नीलम कुलश्रेष्ठ
1 - सीख
वह दुनिया में कोई बेईमानी, भ्रष्टाचार देखकर दंग है। दुनियां के बदलते तेवर देखकर दंग है। न आँखों की, न उम्र की शर्म न रिश्तों का लिहाज़, न दोस्ती की गरिमा -जैसे ये शब्द शब्दकोष का हिस्सा बनते जा रहे हैं। वह अपने बेटे को लोमड़ी व कौए की कहानी सुनाती है। बड़ी गम्भीरता से सिखाती है, “बेटा! कभी किसी को दग़ा नहीं देना, न दुःख देना। लोमड़ीनुमा चालाकी भरी नीचता से दूर रहना। किसी की रोटी नहीं छीनना, किसी का शोषण नहीं करना।”
बेटा ध्यान से सुनता है, मनन करता है।
वही बेटा बड़ा होकर नेता बन जाता है। वह गद्दी पर बैठा, गाँधी टोपी लगाये अपनी गोल-गोल आँखें घुमाता इधर-उधर चौकन्ना होकर देखा करता है कि कब किस कौए से क्या छीना जा सकता है।
2 - प्रशिक्षण
वह सन्न रह गयी, अपने छोटे बेटे के मुँह से निकली घनघोर देशी गाली सुनकर। उसकी आँखों में आँसू झिलमिला आये, “तुम्हें मिशनरी स्कूल में क्या इसलिये पढ़ा रहे हैं कि तुम गंदी-गंदी गाली दो?”
छोटे ने शिकायत की, “बड़े भैया ने ही तो मुझे ये गालियाँ सिखायी हैं।”
“चुप रह, तु कहीं और सीख कर या होगा। तेरा भाई ऐसा नहीं कर सकता।” वह कहती है।
“मम्मी! सच कह रहा हूँ। जब आप खाना बनाती होती है, हम पढ़ रहे होते हैं तो भैया मुझे धीमी धीमी आवाज़ में गाली सिखाते रहते हैं।”
उसने बड़े बच्चे का कान उमेठ दिया था, “क्या तुम्हें इसलिये अच्छे स्कूल में पढ़ने भेजते हैं?”
बड़ा फट पड़ा, “आप तो घर में रहती हैं। आपको क्या पता बाहर क्या चल रहा है। मैं छोटा था, स्कूल में मेरे सीनियर्स मुझे ऐसी गंदी गालियाँ दे-देकर तंग करते थे। मैं चुपचाप रो पड़ता था। कल मैं बाज़ार में जा रहा था। सामने एक साइकिल वाला जानबूझकर अड़ा रहा जब मैंने सीनियर्स की नकल एक की नकल कर गाली दी तब हटा। हर जगह सीनियर्स परेशां करते हैं .अभी से ये गाली सीख लेगा तो कम-से-कम ‘सीनियर्स’ का शिकार तो नहीं बनेगा।”
3 - अनेकता में एकता ?
वे किताबें, स्कूल, उसके बच्चे को हमेशा जातीयता से ऊपर उठने की शिक्षा देते हैं। वो सब हमेशा उसके दिल के खाँचे में अखंड भारत की अनेकता में एकता वाली तस्वीर फ़िट करना चाहते हैं।
उसके जीवन का पहला-पहला खुशनुमा अवसर है, जब रात को साढ़े ग्यारह बजे अपने दोस्तों के साथ गरबा देखने के लिये तैयार है।
उसका एक दोस्त अपने वाहन की डिक्की में देखता है, “यार ! इसमें तो पेट्रोल कम है।”
दूसरा कहता है, “प्रज्ञा सोसायटी के बाजू में ही पेट्रोल पम्प है।”
तीसरा कहता है, “उसका मालिक ख़डूस है, ग्यारह बजे के बाद एक बूँद पेट्रोल किसी को नहीं देता।”
चौथा कहता है, “अपुन तुमको ग्यारह बजे के बाद भी उससे पेट्रोल दिलायेगा, क्या? वह मराठी है अपुन की जातवाला। उसका घर पास ही है, उसके घर जाकर इकड़े-तिकड़े करेगा। वह दूसरे मराठी को पेट्रोल के लिये कभी भी मना नहीं कर सकता।”
“वाह! इकड़े-तिकड़े करके अपना काम बन जायेगा।” सब ‘हो-हो’ करके हँस पड़ते हैं।
नीलम कुलश्रेष्ठ
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