्रयास किया।

केतकी ने नींद में ही कहा, ‘प्रिंसिपल मेहता को एसएमएस करके बता दो कि मैं आज स्कूल में नहीं आ पाऊंगी। उसके बाद तुम भी आराम से सो जाओ।’

भावना ने एसएमएस किया और फिर वह यशोदा की दूसरी बाजू में जाकर सो गयी। भावना सोचने लगी। धीरे से उठी। बेंत की कुर्सी पास खींच कर उस पर बैठ गयी। अपने दो आधारस्तंभों को इस कुर्सी पर बैठकर निहारने लगी। उसे वहीं पर बैठे बैठे नींद आ गयी। करीब पौने बारह बजे उसकी नींद खुली। यशोदा और केतकी सो ही रही थीं। उनको जगाने के लिए वह कुर्सी से उठी तो सही लेकिन फिर कुछ सोचकर वापस बैठ गयी।

भावना अचानक जोर से चीख पड़ी... ‘मां...ओ मां...’उसकी चीख सुनकर यशोदा और केतकी चौंक कर जाग गयीं। यशोदा भाग कर उसके पास गयी। लेकिन केतकी ने बिस्तर से उठी ही नहीं। यशोदा ने भावना का हाथ पकड़ा, ‘क्या हुआ बेटा? क्यों चीख रही थी?’ भावना ने अपना चेहरा इस तरह बनाया मानो बहुत परेशानी हो रही हो, और बोली, ‘मैं..मैं...मेरा’ उसने यशोदा का हाथ अपने पेट पर रखा। ‘पेट दर्द कर रहा है? दुखेगा ही...रात को कितनी देर से खाना खाया...वो भी खूब दबा कर...’

‘दुख नहीं रहा है...पेट में चूहे कूद रहे हैं...’

यशोदा हंसी, ‘चलो मैं चाय-नाश्ता बनाती हूं..इसको भी जगाती हूं।’

यशोदा जैसे ही चलने को हुई, वैसे ही केतकी ने उसका हाथ पकड़ कर कहा, ‘तुम रहने दो मां...मेरे पास कुछ देर और सोओ..’

‘अरे लेकिन अब और कितनी देर सोना है... उसे भूख भी लगी है।’

‘मां, उसका नाटकबाज लड़की को बता दो कि यदि भूख लगी हो तो अपनी व्यवस्था वह खुद कर ले।’ भावना कुर्सी से उठी, ‘नहीं, मैं कुछ भी नहीं बनाऊंगी आज। मुझे तो...’

केतकी ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘चाय-नाश्ते की व्यवस्था तुम ही करो। खुद बनाओ नहीं तो बाजार से लाओ। ’

केतकी ने यशोदा को जबरदस्ती अपने पास खींच लिया। यशोदा पलंग पर बैठ गयी तो केतकी ने उसकी गोद में सिर रख दिया। यशोदा उसके सिर,मुंह पर से हाथ फेरने लगी। भावना भी मोबाइल लेकर पलंग पर लेट गयी और केतकी को थोड़ा सा धकेल कर उसने भी अपना सिर यशोदा की गोद में रख दिया। उसने फोन करके होटल में ऑर्डर दिया, ‘दो मसाला चाय, दो सादा डोसा और तीन प्लेट इडली।’

यशोदा को लगा, स्वर्ग है तो यहीं पर है।

केतकी ने यशोदा से कहा, ‘मां तुमको रोज मेरे पास सोना चाहिए। मैं जब नाना के घर पर थी तो महीने भर तुम्हारे आने की राह देखती रहती थी कि कब तुम्हारे पीरियड शुरू हों और तुम वहां आओ। उन चार दिनों के लिए मैं भगवान महादेव का आभार मानती थी। कभी-कभी लगता था चार ही दिन क्यों..पीरियड के चौदह या फिर चालीस दिन क्यों नहीं होते? या फिर पीरियड्स हमेशा चालू रहें तो मेरी मां हमेशा मेरे पास रहेगी। ’

‘तुम सचमुच पागल हो...’

केतकी ने गाल फुलाते हुए कहा, ‘हां...हां...मैं हूं पागल...और तुम? पागल की मां?’

इतना कहकर वह फिर से यशोदा से लिपट गयी। भावना ने झूठमूठ रोने का नाटक करते हुए कहा, ‘मां-बेटी एकदूसरी पर प्रेम करते बैठी रहो...मैं कहां किसी को यहां पसंद हूं?’

केतकी ने ऊपर देखते हुए भावना की ओर हाथ बढ़ाया। भावना ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और दूसरा उस पर रख दिया। धीरे से दबाया। ‘हां...मां मेरी एक आंख है, और दूसरी आंख तुम हो। अब तुम ही कहो, कौन सी आंख सबसे अधिक प्रिय होती है। पगली, मरते समय मुझे सिर्फ तुम्हारी ही फिक्र होगी। इतनी भोली हो कि कोई भी तुमको धोखा दे देगा।’

‘बड़ी आई मरने की बात करने वाली,,,तुम गलत हो..मैं संवेदनशील हूं...तुम्हारे और मां के लिए बस...मुझे कोई भी धोखा नहीं दे सकता। अच्छे अच्छों को पानी पिला दूंगी....हां..।’

यशोदा उठने को हुई तो केतकी ने फिर से उसका हाथ पकड़ कर खींचा। ‘मेरा हाथ छोड़ो। ऐसे 24 घंटे तुम्हारे पास बैठकर मेरा काम नहीं चलने वाला।’ उसने जबरदस्ती अपना हाथ छुड़ाया और बाथरूम की ओर निकल गयी। केतकी का उठने का मन ही नहीं कर रहा था। ‘ए पगली, थोड़ी देर मुझे कंपनी दो न..’ भावना पलंग पर आकर बैठ गयी। केतकी ने उसकी गोद में अपना सिर रख लिया। भावना बड़ी देर तक उसके सिर को सहलाती रही। केतकी आंखें बंद करके पड़ी रही।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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