खड़ खड़--खड़ खड़..ट्रेन दुगनी गति से भागी चली जा रही थी। साम का समय था,
तेज बारिश और बीच बीच मे बिजली की चमक एक अजीब सा डर पैदा कर रही थी और सन्नाटा ड्रेन के उस डिब्बे की खिड़कियों से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही था
केबिन का एकांत और यह भयानक मौसम मुझ जैसे डरपोक आदमी को और डरा रहा था।
थोड़ी देर बाद गाड़ी के पहियों की रफ़्तार कम हुई और एक सिंपल से स्टेशन पर गाड़ी रुकी। बारिश इतनी ज्यादा थी कि मैं स्टेशन का नाम नहीं पढ़ पा रहा था । मैं अपने केबिन मे अकेला था और इस उधेड़बुन में था की कोई सहयात्री आये,
जिससे बाते करते करते आगे का रास्ता आसानी से काटा जा सके और एक अंदरुनी भय जो मेरे अंदर बस चुका था
उससे मुझे छुटकारा मिल सके। तभी किसी ने केबिन का दरवाजा खटखटाया और एक शांत सा दिखने वाला व्यक्ति केबिन मे दाखिल हुआ।
अपना सामान आदि ठीक करने के बाद वो मेरी तरफ देख कर मुस्कराया और मेरी तरफ हाथ आगे बढ़कर उसने अपना परिचय दिया..
मैं मिस्टर घोष... । वो बोला- मैं कोलकाता जा रहा हूँ.. पुनर्जन्म से सम्बंधित एक कार्यशाला मे भाग लेने के लिए।
मैंने उसे बताया कि मैं कानपुर मे account टेंट के पद पर हूँ
और पटना जा रहा हूँ।
उसने कुछ खाने का सामान निकाला और मुझसे भी खाने के लिए पूछा । लेकिन मैं बहुत ही simple से व्यक्तिव वाला व्यक्ति हूँ..
ट्रेन मे किसी अजनबी के द्वारा दिए गए खाने को लेना मुमकिन नहीं था मेरे लिए।मैंने बहुत प्यार से उसको मना किया।
वो भी कम उस्ताद नहीं था ... कस कर हँसा और बोला- सक कर रहे हैं मेरे ऊपर, अभी तो कुछ नहीं देखिये आगे क्या क्या होता है। उसके यह शब्द सुन कर मुझे सांप सूंघ गया किन्तु मैंने
किसी तरह अपनी घबराहट को छिपाया।
कोई स्टेशन आने पर वो उतरता और ट्रेन चलने के बाद किसी दूसरे कम्पार्टमेंट से चढ़ कर फिर आ जाता। पूछने पर बोलता की बीच बीच मे रेलवे की नौकरी भी कर लेता हूँ।थोड़ी देर बाद मैं और वह अलग-अलग विषयों पर चर्चा करने लगे।
उसने पुनर्जन्म से सम्बंधित बातें सुरू कीं और पुनर्जन्म को अन्धविश्वास बताया। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पूछा की क्या आप भूत-प्रेत पर विश्वास करते हैं? मैंने कहा-बिल्कुल।वो जोर से हँसा और बोला यह सब बकवास है। मुझे भूतों पर विश्वास था किन्तु वो भूतों के अस्तित्व को नकारता रहा।
रात का अब तीसरा पहर चल रहा है पर मे उसकी बाते खत्म होने के बाद,में अपने पहले कक्ष मे सोने का प्रयास कर रहा जेसे ही मेरी आँख लगी ही थी कि।
अचानक मुझे ऐसा अनुभव हुआ की कोई मेरे गले पर गर्म अंगार रख रहा है।.
• हड़बड़ा कर उठा... कहीं कोई नहीं... मेरे अलावा उस कक्ष मे मेरा वही सह यात्री था जो सामने की बर्थ पर लेटा
घोड़े बेंचकर सो रहा था।
मैं फिर सोने का प्रयास करने लगा। अभी आँख लगी ही थी की मुझे अपने पेट पर बहुत तेज दबाव और हंसने की तेज आवाज सुनाई दी।
मैं घबराकर उठा तो देखा की सहयात्री बर्थ पर नहीं था। लगभग एक दो मिनट बाद वो आया और बोला जनाब सोये नहीं...
मैंने अपनी घबराहट रोकते हुए उससे कहा अभी नींद नहीं आ रही और मैंने अपने बैग से एक मैग्जीन निकाली और पढ़ने का नाटक करने लगा।
सहयात्री भी बर्थ पर लेट गया और कुछ देर में उसके खर्राटे केबिन मे गूंजने लगे। मैं भी थोडा निश्चिन्त हुआ और
बर्थ पर आँख बंद कर लेट गया।
ट्रेन कभी धीमी होती कभी रफ़्तार पकड़ लेती लेकिन मेरे
दिल ने अब तेज रफ़्तार ही पकड़ रखी थी...,
भय और घबराहट के कारण लघुशंका की इच्छा अपने
आप जीवित हो जाती है.. और मैं टॉयलेट की तरफ मुड़ा जैसे ही मैंने टॉयलेट का दरवाजा खोला वो सहयात्री मुझे अंदर दिखा और मैं चिल्लाते हुए अपनी बर्थ की तरफ भागा...
देखा तो वो सहयात्री इत्मिनान से अपनी बर्थ पर सो रहा है....मैंने घबराहट मे उसे जगाया... वो बोला.. अरे क्या हुआ ? इतना मासूम लग रहा था,
वो जैसे कुछ जानता ही ना हो.... मैंने कहा- आप यहाँ भी और वहां टॉयलेट मे भी.... वो कुटिलता से हँसा और बोला -मैं कितने रूप मे कहीं पर भी रह सकता हूँ। घबराहट के मारे मैं पसीने से तर बतर..' ..बिल्कुल पत्थर सा खड़ा उसके सामने।वो बोला - तुम्हें भूतों पर विश्वास था ना..
तुम्हे तुम्हारे विश्वास का प्रमाण देना था। तुम्हारे जैसे लोगों कारण ही हम भूत-पिशाच लोगों का अस्तित्व है.... इतना कहकर वो मेरी आँखों के सामने से अचानक गाय हो गया। मैं डर के मारे साँस अटक गयी और में लाश की तरह अपनी बर्थ पर बैठा था।
तभी केबिन के अंदर टिकट निरीक्षक आया उसका चेहरा देखकर मुझे बेहोशी छाने लगी क्योंकि यह वही सहयात्री था मेरा.. और वो टिकट चेक कर मुस्कराता हुआ चला गया.