अरीज!.... अरीज!” आसिफ़ा बेगम उसका नाम ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी। तभी नसीमा बुआ वहाँ उनकी आवाज़ सुनकर पहुंची थी।
“क्या हुआ बेगम साहिबा…?” नसीमा बुआ घबराई हुई उनसे पूछ रही थी।
“तुम्हारा नाम है अरीज?... हाँ?... बोलो?...” वह उन्हीं पर बरस पड़ी थी।
“बेगम साहिबा वह तो अपने कमरे में है”।
“कमरे से तो मैं आ रही हूँ, नहीं है वहाँ पे वो मनहूस”। उनका बस नहीं चल रहा था की वह अपना सारा गुस्सा नसीमा बुआ पर ही निकाल दे।
“जी… वह उमैर बाबा के कमरे में नहीं… अपने कमरे में है”। नसीमा बुआ ने उनकी सोच को सही किया था।
“अपने कमरे में?... क्या मतलब है तुम्हारा? अपने कमरे से?... उसका कौन सा नया कमरा आ गया?” अब उन्हें नया झटका लगा था।
“वो जो स्टोर रूम था… उन्होंने उसे ही अपना रूम बना लिया है”। उसने तफ़्सील से उन्हें बताया।
“हें! अपना रूम बना लिया है? किस से पूछ कर बनाया है?” उन्हें एक और परेशानी लग गई थी।
“ये तो पता नहीं... लेकिन हाँ... बड़े साहब को इस बात का पता है शायद उन्होंने ही बोला होगा।“ आसिफ़ा बेगम को एक तरफ़ गुस्सा आया था मगर दूसरे ही पल उन्हें थोड़ा राहत भी मिली थी के उमैर और अरीज का कमरा अब अलग अलग है।
इस अलाहदगी से उन्हें इतना ज़रूर समझ आया था की उनका बेटा अरीज और ज़मान खान से लड़ कर ही कहीं गया है। मगर उन्हें फ़िक्र इस बात की थी के वह अपना मोबाइल फोन क्यों नहीं लेकर गया। अब वह उस से कैसे राबता करेंगी।
“ये तुम क्या कह रहे हो उमैर?... मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है... जब तुम्हारे घर वाले इस रिश्ते से राज़ी है तो फ़िर....?” वह फिर के आगे कुछ कह नहीं पाई थी। क्या कहती?..... के फिर तुम खाली हाथ क्यों हो?.... उसके बाद उमैर उसके बारे में क्या सोचता?... आखिर मोहब्बत में खाली हाथ से क्या लेना? मोहब्बत तो दिल में भरी होती है।...उसका तो सिर्फ़ दिल का मुआमला होता है....उसका हाथों से क्या लेना देना?
“तो फ़िर क्या?” उमैर ने मानीखेज़ अंदाज़ में उस से पूछा था।
“तो फिर तुम्हारी ये हालत क्यों है?.... I mean तुम इतने upset क्यों हो?” उसने बात को झटकों में संभाली थी।
उमैर ने उसे कोई जवाब नहीं दिया था बस चुप चाप उसे देख रहा था। उसने व्हाइट कलर का पजामा के उपर बेबी पिंक कलर की टी शर्ट पहन रखी थी। बालों का एक मेस्सी सा जुड़ा बनाया हुआ था। कानों में डाएमंद सोलिटाइर जगमगा रही थी। उमैर को याद आया ये उसने सनम को उसकी birthday पे गिफ़्ट की थी.... उसके गले में एक डाएमंद पेंडेंट भी झिलमिला रहा था। ये भी उसे उमैर ने ही गिफ़्ट की थी।
उमैर ने अब अपनी नज़रें उस से हटा ली थी। उसकी नज़रें अब उस one bhk फ्लैट के गिर्द भटक रही थी। ये फ्लैट भी उमैर ने उसे खरीद कर दिया था। फ्लैट ही क्या अपार्टमेंट के पार्किंग में खड़ी सनम की गाड़ी भी उमैर की ही इनायत थी।
उमैर ने अपना सर झटका... एक पछतावे, एक शर्म की लहर उसके तन बदन से होकर गुज़री थी। जिस दौलत को वह दूसरों पर लूटा रहा था हक़ीक़त में वह उसकी थी ही नहीं।
वह सब कुछ छोड़ कर... ठोकर मार कर वहाँ से आ सकता था मगर सनम को दिया हुए महंगे तोहफों का क्या? वह कभी उस से वापस लेकर अरीज को नहीं लौटा सकता था। और फिल्हाल उसे इसी बात का सब से ज़्यादा मलाल हो रहा था। तोहफ़े देकर वापस नहीं ली जाती यही दुनिया का कानून है।
सनम अभी भी उसके जवाब के इंतज़ार में उसे ही देख रही थी। मगर वह उसे नहीं कहीं और देख रहा था। वह अपनी हालत को देख रहा था।
“क्या हुआ?... कुछ बोलो....मैं तुम्हारे जवाब के इंतज़ार में बैठी हूँ... घर वाले मान गए है तो फिर ये उदासी क्यों?” सनम का दिल बोहत घबरा रहा था... वह अपने मन के खिलाफ़ कुछ सुन ने के condition में नहीं थी।
उमैर ने उसकी तरफ़ कुछ देर यूँही देखा फिर कहा।
“तुम्हे सारे रिश्ते चाहिए थे.... मुबारक हो वह सब तुम्हें मिल गए है... मगर इसके अलावा तुम्हें और कुछ नहीं मिलेगा... मेरे पास अब कुछ नहीं है... ना घर.. ना गाड़ी और ना ही कोई काम... यहाँ तक के वॉलेट भी नहीं है मेरे पास।“ सनम की आँखें फटी की फटी रह गई थी ये सब सुनकर... उसे चक्कर आ रहे थे... वह कितनी देर खामोश नज़रों से उमैर को देखती रही। फिर उसने खुद पर क़ाबू कर के उस से कहा था।
“ये आधी अधूरी बात क्या बता रहे हो?... मुझे तफ़्सील से बताओ आखिर बात क्या हुई है घर पे।“ सनम ने खासी ऊँची आवाज़ में कहा था। वह काफी झुंझला गई थी।
“बात ये है सनम की मैं तुम से शादी करूँ या ना करूँ...मेरा अब उस घर से कोई ताल्लुक़ नहीं है।“ उमैर ने उस से ज़्यादा ऊँची आवाज़ में उस से कहा था।
सनम के सर पे जैसे पहाड़ टूट पड़ा था। वह उमैर को खोई खोई नज़रों से बस देखती रह गई।
दो दिन गुज़र गए थे लेकिन अभी तक उमैर घर वापस नहीं आया था।
ज़मान खान वापस से अपने काम में मसरूफ़ हो गए थे। मगर अभी भी वह ऑफिस नहीं जा रहे थे। जो भी काम था वह घर से देख रहे थे। वह अपने कमरे के बजाय घर पे ही बने अपने ऑफिस मे हुआ करते थे।
सोनिया तो शहज़ादी थी और शाहज़ादियों को तो किसी बात का गम होता ही नहीं है... वह अपने दोस्तों और सेर सपटों में मग्न थी। अरीज और अज़ीन अपने कमरे में दुबके बैठी हुई थी।
आसिफ़ा बेगम ने खुद पर जब्र का ताला लगाया हुआ था लेकिन आखिर वह कब तक बर्दाश्त करती। नसीमा बुआ से कह कर उन्होंने अरीज को अपने कमरे में बुलाया था। अरीज का इस बुलावे का सुन कर ही उसका खून सूख गया था। फिर भी वह जाने से इंकार नहीं कर सकती थी... डरते घबराते वह उनके कमरे में पहुंची थी।
और उसके कमरे में आते ही नसीमा बुआ के सामने उन्होंने अरीज से बिना कुछ कहे उसके गाल पर एक थप्पड़ लगा दिया था। वह थप्पड़ इतना ज़ोर दार था की अरीज के कान थोड़ी देर के लिए सुन्न पड़ गए थे और उसके पूरे गाल पर एक जलन सी फेल गई थी अरीज अपना गाल पकड़ कर उन्हें बेयकिनि से देख रही थी।
मगर अगले ही पल जो हुआ उसकी अरीज ने कभी उम्मीद ही नहीं की थी।
उस से भी ज़्यादा ज़ोर दार थप्पड़ आसिफ़ा बेगम के गाल पर लहरा गया था।
थप्पड़ सिर्फ़ थप्पड़ नहीं होता ये एक ठप्पा होता है। तप्पड़ आपके गालों पर पड़ती है मगर ठप्पा आपके दिल में लग जाता है.... एक बेइज़्ज़ती का ठप्पा...एक बदले का ठप्पा....
अपने गुस्से के एवज़ में हम किसी को भी थप्पड़ मार देते है और सोचते है ये एक बिना लफ़्ज़ों का जवाब होता है... और अपने गुमान में रहते है की ये जवाब देने का सब से अच्छा तरीका होता है मगर हम कभी कभी ये नहीं सोचते की यही जवाब आगे चल कर और क्या क्या सवाल खड़े कर देगें।
ये तो बताने की ज़रूरत नहीं है के आसिफ़ा बेगम को किसने थप्पड़ मारा?
लेकिन इस थप्पड़ का अंजाम क्या होगा ये देखना बाक़ी है...
आगे क्या करेंगी आसिफ़ा बेगम अरीज के साथ?
और सनम...
उसका क्या फैसला होगा?
क्या वह सच सुन ने के बाद छोड़ देगी उमैर को या फिर उसकी मोहब्बत वाकई में सच्ची है?
क्या होगा आगे?
जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें इश्क़ ए बिस्मिल