अग्निजा - 82 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अग्निजा - 82

प्रकरण-82

केतकी का सिर ध्यानपूर्वक देखने पर भावना अंचभित रह गई। वह चुपचाप देखती ही रही। केतकी को डर लगा, “फिर से वही न...मेरा ही नसीब खोटा...और क्या?” उसने अपने सिर पर रखा हुआ भावना का हाथ दूर किया। भावना की ओर देखा, तो उसकी आंखों में पानी झलक रहा था। “अरी पगली, अब उसकी आदत कर लेनी चाहिए...बाल गए तो गए...”

“केतकी बहन, बाल गए नहीं, आए..हां उस गोल चकत्ते का आकार भी छोटा हो गया है अब। उसके आजू-बाजू में छोटे-छोटे बाल दिखाई दे रहे हैं।” इतना कह कर उसने केतकी को गले से लगा लिया।

शाम को केतकी और प्रसन्न खुशी-खुशी डॉक्टर से मिलने के लिए गये। लेकिन वहां पर वो काम करने वाला लड़का ही था। “डॉक्टर साहब किसी जरूरी काम से बाहर गए हैं। लेकिन आपकी दवा रख कर गए है, दे दूं?”

केतकी ने हां कह कर उससे दवा ले ली और पर्स में से दस हजार रुपए निकाल कर उसके हाथ में रख दिये, तब उस लड़के ने पैसे लेकर उसको एक लिफाफा दिया। उसमें तीन महीने बाद का दस हजार रुपए का एक चेक था। केतकी बोली, “साहब से कहना चेक की आवश्यकता नहीं है।” उस पर उस लड़के ने उत्तर दिया, “तब तो मेरी खैर नहीं है...मुझे स्पष्ट आदेश हैं कि पैसे लेकर चेक देना है।” प्रसन्न ने हंसते हुए वह लिफाफा ले लिया। दोनों दवा लेकर बाहर निकले। रिक्शे में बैठने ही वाले थे कि दूर स्कूटर पर बैठे एक युवक ने इन दोनों को देखा और स्कूटर को किक मारना ही भूल गया। केतकी ने उसको नहीं देखा। उस लड़के ने तुरंत मोबाइल निकाल कर एक नंबर लगाया, “पव्या बोल रहा हूं...जित्या..तुम हो कहां? मुझसे मिलो तुरंत...”

डॉक्टर के पास जाने से पहले केतकी ने अपना मोबाइल फोन साइलेंट मोड में रखा था। रिक्शे में बैठते समय पर अपने पर्स से मोबाइल निकालना भी भूल गयी थी। तब तक भावना के दो और जीतू के आठ फोन आ चुके थे, उसे मालूम ही नहीं पड़ा। दोनों ने रास्ते में कुछ खा लिया। घर पहुंच कर केतकी ने भरपेट भोजन किया। यशोदा को इस बात की खुशी हो रही थी कि केतकी अब ठीक से खाने-पीने लगी थी।

रात को ग्यारह बजे सोते समय केतकी के ध्यान में आया कि उसका फोन तो अभी भी साइलेंट मोड में ही है, और जीतू के आठ फोन आ चुके हैं। अब इतनी रात को उसको फोन क्या करना, इस लिए उसने उसे एसएमएस किया,  “सॉरी, फोन साइलेंट पर था। कुछ जरूरी काम था क्या, तो अभी फोन लगाती हूं?”

उसने उसके उत्तर की घंटा भर प्रतीक्षा की। लेकिन कोई उत्तर नहीं आया। आता भी कैसे?  पव्या की दी हुई खबर के कारण जीतू बहुत गुस्से में था। एक तो इतनी अच्छी, पढ़ी-लिखी, नौकरी करने वाली लड़की जीतू की बीवी बनने जा रही है, पव्या को इस बात की ईर्ष्या हो रही थी। इसके अलावा उसकी यह बीवी साढ़े चार लाख का फ्लैट भी खरीद कर देने वाली थी। जीतू के गिलास में व्हिस्की ढालते समय पव्या आग लगाने का काम कर रहा था। “ध्यान में रख। औरत जात, जवान है, नौकरी करती है तो बाहर कितने लोगों से मिलती होगी। लगाम खींच कर न रखी तो हाथ से निकल कर छाती पर मूंग दलेगी...तू मेरा दोस्त है। मुझसे रहा नहीं गया इस लिए तुझसे कह रहा हूं...वरना मुझे क्या लेना देना?”

नकली व्हिस्की के एक के बाद एक कई पैग पेट में डालते समय ही जीतू पागलों की तरह केतकी को फोन लगा रहा था। वह खूब पीया। नशे में ही पव्या को बार-बार धन्यवाद देता रहा। निकलते समय पव्या ने आग में घी का काम किया, “मैं जो कह रहा हूं ध्यान देकर सुनो। जल्दी ही उसका फ्लैट बन कर तैयार हो जाएगा। शादी के बाद वह एकदम अकेली रहेगी। तुम काम के चक्कर में ऐसे भटकते रहोगे और घर में उससे पूछताछ करने वाला कोई नहीं रहेगा। इस लिए कल के कल उससे सब कुछ पूछ डाल।”

कल क्या पूछना है ये तो ठीक, लेकिन जीतू को उसी पल एक पत्थर की ठोकर लगी और वह नीचे गिर गया। उसके हाथ-पैर में खरोंच आ गई और सिर पर भी थोड़ी चोट लगी। लेकिन नशे और गुस्से में होने के कारण उसको पता ही नहीं चला। अगले दिन केतकी शाला के लिए निकली उसी समय रास्ते में उसे जीतू ने रोक लिया। जीतू को देख कर उसे झटका लगा, “क्या हुआ? चोट कैसे लगी?”

“चलो, कहीं आराम से बैठते हैं, वहां पर बताऊंगा तुम्हें सब। तुमको बहुत कुछ बताना है।”

“अभी कैसे आ सकती हूं?”

“क्यों? मेरे लिए तुम्हारे पास थोड़ा भी समय नहीं है?”

“स्कूल में इंसपेक्शन की तैयारी चल रह है। आज बहुत काम है। शाम को भी मीटिंग है...”

“तुम कितना और किसका काम करती हो, मुझे सब मालूम है...अभी चलो..”

“जीतू ये किसी भी हालत में संभव नहीं...मुझे जाना पड़ेगा।”

“तो ठीक है, शाम को छह बजे मैं वापस यहां आऊंगा, कोई भी नाटक न करते हुए यहां समय पर आ जाना...आज दूसरे को छुट्टी देना...समझ में आया?”

केतकी को उसकी बातचीत का मतलब समझ में नहीं आया। वह कुछ और पूछती इससे पहले ही वह लंगड़ाता हुआ तेजी से निकल गया। केतकी को खुद पर गुस्सा आया। ‘जीतू का एक्सीडेंट हुआ। वह मुझे लगातार फोन करता रहा लेकिन मैंने ही वह नहीं उठाया। मैं भी कितनी भुलक्कड़ हूं? उसका गुस्सा भी जायज ही है। आज शाम को कुछ भी करके काम जल्दी निपटा कर निकलना होगा स्कूल से।’

जीतू शाम को साढ़े पांच बजे ही शाला के पास आकर खड़ा हो गया। पहचान वाले रिक्शे वाले को ले कर आया था। रिक्शे को वेटिंग में खड़ा किया। खड़े रह कर थोड़ी देर इंतजार किया फिर दोबारा रिक्शे में आकर बैठ गया। छह बजते ही छुट्टी की घंटी बजी और बच्चों का झुंड बाहर निकला। जीतू को लगा कि केतकी एकदम दौड़ते-भागते आते हुए दिखाई देगी। लेकिन वह राह देख कर थक गया, लेकिन केतकी का अता-पता नहीं था इस लिए उसका गुस्सा बेकाबू हो गया। पौने सात बज गए, फिर भी केतकी दिखाई नहीं दी। आखिर में जल्दी-जल्दी फाटक के पास आई। उसे डर लग रहा था कि जीतू राह देख कर कहीं वापस न चला गया हो। वह पर्स से मोबाइल निकाल कर उसको फोन लगाने ही वाली थी कि वह रिक्शे ने उसके पैर के पास आकर ब्रेक मारा। जीतू ने गुस्से में उसे अंदर खींच लिया। “...अब वो फोन रखो.. बाद में करना जिसे भी करना होगा...मैं कब से तुम्हारी राह देखते यहां घोड़े की तरह खड़ा हूं वह तुमको दिखाई नहीं दे रहा है?”

“अरे, मैं तो आपको ही फोन लगा रही थी..”

“मुझे? या कल के गांधीनगर वाले को?”

“क्यों? कल उससे चिपक कर बैठी थी न रिक्शे में?”

“कल? मैं?”

केतकी को ध्यान में आ गया और वह सोच में पड़ गयी। ‘जीतू को क्या बताया जाये? उसे मेरे गंजेपन की बीमारी समझ में आएगी क्या? अब तो बाल फिर से आने लगे हैं तो बेकार में ही उसे यह सब क्यों बताया जाये?’ वह जीतू की ओर देख कर मुस्कुराई.. “हां, हमारे ट्रस्टी ने डोनेशन के लिए एक बड़े उद्योगपति से मिलने के लिए भेजा था हम दोनों को। उनसे मुलाकात के समय फोन को साइलेंट पर रख दिया था। वो वैसा ही रह गया था।”

“वाह...तुम तो बहुत पढ़ी लिखी हो...लेकिन झूठ बोलने में भी डिग्री प्राप्त कर ली है?”

“जीतू, मैं झूठ क्यों बोलूंगी? बताया न फोन साइलेंट पर रख गया था...”

“लेकिन पहले ये बताओं कि उस डॉ. मंगल की बिल्डिंग में क्या कर रही थी? वह लोगों को दुनिया भर की दवाइयां देता रहता है...सारे गांव भर को...गर्भपात की भी...इसके लिए वह बड़ा प्रसिद्ध है...समझ में आया?” इतना कह कर जीतू ने उसे रिक्शे में ही जोरदार धक्का मार दिया।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार © प्रफुल शाह